कुल पेज दृश्य

27 सितंबर 2010

चपरासी से भी कम वेतन सरकारी शिक्षकों क

सुनने में कुछ अजीब लगेगा, परंतु कड़वा सच है कि बिहार में एक लाख से अधिक सरकारी शिक्षकों को चपरासी से भी कम वेतन मिलता है। इन शिक्षकों को चपरासी भी ताने देते हैं, उन्हें आंखें दिखाते हैं। सरकारी दफ्तरों में काम करनेवाले चपरासी के वेतन आठ हजार से कम नहीं, परंतु इन शिक्षकों को चार से सात हजार ही मिलते हैं।
पंचायत, ग्राम पंचायत, नगर पंचायत व प्रखंड के अनट्रेंड शिक्षकों को 4000, ट्रेंड को 5000 एवं हाईस्कूल के शिक्षकों को 6000 मानदेय के रूप में मिलते हैं। वहीं, प्लस टू के शिक्षकों को 7000 मानदेय, वो भी हर माह नहीं। कभी छह माह तो कभी आठ माह पर। इन शिक्षकों ने जब मानदेय बढ़ाने के लिए धरना-प्रदर्शन शुरू किया तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दो टूक शब्दों में कहा कि जिन्हें नौकरी करनी है करें, वर्ना दूसरी ढूंढ़ लें। उन्होंने यह भी कहा कि चपरासी सरकारी कर्मचारी  हैं।
शिक्षक सरकारी नहीं हैं। ये शिक्षक पंचायत, नगर निगम, जिला परिषद के अधीन कार्यरत हैं। नीतीश ने कहा कि मानदेय बढ़ाने के पहले शिक्षकों की दक्षता की जांच की जाएगी। एनुअल और सप्लीमेंट्री की तर्ज पर परीक्षा होगी। मानव संसाधन विभाग के प्रधान सचिव ने कहा कि शिक्षक नियोजन नियमावली 2006 में स्पष्ट प्रावधान है कि नवनियोजित शिक्षकों का तीन वर्ष बाद मूल्यांकन किया जाएगा। इसी आधार पर शिक्षकों का मानदेय 400 से 500 बढ़ाया जाएगा। इधर, शिक्षकों के वेतन मामले को हवा दे रहे हैं राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद। लोकसभा  चुनाव में करारी हार के बाद चुनाव के लिए उन्हें एक बड़ा मुद्दा मिल गया है।
चंद माह बाद ही बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है। ऐसे में नीतीश सरकार के लिए यह एक बड़ी समस्या बन सकती है? नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री के रूप में 2005 में बिहार की सत्ता संभाली। तब उन्हें विरासत में मिली सूबे की टूटी सड़कें, गरीबी, बेरोजगारी। उस समय सूबे के सभी विद्यालयों में शिक्षकों की कमी थी। दूसरी ओर टीचर ट्रेनिंग किए हजारों युवा बेरोजगार थे। कई ने तो टीचर ट्रेनिंग बीस साल पहले किया था, परंतु अब भी बेरोजगार थे।
नीतीश कुमार ने चुनाव के पहले इन सभी को रोजगार देने की बात कही थी। सत्ता में आने के बाद इतने शिक्षकों की बहाली उनके लिए एक बड़ी चुनौती थी। इसके बावजूद नीतीश सरकार ने निर्णय लिया कि शिक्षकों की बहाली की जाएगी। आनन-फानन में एक लाख से अधिक शिक्षकों की बहाली कर दी। उस समय बेरोजगारों ने यह नहीं देखा कि वे शिक्षक तो बन रहे हैं, पर वेतन उन्हें चपरासी से भी कम मिलेगा? इतने पैसे में उनका गुजारा कैसे होगा? दूसरी ओर नीतीश सरकार की सोच थी कि इन शिक्षकों को उन्हीं के शहर या गांव में पोस्टिंग कर दी जाए। बहाल शिक्षकों की कोई परीक्षा नहीं ली गयी बल्कि डिग्री देख उनकी बहाली कर दी गई।
इसमें ऐसे शिक्षक भी शिक्षक बन गए, जो पठन-पाठन भूल चुके थे। जब शिक्षकों ने स्कूलों में योगदान दिया तो वहां पहले से मौजूद शिक्षकों को पन्द्रह-बीस हजार मासिक मिल रहे थे। यह देख उन शिक्षकों की आत्मा ने धिक्कारा, जो वास्तव में योग्य थे। चाहे जो कुछ हो यह सही है कि शिक्षक बनने के बाद हजारों लड़कियों की शादी बिना दहेज हो गई।

कुंआरे बाप बन रहे छात्र‌-

‌सुनकर चौंकना स्वाभाविक है। परंतु सच है कि भारत में कई छात्र हर माह कुंआरे बाप बन रहे हैं। इसके लिए न इन्हें शादी रचाने की जरूरत है और न ही किसी महिला से संबंध बनाने की। बाप बनने के लिए समाज इन्हें बुरा-भला भी नहीं कर रहा बल्कि शाबाशी के साथ इन्हें मिल रहे रुपए, ‌कभी हजार तो कभी पांच  हजार।
दिल्ली, ‌मुंबई, ‌कोलकाता सहित कई बड़े राज्यों में खुले स्पर्म बैंक में डोनर अधिकतर कम उम्र के छात्र हैं। ये धड़ल्ले से अपना स्पर्म बेच रहे हैं। संबंधित बैंक पहले इनका चेकअप करता है-मसलन कहीं इन्हें एडस,हेपेटाइटिस तो नहीं। इसके पश्चात ही इनका स्पर्म लिया जाता है। बता दें कि भारत में स्पर्म बैंक तो खुल गए, ‌मगर लोक-लाज के भय से इज्जतदार लोग यहां आने से कतराते हैं। ऐसे में छात्र वर्ग की तरफ स्पर्म बैंक का रुझान ज्यादा है। छात्रों को चाहिए रुपए। ये पाकेट खर्च के लिए स्पर्म बेच खुश हो रहे हैं। वे इसके निगेटिव पहलू से बिल्कुल अनजान हैं। बकौल चिकित्सक कई नि:‌संतान दंपति सुंदर बच्चे चाहते हैं। ऐसे में वे यह भी देखते हैं कि डोनर स्वस्थ हो। इसके लिए वे मनमानी रकम देने के लिए भी तैयार रहते हैं।
इधर, ‌डोनेट करने वाले कुछ छात्रों का कहना है कि इससे उनका पाकेट खर्च निकल जाता है। यह पूछने पर कि क्या इसकी जानकारी उनके अभिभावकों को है-वे ना में सिर हिलाते हैं। वास्तव में स्पर्म बैंक की परिकल्पना वैसी नि:‌संतान दंपतियों के लिए की गई थी।, ‌जिनके आंगन में कुछ कारणवश बच्चे किलकारी नहीं भर सकें।
दुनिया के कई देशों में यह पूरी तरह कामयाब  भी है। भारत में भी इसकी शुरुआत बेहतरी के लिए ही हुआ था। यह अलग बात है कि स्थापना के साथ ही यह व्यवसाय बन गया। इसके संस्थापक मोटी रकम वसूल रहे। हालांकि सूत्र बता रहे हैं कि यह अभी पूरी तरह कामयाब नहीं हो सका है।
सरकार को इसपर ध्यान देने की जरूरत है। चंद रुपयों के लिए लोभ में पड़नेवाले छात्रों को भी अपने अभिभावक से परामर्श के पश्चात ही कोई कदम उठाना चाहिए। साथ ही स्पर्म डोनेट करने के लिए लोगों को आगे आना चाहिए ताकि भारत में भी स्पर्म बैंक की परिकल्पना पूरी तरह से साकार हो सके।