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10 जून 2011

आग जलती रहे, जलती रहे,



एक तीखी आँच ने
इस जन्म का हर पल छुआ,
आता हुआ दिन छुआ
हाथों से गुज़रता कल छुआ
हर बीज, अँकुआ, पेड़-पौधा,
फूल-पत्ती, फल छुआ
जो मुझे छूने चली
हर उस हवा का आँचल छुआ !
...प्रहर कोई भी नहीं बीता अछूता
आग के सम्पर्क से
दिवस, मासों और वर्षों के कड़ाहों में
मैं उबलता रहा पानी-सा
परे हर तर्क से।
एक चौथाई उमर
यों खौलते बीती बिना अवकाश
सुख कहाँ
यों भाप बन-बनकर चुका,
रीता,
भटकता-
छानता आकाश !
आह ! कैसा कठिन
...कैसा पोच मेरा भाग !
आग, चारों ओर मेरे
आग केवल भाग !

सुख नहीं यों खौलने में सुख नहीं कोई,
पर अभी जागी नहीं वह चेतना सोयी-;
वह, समय की प्रतीक्षा में है, जगेगी आप
ज्यों कि लहराती हुई ढकनें उठाती भाप !


अभी तो यह आग जलती रहे, जलती रहे,
ज़िन्दगी यों ही कड़ाहों में उबलती रहे। 


Friends till the end of life~~MAKBUL FIDA HUSSAIN

 


कला के कैनवास पर जीवन के बेशुमार रंग बिखेरने वाले अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन अपनी जिंदगी की दास्तां कहते-कहते बुधवार रात को इस जहां को अलविदा कह गए। लेकिन उनके धूसर उजले चित्र हमेशा आवाम को अपने पास बुलाते रहेंगे। 


वे अपनी सूफियाना, अल्हड़ और औलिया मिजाज के लिए मशहूर रहे। हुसैन की कूची बेफ्रिकी से रंग रेखाओं को सिरजने में मशगूल रही। मप्र खासकर भोपाल की कला बिरादरी में हुसैन के असामयिक निधन से गहरा शोक व्याप्त है। उनसे जुड़ी बहुत सारी यादें उनके चाहने वालों के जेहन में कौंध रही है।