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28 मई 2011

मैंने देखा है सेलुलर जेल - काला पानी

विनायक दामोदर सावरकर
के जन्म दिवस 28-05-पर शत-शत नमन.....

सेलुलर जेल, पोर्ट ब्लेयर- जो काला पानी के नाम से कुख्यात थी
नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अंतर्गत इन्हें ७ अप्रैल, १९११  सेलुलर जेलभेजा गया। उनके अनुसार यहां स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था। 
साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का
तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों
को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर
उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। इतने पर भी उन्हें
भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था। ।सावरकर ४ जुलाई, १९११ से २१ मई, १९२१ तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे।

शिक्षाकर्मियों को 10 प्रतिशत अतिरिक्त डीए

रायपुर. राज्य सरकार ने महंगाई भत्ता (डीए)बढ़ाने की शिक्षाकर्मियों की अर्से से चली आ रही मांग गुरुवार को मान ली। अब डेढ़ लाख से ज्यादा शिक्षाकर्मियों को 10 प्रतिशत अतिरिक्त डीए मिलेगा। इससे उन्हें हर माह 400 से 600 रुपए तक लाभ होगा।शिक्षाकर्मियों को 46 फीसदी डीए मिल रहा था, जो बढ़कर 56 प्रतिशत हो गया है। उन्हें इसके अलावा 5 प्रतिशत विशेष भत्ता तथा 15 प्रतिशत अंतरिम राहत भी मिलता है। अतिरिक्त डीए का लाभ 1 अप्रैल 2011 से मिलेगा। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के विशेष सचिव देवाशीष दास ने इसका आदेश जारी कर दिया है। मई का वेतन बढ़े हुए डीए के साथ मिलेगा।
चाहिए छठवां वेतनमान
शिक्षाकर्मी डीए बढ़ाए जाने से ज्यादा संतुष्ट नहीं हैं। उन्हें छठवां वेतनमान चाहिए। छत्तीसगढ़ शिक्षाकर्मी संघ के प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा और शालेय शिक्षाकर्मी संघ के वीरेंद्र दुबे का कहना है कि 10 फीसदी डीए की बढ़ोतरी अपर्याप्त है। शिक्षाकर्मियों के समान ही कार्य करने वाले शिक्षकों को 2006 से छठवां वेतनमान दिया जा रहा है।

चंद्रमा पर बड़ी मात्रा में पानी के सबूत


वैज्ञानिकों ने क्रिस्टल के बीच फंसे मैग्मा का अध्ययन किया
चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी पहले के अनुमानों से ज़्यादा हो सकती है. ये मानना है अमरीका के वैज्ञानिकों के एक दल का जिसने चंद्रमा से लाए गए पत्थरों का नए सिरे से अध्ययन किया है.
ज्वालामुखीय अवशेष या मैग्मायुक्त पत्थर अपोलो-17 अभियान के दौरान धरती पर लाए गए थे.
विज्ञान पत्रिका ‘साइंस’ में छपी शोध रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन के लिए चाँद से लाए गए उन मैग्मा अवशेषों का अध्ययन किया गया जो कि शीशे जैसे पत्थर या क्रिस्टल के बीच फंसे हुए हैं.
उन अवशेषों में अब तक के अनुमानों से 100 गुना ज़्यादा पानी के अंश पाए गए हैं.
इस अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों की राय है कि एक समय चंद्रमा पर कैरीबियन सागर जितना पानी रहा होगा.

उत्पत्ति के सिद्धांत पर सवाल

ये मान्य सिद्धांत है कि चांद की सतह पर ज़्यादातर पानी बर्फ़ीले धूमकेतुओं या जलीय क्षुद्र ग्रहों से आया होगा. लेकिन वहाँ सतह के भीतर कितना ज़्यादा पानी हो सकता है, उसका सही अंदाज़ा ताज़ा अध्ययन से ही लगाना संभव हो पाया है.
अपोलो-17 अभियान के दौरान चंद्रमा की सतह पर दिखी लाल मिट्टी
इस नई मिली जानकारी से चंद्रमा की उत्पत्ति को लेकर नए सवाल पैदा होते हैं.
अभी सर्वमान्य सिद्धांत ये है निर्माण के दौरान धरती की मंगल ग्रह के आकार के किसी पिंड की टक्कर हुई होगी. इस टक्कर के बाद दूर छिटकी पिघली चट्टानों से अंतत: चंद्रमा का निर्माण हुआ होगा.
ऐसे में तो निर्माण के दौरान से ही चंद्रमा की सतह सूखी होनी चाहिए थी, जबकि ताज़ा अध्ययन से पता चला है कि किसी समय चंद्रमा पर बड़ी मात्रा में पानी मौजूद था.
अध्ययन से जुड़े मुख्य वैज्ञानिक कार्नेगी संस्थान के डॉ. एरिक हॉरी के अनुसार चंद्रमा की उत्पत्ति के मान्य सिद्धांतों के समर्थन में बहुत सारे सबूत भी मौजूद हैं, जैसे- धरती पर पाए जाने वाले कई तत्व चंद्रमा पर भी हैं. लेकिन इन बातों का चंद्रमा पर मौजूद पानी के स्तर से साम्य नहीं हो पा रहा है.
डॉ. हॉरी के अनुसार, “मैं समझता हूँ टक्कर वाला चंद्रमा की उत्पत्ति का सिद्धांत सही है, लेकिन उत्पत्ति की प्रक्रिया से जुड़ी कुछ बुनियादी बातें अब भी हमारी समझ से बाहर हैं