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22 अक्तूबर 2010

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बाजार सजने शुरू

नवरात्र की शुरुआत के साथ ही बाजार सजने शुरू हो गए हैं, या यूं कहें कि बाजार में फेस्टिव सीजन की शुरुआत हो गई है। ग्राहकों को बाजार में नए-नए तरह के सामानों का विकल्प मिलता है, तो दुकानदार भी ग्राहकों को अधिक से अधिक लुभाने के लिए ऑफरों की झड़ी लगा देते हैं। इसके बीच ग्राहक अगर थोड़ी समझदारी दिखाए तो ऑफर का लाभ भी उठा सकता है।

जीरो इंटरेस्ट का क्रेज
बाजार में कई तरह के ऑफर चलते हैं, लेकिन इनमें जो ग्राहकों को सबसे अधिक लुभाता है वह है जीरो इंटरेस्ट लोन, यानी किश्तों पर खरीदारी और वह भी बिना किसी ब्याज के । अगर बात सचमुच ऐसी ही हो जैसा तो क्या बात, लेकिन पड़ताल में डील इतनी सीधी नहीं दिखती।

जीरो इंटरेस्ट की हकीकत
जीरो इंटरेस्ट में कई पेच हैं। पहला यह कि नकद खरीदारी में कंपनियां ग्राहकों को सामान की कीमत पर अच्छा कैश डिस्काउंट देती हैं। जीरो इंटरेस्ट ईएमआई में जाने पर यह डिस्काउंट नहीं मिलता। फाइनेंसिंग के लिए कीमत के अलावा प्रोसेसिंग फीस के नाम पर भी रकम ली जाती है। अमूमन तीन से चार ईएमआई की रकम एडवांस में ले ली जाती है, यानि समूची रकम का लोन नहीं होता। इस तरह से आपको कैश डिस्काउंट भी नहीं मिलता है, ऊपर से प्रोसेसिंग के नाम पर और रकम देनी पड़ती है। इस घाटे की गणना करें, तो पाएंगे कि आप पर 18 से 20 फीसदी ब्याज के बराबर देनदारी बढ़ गई।

फाइनेंस कंपनी को क्या है लाभ
जिस तरह से ग्राहकों को कैश डिस्काउंट मिलता है उसी तरह कंपनियां फाइनेंस कंपनी को भी भारी डिस्काउंट देती हैं। उस डिस्काउंट की रकम फाइनेंस कंपनी की झोली में जाती है, जबकि ग्राहकों से वह सामान की पूरी कीमत पर ऑफर और ईएमआई की गणना करता है।

क्या सचमुच अच्छा नहीं होते जीरो फाइनेंस
ऐसा बिल्कुल नहीं है। मोलतोल में अगर कैश डिस्काउंट भी ले लिया जाए और प्रोसेसिंग के नाम पर अतिरिक्त रकम न देनी पड़े तो यह स्कीम अच्छी है। इसके अलावा महंगे कंज्यूमर ड्यूरेबल के लिए कई बार रकम पूरी नहीं पड़ती, ऐसे में चाहत की वस्तु लेने के लिए इस योजना को तो खराब नहीं कहा जा सकता।

टिप्स
फेस्टिव खरीदारी में कुछ खास बातों का खास ध्यान रखना चाहिए। सामान के उत्पादन और समाप्ति की तारीख जरूर देखनी चाहिए। सस्ते के चक्कर में वैसे उत्पाद कभी नहीं खरीदने चाहिए जिनका चलन खतम हो रहा हो या जो आउट ऑफ फैशन हो रहे हों। खाने-पीने के आयातित सामान में उत्पादन और समाप्ति की तारीख पर खास ध्यान रखना चाहिए। तकनीकी सामान में आफ्टर सेल सर्विस के विकल्प को जरूर जान लें।

फ्रिज में होता है वायरस व बैक्टीरिया

आमतौर पर फ्रिज में रखे सामान को सुरक्षित मान लेते हैं लोग। लेकिन ग्लोबल हाईजीन काउंसिल के ताजा अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि फ्रिज में रखे सामान 70 फीसदी गंदे होते हैं। जबकि 95 फीसदी बाथरूम में बैक्टीरिया और वायरस का साम्राज्य रहता है। इन बैक्टीरिया व वायरस के कारण आम भारतीय पेट की खराबी, सांस की तकलीफ, चर्म रोग, फुड प्वाइजनिंग और एलर्जी का शिकार हो रहे हैं।
काउंसिल के भारत प्रतिनिधि डॉ.नरेंद्र सैनी ने संवाददाताओं से कहा कि हाथ की सफाई ठीक से न होने के कारण बैक्टीरिया व वायरस तेजी से फैलता है। जिन सामान को ऐसे हाथों से छुआ जाता है उसमें बैक्टीरिया व वायरस चला जाता है। कंप्यूटर की 22 फीसदी की बोर्ड में वायरस का साम्राज्य रहता है। जबकि टेलिफोन पर 45 फीसदी वायरस पाया गया है। किचन में काम करने वाली महिलाएं एक ही तौलिए का उपयोग कई कामों में करती है और प्रतिदिन साफ नहीं करती है। जिसके कारण 75 फीसदी वायरस जमा रहता है। हाथ में जमा वायरस छह से 4

इस त्योहार खिल उठे दरो-दीवार

 हर कोई त्योहारों के लिए अपने घर को खास अंदाज में सजाना चाहता है ताकि उसका घर बिल्कुल अलग नजर आए। इसलिए त्यौहारों के शुरू होते ही लोग घर के मेकओवर में लग जाते हैं। कुछ लोग इस काम में प्रोफेशनल्स की मदद लेते हैं, तो कुछ लोग खुद ही इसकी तैयारी में जुट जाते हैं। वैसे भी जरूरी नहीं कि हर बार घर के मेकओवर के लिए किसी एक्सपर्ट की ही मदद ली जाए। आप खुद भी अपनी सोच में रचनात्मकता लाकर अपने घर को एक अलग अंदाज में सजा सकती हैं और हर किसी की प्रशंसा भी पा सकती हैं।
चटख रंगों की राजस्थानी थीम
यदि आपको घर की सजावट में चटख रंग पसंद हैं, तो आपको राजस्थानी लुक जरूर पसंद आएगा। क्योंकि राजस्थानी थीम में चटख रंगों का ज्यादा प्रयोग किया जाता है। नक्काशीदार व चित्रकारी किया फर्नीचर, लकड़ी के झरोखे, खूबसूरत पेंटिंग्स, जिनमें राजस्थान के ग्रामीण पृष्ठभूमि का चित्रण होता है, लकड़ी व कपड़े से बनी कठपुतलियां, वॉल हैंगिंग्स आदि घर के इंटीरियर में जान डाल देते हैं। इसके अलावा बंधेज या चुनरी प्रिंट वाली चादरें, कुशन कवर और परदों से आप अपने घर को राजस्थानी रंग में रंग सकती हैं।
ग्रीनरी बनाम मेडिटरेनियन
घर में प्रकृति का एहसास करना चाहती हैं और ग्रीनरी पसंद है, तो मेडिटरेनियन थीम के आधार पर अपने घर को सजा सकती हैं। इसमें आंखों को सुकून देने वाले आसमानी, समुद्री ग्रीन, क्रीम, वाइबे्रंट ब्ल्यू रंगों का प्रयोग किया जाता है। साज-सज्जा में घास की चटाइयां, छोटी-छोटी रंग-बिरंगी मूर्तियां, आर्टिफिशियल फव्वारे, रंग-बिरंगे कुशंस/ तकिए, टेराकोटा के गमले आदि ले सकती हैं। रॉट आयरन के बने सोफा, टेबल, कैंडल्स होल्डर और अन्य कलात्मक चीजें घर को मेडिटरेनियन थीम
देती हैं।
विक्टोरियन थीम
घर को एलिगेंट लुक देना चाहती हैं, तो विक्टोरियन थीम भी ट्राई कर सकती हैं। घर की साज-सज्जा में बहुत सारे फूलों का प्रयोग किया जाता है। चादर हों या घर के परदे व कुशंस, इसमें फ्लावरी पैटर्न का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। फर्नीचर भी ऐसे इस्तेमाल किए जाते हैं, जिसमें ज्यादा कट्स या नक्काशी न हो। सजावट में सफेद बेस पर बड़े-बड़े प्रिंटों को ज्यादा महत्व दिया जाता है। कमरों के कोने को हाईलाइट करने के लिए बड़े-बड़े वासेज का इस्तेमाल बढ़िया होता है। यदि घर में मम्मी के जमाने का पीतल का गागर हो, तो उस पर खूबसूरत पेंटिंग कर कमरे के किसी कोने में रख सकती हैं। इसी तरह और भी पॉट्स हाें, तो उन्हें घर में कलात्मक ढंग से सजा सकती हैं।
चाइनीज थीम
इस थीम के इंटीरियर में घर की पूरी सजावट में बेहद शोख रंगों का इस्तेमाल होता है, जिसमें मुख्यतः सुनहरे, लाल और काले रंग को प्रमुखता दी जाती है। साथ ही नीले, पीले और हरे रंगों का भी प्रयोग किया जाता है। सिरामिक और पॉटरी के साथ फैब्रिक या अपहोल्स्ट्री में फूल, पंछी, मछली और ड्रैगन जैसे डिजाइन सिल्क से कशीदाकारी किए होते हैं, जो पूरेघर को चाइनीज लुक देते हैं। साथ ही घर की खिड़कियों और हॉल में मिट्टी की विंड चाइम टांगें। या अन्य चाइनीज सजावटी वस्तुओं को घर की साज-सज्जा में शामिल कर सकती हैं।
मोरक्कन थीम
इस थीम में चमकीले रंगों का इस्तेमाल किया जाता है, जो ऑरेंज, रेड, डीप ब्लू व ग्रीन, सैंड, गोल्ड और सिल्वर शेड्स लिए होते हैं। सजावट के लिए टेराकोटा टाइल्स, सिरामिक या टेराकोटा के पॉट्स, बुनी हुई टोकरियां, रंगीन मोजैक टाइल्स, शीशे के लालटेन, शीशे के जार में सजी बेहतरीन सुगंध देती एरोमा कैंडल्स, पाम के पौधों आदि का इस्तेमाल किया जाता है।
कुछ देसी हो जाए
घर की बैठक को पुराने जमाने के अंदाज में भी सजा सकती हैं। इसके लिए आपको ज्यादा खर्च करने की भी जरूरत नहीं है। पुरानी चौकी दीवार से लगाकर उसपर गद्दा रख दें। आकर्षक चादर बिछाने के बाद उस पर बड़े आकार के मसनद और विभिन्न शेप के कुशंस रखकर आरामदायक और देसी लुक दिया जा सकता है। डेकोरेटिव पीसेज में गणेश की मूर्ति, पिंजरा, लालटेन, मिट्टी की बनी घंटियाें आदि का प्रयोग कर सकती हैं। अगर आपके पास पुरानी बास्केट हो, तो उसे लेस या गोटा से सजा कर दीवार से टांग सकती हैं। कमरे में यदि गमला रखना चाहती हैं, तो पीतल के बने वासेज या मिट्टी के डिजाइनर गमलों को फूल से सजाकर रख सकती हैं। इस तरह अपनी रचनात्मकता का इस्तेमाल कर घर को देसी लुक दे सकती हैं।ह्ल
जापानी स्टाइल
बात जब घर का मेकओवर करने की हो, तो फर्नीचर को इसकी महत्वपूर्ण कड़ी माना जाता है। ऐसे में अगर आप जापानी थीम पर गौर करें, तो यह हर तरह के घर के लिए परफेक्ट होता है। क्योंकि जापानी इंटीरियर में भारी-भरकम फर्नीचर की जगह हलका फर्नीचर इस्तेमाल किया जाता है। ये ट्रेंडी होने के साथ-साथ किफायती भी होता है। इसमें फर्नीचर या अन्य साजो-सामान की वस्तुएं ज्यादातर बैंबू और सेरामिक की बनी होती हैं। वैसे तो इसमें ब्राउन, बेज और ग्रे जैसे हल्के रंगों का प्रयोग ज्यादा किया जाता है, लेकिन फर्नीचर आमतौर पर गहरे रंगों यानी डार्क वुड जैसे ब्लैक रंग में होता है। टी-पॉट्स, टी-सेट्स, पेपर से बने लालटेन, पेन होल्डर, पेपर फैन, इकेबाना जैसी एक्सेसरीज से घर को सजा सकती हैं।

'शिकारी' नेता आएगा, चुनावी जाल बिछाएगा

बिहार के सुपौल, मधेपुरा और सहरसा ज़िले को मिथिलांचल का कोसी अंचल भी कहा जाता है. दो साल पहले कोसी नदी ने नेपाल-बिहार सीमा क्षेत्र में कुसहा तटबंध तोड़कर बिहार के इन तीनों ज़िलों में भारी तबाही मचाई थी.

इस पीड़ा से जुड़े सवाल यहाँ के चुनावी मुद्दों वाली बहस में पीछे छूट गए लगते हैं.

इस बार छह चरणों में हो रहे बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में ही कोसी अंचल के मतदाता वोट डालेंगे.

लेकिन वोट किसे और क्यों देंगे, इस सवाल पर बंटे हुए मतदाताओं के सामने प्राय सभी प्रमुख दलों ने जाति, व्यक्ति, पैसा और परिवार से जुड़े तमाम चारे डाल दिए हैं

चुनावी माहौल ऐसा बना दिया गया है कि कोसी-प्रलय के समय भारी जनाक्रोश से भयभीत सत्ता ने कोसी अंचल पुनर्निर्माण का वायदा अभियान चला कर उसे ठंडा किया.
लेकिन वो वायदा ऐसा ठंडा पड़ा कि फिर पांच साल के लिए जनादेश मांग रही उस सत्ता के सामने गरम सवाल बन कर खड़ा भी नहीं हो सका.
कोसी का प्रकोप


यहाँ तक कि विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (राजद), लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) और काग्रेस ने भी कोसी अंचल की इस त्रासदी को बड़ा चुनावी मुद्दा बना कर यहाँ के लाखों बाढ़-पीड़ितों में बेहतर पुनर्वास की उम्मीदें जगाना ज़रूरी नहीं समझा.
कोसी-त्रासदी का सबसे ज़्यादा भुक्तभोगी ज़िला है मधेपुरा. वहाँ के मतदाता चुनाव के संदर्भ में इस क्षेत्र के रुख़ या रुझान का अपने ही नज़रिए से दो टूक विश्लेषण कर डालते हैं.
यहाँ भी राजपूत-ब्राह्मण को अंदर से लालू और नीतीश विरोधी बताने, मुस्लिम-यादव के बीच फिर से तालमेल होने या कांग्रेस के पक्ष में सवर्ण, दलित और मुस्लिम समाज के बढ़ते रुझान की ही चर्चा लोगों के बीच अधिक हो रही हैऐसे विश्लेषणों से अलग इस कोसी अंचल को राज्य का सबसे अधिक पिछड़ा इलाक़ा बनाए रखने वाली आपराधिक राजनीति की पहचान और उस पर चोट जैसी चुनावी समीक्षा इस ' पेड न्यूज़ ' के ज़माने में होती कहाँ हैलोक-राशि के वैध-अवैध उपभोग वाले राजसुख से जुड़ी राजनीति अपने तमाम चुनावी वायदों से बेपरवाह दिखती हैक्योंकि चुनाव के समय मतदाता भी अपने हक़ वाले असली मुद्दों से भटकते हुए फिर से तोते की तरह शिकारी नेता के चुनावी जाल में फंस जाते है.