पश्चिम बंगाल सरकार की हार या वामपंथी विचारधारा की?
पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और उसके सहयोगी दलों की ऐतिहासिक हार के बाद क्या भारत की संसदीय राजनीति में वामपंथ अप्रासंगिक हो गया है?पश्चिम बंगाल में लगातार चुनाव जीतकर रिकॉर्ड बनाने वाली मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और वाममोर्चा की बाक़ी पार्टियाँ तीस वर्ष के बाद विधानसभा में विपक्ष की क़तारों में बैठेंगी. क्या वाममोर्चे की इस दारुण हार को पूरी वामपंथी विचारधारा की हार माना जा सकता है या फिर पश्चिम बंगाल की जनता ने सिर्फ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों को ख़ारिज किया है?