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28 अक्तूबर 2010

sms

आज दोपहर में मेरे मोबाईल पर एक कॉल आया, रिंग बजी मैने उठाया एक लड़की ने कहा कि आपने मुझे मेसेज क्यों भेजा? मैने कहा कि मेडम मैंने तो आपको कोई मेसेज नहीं भेजा, वो बोली आपने भेजा है, मैने कहा सच्ची नहीं भेजा, वो बोली मेरे मोबाईल में है मेसेज मैने कहां मेरे मोबाईल में तो आपका नम्बर ही नहीं है, पर वो थी की बहस पर बहस किये जा रही थी और कह रही थी की मेरे मोंबाईल में आपके द्वारा भेजे गये मेसेज है। मैंने सोचा मेरी कोई दोस्त होगी जो मजाक कर रही है। फिर थोड़ी देर में एक लड़के का कॉल आया उससे भी वैसी ही बहस हुई जैसी उस लड़की के साथ हुई थी। उसके बाद एक और लेडीज का कॉल आया उन्हे तो मैने पोलिस में जाने की धमकी भी दे दी, जवाब में उन्होने ने भी मुझे वैसी ही धमकी दी। अभी तक मेरे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर माजरा क्या है? क्यों लोग मेरे कभी कभार बजने वाले बेचारे गुपचुप मोबाईल को बजा बजाकर तंग कर रहे है। कहीं मेरे दोस्तो का कोई प्लान तो नहीं है? क्योंकि मैं बिना जाने पहचाने नम्बर्स के कॉल उठाता नहीं और मोबाईल से बात करना भी ज्यादा पसंद नहीं है, तो हो सकता है इसीलिए प्लान बनाया गया हो की आज इसे परेशान किया जाए?
    पर मेरा दिमाग तब ठनका जब देश के कुछ वीवीआईपी लोगो के कॉल भी मेरे मोबाईल पर आने लगे। अब तक तो मेरे रोंगटे खड़े हो चुके थे क्योंकि मेरे समझ आ चुका था कि आखिर माजरा क्या है। एक्चुअली आज सुबह-सुबह बॉस का फरमान आया की कोई ऐसा सॉफ्टवेयर या वेबसाईट ढूंण्डो जो फ्री में बल्क एसएमएस करता हो ताकि दीपावली की बधाई भेजी जा सके। मैने गूगल पे दे मारा सर्च अब दुनिया भर की वेबसाईटस और सॉफ्टवेयर्स पेज पर आ गये। अब मैं लगा सबको ट्राय करने। मेरी जानी पहचानी दो साईट्स sms-Gupshup गपसप और way2sms मुझे जंच गई क्योंकि इनका मैं पहले से ही मेंम्बर भी हूं। फिर मैं way2sms में ग्रूप एसएमएस ट्राय करने लगा। ये जांचने के लिए की एक साथ बहुत सारे एसएमएस जाते है की नही? मैने बॉस का मोबाईल लिया और सारे कांटेक्ट्स को सीएसवी फाईल फारमेट में बदलकर सीधे ही मेरी way2sms प्रोफाईल जो की मेरे मोबाईल नम्बर से रजिस्टर्ड थी में अपलोड कर दिया। उन कॉक्टेक्ट्स में पूरे देश विदेश के नेताओं, वीवीआईपी, वीआईपी, लोकल सारे के सारे नम्बर अपडेट हो गये।
    कांटेक्स अपलोडिंग के 5 मिनट में ही मेरी मुसिबत शुरू हो गई। सायद way2sms वेबसाईट से मेरे द्वारा जिन मोबाईल नम्बरो को मेरी प्रोफाईल में डाला गया उन्हे सूचना मेसेज गया होगा की उनका मोबाईल मेरी प्रोफाईल में एड किया गया है। उस मेसेज में मेरा नम्बर भी गया होगा। जिससे उन नम्बर वालो द्वारा मुझे वापस कॉल किया जा रहा था। चलों वैसे तो ये नेता और वीआईपी लोग सिर्फ भाषणों और फंक्सनों में ही सुने जाते है पर इसी बहाने मेरे मोबाईल ने भी इनकी आवाज सुनली।

काहे के लोक सेवक ??


फिलहाल यह कहना कठिन है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा इकोनामी क्लास में हवाई सफर करने से उन केंद्रीय मंत्रियों को सही संदेश मिल गया होगा जो फिजूलखर्ची रोकने के कांग्रेस के अभियान को लेकर नाक-भौं सिकोड़ रहे हैं। यदि सभी केंद्रीय मंत्री और विशेष रूप से कांग्रेस के मंत्री इकोनामी क्लास में हवाई सफर करना शुरू कर देते हैं तो भी इस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता कि फिजूलखर्ची पर लगाम लग गई। यह समझ पाना कठिन है कि कांग्रेस किफायत बरतने के अपने अभियान को केवल अपने ही मंत्रियों और सांसदों तक क्यों सीमित रखना चाहती है? यदि मंत्रियों और सांसदों द्वारा फिजूलखर्ची की जा रही है तो फिर यह अभियान सभी पर लागू होना चाहिए और कम से कम उसका दायरा संप्रग तक तो जाना ही चाहिए। यदि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के मंत्री और सांसद अपने यात्रा खर्च को सीमित कर लेते हैं तो इसके जो भी नतीजे सामने आएंगे वे भी अत्यंत सीमित होंगे, क्योंकि फिजूलखर्ची केवल यात्राओं के दौरान ही नहीं होती। केंद्रीय मंत्रियों के यात्रा व्यय के अतिरिक्त अन्य अनेक खर्च ऐसे हैं जिनमें अच्छी-खासी धनराशि खर्च हो रही है। यदि केंद्रीय मंत्रियों के केवल यात्रा खर्च और अन्य खर्चो को शामिल कर लिया जाए तो यह राशि करीब दो सौ करोड़ रुपये पहुंच जाती है। यह खर्च किस तेजी से बढ़ता चला जा रहा है, इसका प्रमाण यह है कि वित्तीय वर्ष 2005-06 में वेतन और यात्रा खर्च और अन्य भत्तों में व्यय कुल राशि सौ करोड़ रुपये से भी कम थी।
यदि कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता फिजूलखर्ची रोकने के प्रति वास्तव में गंभीर है तो उसे सरकारी कामकाज के तौर-तरीकों में बुनियादी बदलाव करना होगा और साथ ही उन अनेक परंपराओं से पीछा छुड़ाना होगा जो एक लंबे अर्से से चली आ रही हैं। फिजूलखर्ची केवल मंत्रियों द्वारा ही नहीं, बल्कि शीर्ष नौकरशाहों द्वारा भी की जा रही है। नि:संदेह यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि उच्च पदों पर बैठे नौकरशाह और नेतागण अपनी जीवनशैली को सामान्य व्यक्तियों की तरह ढाल लें, लेकिन यह भी नहीं होना चाहिए कि उनकी विशिष्टता राजसी ठाठ-बाट को मात देती नजर आए। यह भी विचित्र है कि फिजूलखर्ची रोकने का यह अभियान इस आधार पर शुरू किया गया है कि देश सूखे और मंदी का सामना कर रहा है। इस अभियान से तो यह प्रकट हो रहा है कि यदि सूखे और मंदी का दुर्योग एक साथ सामने नहीं आया होता तो कोई फिजूलखर्ची रोकने पर ध्यान नहीं देता। फिजूलखर्ची तो प्रत्येक परिस्थिति में रोकी जानी चाहिए, क्योंकि ऐसा न करने का अर्थ है संसाधनों की बर्बादी। एक ऐसे देश में जहां लगभग तीस प्रतिशत लोग भयावह निर्धनता से जूझ रहे हों वहां यह शोभा नहीं देता कि मंत्रीगण राजसी ठाठ-बाट में रहें। इससे भी अधिक अशोभनीय यह है कि जब इस ठाठ-बाट का उल्लेख किया जाए तो विरोध और नाराजगी के स्वर उभरें। इन स्वरों का उभरना यह बताता है कि हमारे आज के औसत राजनेता किस तरह अभी भी सामंतवादी मानसिकता से ग्रस्त हैं। ऐसी मानसिकता वाले राजनेता उच्च पदों पर तो विराजमान हो सकते हैं, लेकिन उन्हें लोकसेवक नहीं कहा जा सकता।