हर इंसान के दिमाग में इस पृथ्वी पर भूतों और आत्माओं के वास करने जैसे सवाल उठते रहते है। इस दुनिया में कई ऐसे लोग भी हैं जो कि गाहे बगाहे इन रूहो और आत्माओं से दो चार भी हो जाते हैं और उन्हे किसी अलग तरह की अनुभूति भी होती है। लेकिन कभी-कभी इंसान अपने आस-पास की किसी खास जगह के लिए अपने दिमाग में एक बात बैठा लेता है कि उस जगह पर भूत, आत्मा या किसी रूह का वास है। हम आपको उसी तरह की कुछ बातें बताएंगे और दुनिया भर के सबसे ज्यादा डरावनी जगहों की सैर करांएगे। यह एक सीरीज होगी जिसमें आपको रोजाना आपको एक अलग जगह के बारे में बताया जायेगा।आईऐ तैयार हो जाईये एक रोमांचकारी सफर के लिए। आज हम आपको संयुक्त राज्य अमेरिका के एक शहर लुईसविला शहर के एक ऐतिहासिक और मौत के अस्पताल वैवरले हिल्स की कहानी बताएंगे। यह अस्पताल एक ऐसा अस्पताल है जिसे लोगों के इलाज के लिए शुरू किया गया और जो कि लोगों की मौत की वजह बन गया और आज अस्पताल के भवन में आप आसानी से उन मौतों को महसूस कर सकते है।वैवरले हिल्स एक ऐसी इमारत है जो कि लोगों के लिए सदैव कौतूहल का विषय बनी रही। वैवरले हिल्स को सन 1883 में एक अमेरिकी नागरिक मेजर थामस एच हेज के द्वारा बनवाया गया था। मेजर थामस ने अपने बेटी के लिए एक व्यक्तिगत स्कूल का इस ईमारत में शुरू किया था। इस स्कूल की शिक्षक लेसी ली हेरिस थी और वहीं उस बच्ची को पढ़ाती थी। चूकि लेसी ली हेरिस वैवरले नाम की एक उपन्यास को उस बच्ची को बहुत पढ़ाती थी जो कि मेजर थामस को बहुत पसंद था। इसी वजह से मेजर अपने इस घर को वैवरले हिल्स कहते थे। और आज भी यह इमारत इसी नाम से जाना जाता है।
इमारत का इतिहास
हेज परिवार के बाद इस इमारत को बन्द कर दिया गया था यह इमारत उस घाटी में सबसे बड़ी इमारत थी। उसके बाद सन 1908 में इस इमारत को दूबारा शुरू किया गया और इस इमारत में लोगों के इलाज के लिए एक अस्पताल की शुरूआत की गयी। सन 1900 के आस-पास अमेरिका में एक विचित्र बिमारी जिसे उस समय सफेद मौत के नाम से जाना जाता था यानी की तपेदिक से बुरी तरह से ग्रस्त था। सन 1924 में वैवरले हिल्स को इस बिमारी से लड़ने के लिए चुना गया। इस दौरान हजारों की तादात में तपेदिक के मरीजों को यह भर्ती किया जाने लगा। इस इमारत को अस्पताल के तौर पर चुनने के कारण यहां का वातावरण था लोगो का मानना था कि उचांई पर होने के कारण यह जगह मरीजों के ठिक होने में मदद करेगी। उस समय यह अस्पताल दुनिया भर में तपेदिक रोग के लिए सबसे बेहतर अस्पताल माना जाता था। इस अस्पताल में उस समय की सबसे बेहतर तकनिकी भी उपलब्ध थी।मरीजों को सूर्य के पैराबैगनी किरणो से भी इलाज किया जाता था। मौत से बचने के लिए दुनिया भर से हजारों की संख्या में इस अस्पताल में मरीजों की भर्ती कर ली गयी थी, लेकिन मौत से बचने के लिए आये इन मरीजों में से रोजाना सैकड़ो की मौत भी हो जाती थी। यही मौतें इस अस्पताल में रूहो का वास बनकर उभर गयी। इस अस्पताल में रोजाना हो रही मौतों के कारण रोजाना हजारों लाशे अस्पताल में तैयार हो जाती थीं।इन लाशों को कोई भी कहीं लेकर नहीं जाना चाहता था ताकि यह बिमारी और उग्र रूप न धर सके। इसके लिए अस्पताल में ही एक लम्बी सुरंग का निर्माण कराया गया। इस सुरंग के दरवाजे पर लाशों को टांग दिया जाता था और एक छोटी रेलगाड़ी (जैसा कि आजकल कोयले के खानों में प्रयोग किया जाता है) आती थी और लाशे उस पर गिर जाती थी और वो गाड़ी लाशों को ले जाकर अस्पताल के पिछले हिस्से में गिरा देती थी।इस इमारत की दिवारों में भी मौत का वास हो गया था और ऐसा माना जाता है कि आज भी उन मरीजों की चिखों को इस इमारत की दिवारों में आसानी से सुना जा सकता है। इस अस्पताल में जो सुरंग लाशों को ढोने के लिए बनायी गयी थी वो लगभग 500 फिट लम्बी थी और एक तरफ जिन्दगी और एक तरफ हजारों लाशों का ढे़र। इस सुरंग में आज भी रूहो और आत्माओं को आसानी से महसूस किया जा सकता है।
आज भी यहां रूहों का बसेरा
इस अस्पताल में कई बार प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा भूतों या साया को देखा गया है इस इमारत के बारे में लोगों का मानना है कि यहां उस सुरंग के दिवार के बाहर से यदि कोई गुजरे तो उसे आज भी लाशों की बदबू और किसी अनजाने से डर से रूबरू होना पड़ सकता है। इस इमारत के अन्दर एक बच्चा जो कि हाथ में एक गेंद लिए हुए हो और उसके चेहरे से खून रिस रहा हो लोगों को कई बार देखने को मिला है।इस इमारत के पांचवी मंजील के बारे में भी लोगों में कई किवदंतिया मशहूर हैं। पांचवी मंजिल का कमरा नम्बर 502 इस इमारत की दूसरी सबसे डरावनी और खौफनाक जगह है। इस कमरे की कहानी भी कम रोचक नहीं है। ऐसा बताया जाता है कि जब इस अस्पताल में इलाज किया जा रहा था उस वक्त इस पांचवी मंजिल के कमरा नंबर 502 में एक नर्स ने रात में खुद को फांसी लगा ली थी।उस नर्स की उर्म 29 साल थी और वो अविवाहीत थी उसके कुछ ही दिनों बाद ही एक और नर्स ने उसी कमरे में खुद को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उसके बाद से ही उस कमरे में कोई भी जाने से घबराता था और सप्ताह भर के अंदर ही उस कमरे में भर्ती सभी 29 मरीजों की मौत हो गयी। आज भी उस कमरे में उन दोनों नर्सो को कभी-कभी आपस में बातें करते हुए महसूस किया गया है इस ईमारत में इस तरह के साया या भूतों के होने के बारे में कई बार पुष्टि की गयी। इस क्रम में घोस्ट हंटर्स सोसायटी ने भी एक बार जांच पड़ताल की उनका भी मानना है कि उन्होने इमारत में कई जगह कैमरों को लगाया था जो कि बाद में पता चला कि इस इमारत में कई जगहों पर अपने आप रौशनी या धुआ निकलता है इसके अलांवा भयानक छाया आदी भी देखने को मिलती है।कई साल तक यह इमारत बंद पड़ी रही। अब इस इमारत को लोगों को दिखाने के लिए खोल दिया गया है। इस इमारत में अब लोग प्रायोगिक रूप से भूतों और रूहों को महसूस करने के लिए आते है। इस बारे में कई लोगों ने अपनी राय वयक्त की है और उनका कहना है कि उस इमारत में उन्होने बुरी शक्तियों को महसूस किया है। इस इमारत की सैर के लिए आपको कुछ खास नियमों का भी पालन करना होगा जैसे कि इमारत के प्रबंधन के द्वारा बताए गये क्षेत्रों में ही आप प्रवेश कर सकते है इसके अलांवा अन्य जगहो पर लोगों के जाने की मनाही है।
कैसे कर सकते है सैर वैवरले हिल्स कीइस इमारत को घूमने और जिन्दगी में एक अलग तरह के अनुभव के लिए आप या तो सीधे टिकट प्राप्त कर सकते है या फिर यह आपको आनलाईन भी उपलब्ध है। आनलाईन आपको अपनी पुरी जानकारी देकर अपनी टिकट बुक करा सकते है। इमारत में घूमने का समय और टिकट के दाम। हाल्फ नाईट (इमारत में आधी रात) 4 घंटे 50 डालर, फुल नाईट ( इमारत में पुरी रात ) 8 घंटे 100 डालर।
सुप्रीम कोर्ट ने काले धन के प्रश्न को संवैधानिक परिप्रेक्ष्य में रखकर एक कारगर हस्तक्षेप किया है। न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेड्डी और न्यायमूर्ति एसएस निज्जर की टिप्पणियों से साफ है कि सर्वोच्च न्यायालय इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा अब तक उठाए गए कदमों से असंतुष्ट है।
इसलिए अब उसने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बीपी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में एक तेरह सदस्यीय विशेष जांच दल बना दिया है। कोर्ट की राय में केंद्र सरकार की कार्रवाई विभिन्न क्षेत्राधिकार के विभागों और एजेंसियों में बंटी रही है और वह कहीं पहुंचती नहीं दिखती।
इसलिए अब विशेष जांच दल विभिन्न सरकारी संस्थाओं में तालमेल कायम करेगा और उन्हें समय के मुताबिक जरूरी आदेश देगा। हालांकि कोर्ट ने भी यह माना है कि विदेशों में जमा काले धन को वापस लाना आसान नहीं है, लेकिन अब कम से कम विश्वसनीयता का संकट खत्म होगा। यानी लोगों में भरोसा कायम होगा कि जनता के लूटे गए धन को वापस लाने की सचमुच कोशिश हो रही है। सामान्य स्थितियों में सुप्रीम कोर्ट के इस कदम को न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में दखल माना जाता, मगर काले धन और भ्रष्टाचार का मुद्दा आज जनहित में इतना अहम हो गया है कि किसी भी हलके से ऐसी शिकायत उठने की शायद ही संभावना है। चूंकि जनता की नजर में इन मुद्दों पर सरकार की साख संदिग्ध बनी हुई है, इसलिए कोर्ट के हस्तक्षेप से आम लोग राहत महसूस कर रहे हैं। यह उम्मीद वाजिब है कि कार्रवाई का सूत्र सरकार के हाथ से निकलकर न्यायपालिका के हाथ में चले जाने का बेहतर परिणाम सामने आएगा। इसके बावजूद बाबा रामदेव और सिविल सोसायटी को अपनी सक्रियता बनाए रखने की जरूरत है, ताकि इस मुद्दे पर जनता की जागरूकता बढ़ती रहे और उसके परिणामस्वरूप सरकार पर दबाव भी बना रहे। संभवत: उससे ही इस गंभीर मसले का टिकाऊ हल निकल सकता है।
लंदन। क्या आपने कभी सोचा होगा कि कोई सेनापति अपने सैनिकों को सेक्स करने के लिये डॉल देगा? नहीं ना! मगर यह सच है, नाजी तानाशाह एडोल्फ हिटलर अपने सैनिकों को सेक्स करने के लिये सेक्स डॉल्स देता था। लंदन के अखबर द सन के हवाले से प्राप्त जानकारी के अनुसार हिटलर ने अपने सैनिकों की सेक्स से जुड़ी जरुरतों को पूरा करने के लिये सेक्स डॉल्स के आर्डर दिये थे। इसका कारण यह था कि नाजी सैनिकों ने पेरिस में तैनाती के दौरान फ्रेंच कॉल गर्ल्स से संबंध बनाने शुरु कर दिये थे जिससे उनमें तेजी से यौन सक्रमण फैला रहा था।
विश्व युद्ध के बाद जर्मन सेक्स डॉल पर रिसर्च के दौरान लेखक ग्रैगी डोनाल्ड को हिटलर ने इस गुप्त प्रोजेक्ट के बारे में बताया था। ब्रिटिश अखबार द सन में प्रकाशित खबर के अनुसार 1940 में नाजी वैज्ञानिक ने जर्मन सैनिकों के लिये आरामदायक सिंथेटिक डॉल बना लिये थे। उस समय यह सम्सया काफी गंभीर थी और यौन रोगों के चलते कई सैनिक जंग के मैदान में जाने योग्य नहीं थे।
अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार उस समय पेरिस में अधिक संख्या में कॉल गर्ल्स थी और देह व्यापार का धंधा काफी तेजी से चलता था। वह शिकार की तलाश में सैनिकों के कैंप तक आ जाती थी और उनसे संबंध स्थापित कर लेती थी। संबंध स्थापित करने के बाद सैनिक संक्रमित हो जाते थे और जंग पर जाने योग्य नहीं बचते थे।
इस लिये हिटलर ने उन्हें इस भटकाव से रोकने और संक्रमण से बचाने के लिये सेक्स डॉल्स का सहारा लिया। हालांकि, 1942 में जर्मन सैनिकों ने इन डॉल्स को अपने साथ ले जाने से मना कर दिया और इस प्रॉजेक्ट को बंद करना पड़ा। सैनिकों का कहना था कि युद्ध के दौरान अगर उन्हें ब्रिटिश सैनिकों ने पकड़ लिया तो सेक्स डॉल्स के चलते उन्हें भारी शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी।