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09 अप्रैल 2011

WAH RE ! ATULYA BHARAT



1 टिप्पणी:

  1. हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
    इस हिमालय से कोई
    गंगा निकलनी चाहिए।
    आज यह दीवार,
    परदों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी
    कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
    हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
    हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
    सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद
    नहीं, सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

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