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30 मई 2011

संसद की मानसून सत्र

संसद की मानसून सत्र पर अच्छी लिखी एक कविता आप सब की नज़र है:
सुनते हैं दाउद फिर चर्चा में आएगा
अयोध्या का मुददा गरमाएगा
सीबीआई का नाम उछलेगा
पाकिस्तान पर बहस होंगे.
संसद में हंगामा होगा
राष्ट्रमंडल खेलों की खबर होगी
खबर देश के विकास और चमक की होगी
कुछ और बेवजह के मुद्दे होंगे.
संसद के अंदर-बाहर बहस होगी
बहस नहीं तो स्थगन होगा
अखबार टीवी का सदानंद होगा
बस बहस में गरीबी बेरोजगारी नहीं होगी
मजदूरों का खटना और भूखों मरना
युवाओं का भूखों भटकना नहीं होगा.
बस बहस में गरीबी बेरोजगारी नहीं होगी
और सब होगा और सब होगा|
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.........osho

तुम अकेले में बेचैन होते हो। कहते हो क्या करें, कहां जाए, किसको मिले? मित्र खोजते हो, क्लब जाते हो, होटल में बैठते हो, सिनेमा देख आते हो, मंदिर पहुंच जाते हो, लेकिन तुम्हारी खोज दूसरे की खोज है। कोई दूसरा मिल जाए तो थोड़ा अपने से छुटकारा हो, नहीं तो अपने से घबड़ाहट होने लगती हैं। अपनी ही अपने से ऊब पैदा हो जाती है। तुम अपने को झेल नहीं पाते। तुम अपने से परेशान हो जाते हो। तो पत्नी को खोजते हो, पति को खोजते हो, बच्चे पैदा करते हो--भीड़ बढ़ाते जाते हो, इसमें उलझे रहते हो।
अब मेरे पास लोग आते हैं। अगर वे अकेले हैं, तो दुखी। वे कहते हैं, हम अकेले हैं। अगर परिवार में हैं, तो दुखी हैं। वे कहते हैं, परिवार है। अकेले हैं तो अकेलापन काटता है। अकेलेपन से बचन के लिए भीड़ इकट्ठी कर लेते हैं, तो भीड़ सताती है। फिर वे कहते हैं दबे जा रहे हैं, व्यर्थ मरे जा रहे हैं, बोझ ढो रहे हैं, कोल्हू के बैल बन गयी हैं। पत्नी है, बच्चे हैं, अब इनको पालना है, शिक्षा दिलानी है, शादी करनी है, अब तो फंस गए! जब तक फंसे नहीं थे तब तक लगता था, क्या करें अपने-आप? अपने साथ क्या करें? कुछ सूझता न था। अकेले-अकेले ऊब मालूम पड़ती थी कुछ चाहिए करने का।
साध असंगी संग तजै। साधु तो वही है जो असंग को साधता है, अकेलेपन को साधता है। जो कहता है कि मैं अपने अकेले मैं आनंदित रहूंगा। जो धीरे-धीरे अपने निजरूप में उतरता है। जो अपने ही भीतर गहरा कुआं खोदता है, और उसमें डूबता है। एक ऐसी घड़ी आती है जब अपने ही केंद्र पर कोई पहुंच जाता है, तो फिर किसी के साथ की कोई जरूरत नहीं रह जाती।
इसका यह मतलब नहीं कि तुम जंगल भाग जाओ। जंगल भी वही भागता है जो पहले अपन से भागने के लिए भीड़ में फंसा। अब भीड़ से बचने के लिए जंगल भागता है। जंगल में फिर अकेला हो जाएगा, फिर भागेगा।
                   .........osho

osho

चौबीस घंटे किसी भी एक चीज को मत पकड़ लेना।
जीवन में दो घाट हैं, दो किनारे हैं जीवन की सरिता के। श्रम है, विश्राम है; जागना है, सोना है। इसीलिए तो पलक झपती है, बंद होती है। इसीलिए तो श्वास भीतर आती है, बाहर जाती है। इसीलिए तो जन्म होता है, मौत होती है। इसलिए तो स्त्रियां हैं, पुरुष हैं। जीवन पर दो घाट हैं। और दोनों का जो संतुलन में संभाल लेता है वही परमात्मा को उपलब्ध होता है।
एक को मत पकड़ लेना। एक को तुमने पकड़ा तो तुमने चुनाव कर लिया, आधे का पकड़ा आधे को तुमने छोड़ दिया। वह आधा भी परमात्मा है। 

                                       ..........osho

का़बलियत किसी जाति,धर्म या लिंग से नही आती.

का़बलियत किसी जाति,धर्म या लिंग से नही आती. जयललिता, मायावती, शीला
दीक्षित आदि पहले भी मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. सभी ने देखा है कि उन्होंने
क्या किया. उनके प्रदेश में कल्याण की बात तो छोड़ ही दीजिए, उन्होंने
महिलाओं के उत्थान के लिए क्या किया है? वहीं एक मुख्यमंत्री नीतिश कुमार
हैं जिन्होंने महिलाओं का कल्याण करने के साथ-साथ हर क्षेत्र मे उनसे कहीं
बेहतर काम किया है.

फिर भी मेरा देश महान

 देश में घोटाला, खुले घूम रहें हैं बेईमान
 देश के नेता चोर व बेईमान,फिर भी मेरा देश महान
 गरीब रोटी को तरसे, आत्महत्या करे किसान
लूटों मेरे देश के गद्दारों, फिर भी मेरा देश महान
 कभी धर्म के नाम पर कभी जाति के नाम पर
करो राजनीति खुलेआम, फिर भी मेरा देश महान
 भाजपा हो, या हो कांग्रेस सब के सब चोर व बेईमान
कहीं रिश्वत तो कहीं घोटाला, फिर भी मेरा देश महान
 राजा ने की 2G स्पेक्ट्रम घोटाला खुलेआम, बेच डाला ईमान
येदुरप्पा ने की जमीं घोटाला सरेआम,  फिर भी मेरा देश महान
 किसी ने खाया कफ़न सहिदों का, किसी ने की रक्षा घोटाला
सहिदों को भूल गए सब बेईमान, फिर भी मेरा देश महान
 दंगा सियासतदां तुम कराओ और झुलसे जनता आम
हमारी जख्मो पर करो सियासत, फिर भी मेरा देश महान
 किसी को घूसखोरी की आज़ादी कोई करे कत्ल सरेआम
इन्हें हैं आज़ादी बाकी सब गुलाम, फिर भी मेरा देश महान
                       -----------      अली सोहराब

मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरा मोती... भारत की बात करनी है

तो शुरुआत भारत यानी मनोज कुमार से करते हैं. भारत कुमार की 1967 में आई
फिल्म उपकार का यह गाना पिछले कई सालों से रिचुअल की तरह सिर्फ राष्ट्रीय
पर्वों-26 जनवरी, 15 अगस्त और 2 अक्टूबर को ही सुनाई पड़ता है. 1967 और
1947 के बीच 20 साल का फासला.1962 में चीन से हुई लड़ाई भी हम हार चुके
थे. गांधी, नेहरू भी हमें छोड़ कर जा चुके थे. पर हमारा जोश और जज्बा अभी
हाल तक बरकरार था. उसमें कोई कमी नहीं आई थी. बहुत दिन नहीं हुए, जब देश
की आन-बान और शान के लिए जीना मरना फख्र की बात मानी जाती थी.

समय
बीता, हरित क्रांति और श्वेत क्रांति के बीज पड़े. पंजाब में हरित क्रांति
का असर दिखने लगा तो गुजरात में आणंद श्वेत क्रांति का प्रतीक बन गया.
यानी मेरे देश की धरती अभी सोना उगल रही थी. खेत लहलहा रहे थे, खलिहान
अनाजों के ढेर से अटे पड़े थे. देखते ही देखते आणंद डेयरी का टेस्ट ऑफ
इंडिया फेम अमूल ब्रांड अमूल्य बन गया. एक बार फिर भारत की बात कर करते
हैं, क्योंकि उनकी क्रांति अभी तक नहीं आई थी.

1981
में आई इस फिल्म में सोना उगलने की कहानी तो नहीं थी, पर इसमें आजादी की
लड़ाई के बहाने अंग्रेजों से लड़ाई की बानगी जरूर पेश की गई थी. कहां तो
इस फिल्म से प्रेरणा मिलनी चाहिए थी, और कहां इसके बाद के दौर में बड़ी
खामोशी से स्वतंत्रता का मतलब ही बदल गया. स्वतंत्रता कब स्वच्छंदता में
तब्दील हो गई, किसी को पता ही नहीं लगा.

1984 में
इंदिरा गांधी ने भी अचानक साथ छोड़ दिया. फिर आया राजीव गांधी का जमाना.
कहां तो राजीव गांधी यह बता कर भ्रष्टाचार की पोल खोल रहे थे कि केंद्र
सरकार द्वारा दिए गए 100 रुपये में से महज 15 रुपये ही आम आदमी तक पहुंचते
हैं, और कहां वह खुद ही भ्रष्टाचार के समुंदर में डूबने उतराने लगे. राजीव
गांधी पर स्वीडन की सबसे बड़ी हथियार निर्माता कंपनी बोफोर्स से तोप सौदे
में दलाली खाने का आरोप लगाकर विश्वनाथ प्रताप सिंह खुद तो राजर्षि बन गए,
पर राजीव गांधी की लुटिया डूब गई.

लगभग 16 मिलियन
डॉलर का यह घोटाला इसलिए भी बहुत अहम था, क्योंकि इसमें इमोशनल अपील थी और
यह देश की सेना व सुरक्षा से जुड़ा मसला था. इसी के बाद एक नारा बहुत
लोकप्रिय हुआ था, 100 में 90 बेईमान, फिर भी मेरा देश महान! फिर तो
घपलों-घोटाला का जैसे दौर ही शुरू हो गया. नए घोटाले होते, कुछ दिनों तक
मीडिया की सुर्खियां बनते, चर्चाएं, बहस मुबाहिसा होता और फिर अपनी कड़वी
यादें छोड़ वे इतिहास के पन्नों में समा जाते.

4000
करोड़ का हर्षद मेहता शेयर घोटाला, 1000 करोड़ का केतन पारेख शेयर घोटाला,
18 मिलियन डॉलर का हवाला घोटाला, 900 करोड़ का चारा घोटाला, ललित मोदी,
शशि थरूर का आईपीएल घोटाला, 14,000 करोड़ का सत्यम कंप्यूटर्स घोटाला और
20,000 करोड़ के तेलगी स्टांप घोटाले की अब कभी कभार सिर्फ चर्चा ही होती
है.

2010 को घोटालों का साल कहा जाए तो कोई
अतिश्योक्ति नहीं होगी. इस साल सामने आए दो मामलों ने अब तक हुए सभी
घोटालों को बौना साबित कर दिया. राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान 70,000 करोड़
का खेल हो गया. लगभग एक दशक तक वायुसेना में अफसर रहे सीडब्यूजी के
महाकप्तान सुरेश कलमाड़ी ने हजारों करोड़ रुपये हवा में उड़ा दिए. हवा में
उडऩे का तो उन्हें पहले से अनुभव था, अलबत्ता सीडब्ल्यूजी के बहाने हवा
में रुपये उड़ाने का उन्हें नया अनुभव हासिल हो गया. अब कितने रुपये किस
पहाड़ी, नदी या समुद्र में गिरे, यह पता लगाना आसान काम नहीं है.

अब
तो ज्यादा से ज्यादा यही हो सकता है कि उन्हें किसी भी चीज को उड़ाने की
इजाजत नहीं दी जाए. हालांकि कॉमनवेल्थ गेम्स में जब भारतीय खिलाडिय़ों ने
गोल्ड मेडल जीतना शुरु किया तो लगा कि अभी भी इस जुमले की प्रासंगिकता
थोड़ी बची हुई है कि मेरे देश की धरती सोना उगले... पर वह सब घोटाले के
गर्द-ओ-गुबार में न जाने कहां गुम हो गया. 

2011
में जब कुछ महीने बाकी रह गए थे तो घोटालों का सिलसिला कैसे खत्म हो सकता
था. नवंबर में सामने आया 1.76 लाख करोड़ का 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला. सीएजी
रिपोर्ट में कहा गया कि संचार मंत्री ए राजा ने 2जी लाइसेंस की नीलामी में
न केवल हर स्तर पर नियम-कानूनों की अनदेखी की बल्कि दूरसंचार कंपनियों को
कौडिय़ों की तरह लाइसेंस लुटा दिए. फिर तो दिल्ली और तमिलनाडु की राजनीति
में जैसे भूचाल आ गया. सोनिया गांधी-राहुल गांधी के इशारों पर चलने वाली
मनमोहन सिंह सरकार की जब ज्यादा फजीहत हुई, तो राजा को इस्तीफा देकर रंक
बन जाने के लिए कहा गया.

शुरुआती ना-नुकुर के बाद
आखिरकार ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया. जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं, इस घोटाले
की परतें खुलती जा रही हैं. नए नए नायक, सहनायक और खलनायक सामने आते जा
रहे हैं. साल खत्म होने में अभी कुछ दिन बचे हैं. महाघोटाले के तौर पर कोई
और घोटाला सामने आ जाए तो हैरान होने की जरूरत नहीं है. वैसे 2012 में अगर
कोई उपकार का सीक्वल यानी उपकार-2 बनाने की सोच रहा हो तो वह उसमें एक
गाना रख सकता है, मेरे देश की धरती सोना निगले, निगले हीरा-मोती.फिल्म और
गाना दोनों हिट होगा, इसकी गारंटी दे सकता हूं.

हम कब तक विकासशील देश बने रहेगे , हम कब विकसित देश बनेगे,

१-  हमारे देश में यह प्रचारित किया गया है  की भारत बहुत ही गरीब देश है, यदि यह देश  गरीब होता तो क्या जवाहर लाल नेहरू का कपडा पेरिस में धुलने जाता.
२-  दुनिया  भर के विदेशी आक्रमण क्या हमारी गुदड़ी चुराने के लिए हुए थे ,
३-  चंगेज खान ने ४ करोड़ लोंगो की हत्या करके क्या अपने घोड़ो पर ईट और पत्थर लाद कर  ले गया था.
४- सोमनाथ मंदिर को बार बार सोने से कौन भर देता था यदि हमारे पुरखे गरीब थे.
५- श्रम करने वाला कभी गरीब हो ही नहीं सकता है, हमारे किसान औसत १४ घंटे काम करते  है, यह गरीब क्यों है,
६- आज हमारे  देश से विदेशी कंपनिया आधिकारिक रूप से २३२००० करोड़ का शुद्ध मुनाफा लेकर वापस अपने देश जा रही है, बाकि सभी तरह का फर्जी   हिसाब, उनका आयातित कच्चा माल का भुगतान , चोरी आदि जोड़ा जाय तो एह रकम २५,००,००० करोड़ सालाना बैठता है. क्या कोई गरीब देश इतना टर्न ओवर पैदा करवा सकता है.
७- हमारे देश से दवाओ का सालाना  कारोबार १०,००,००० करोड़ का है, क्या यह गरीब देश का निशानी  है,
८- हमारे देश में सालाना ६,००,००० करोड़ का जहर का व्यापर विदेशी कंपनिया कर रही है, क्या या गरीबी निशानी है,
९- हमारे देश में १०,००० लाख करोड़ खनिज पाया जाता है और इसका दोहन भी विदेशी कंपनिया बहुत ही सस्ते भाव पर कर रही है, तो हम गरीब है,
१०-  यदि हमारे बैंक में ५,००,०००/- रूपया है तो हमारे जेब  में औसत ५०००/- रूपया से ज्यादा नहीं रहता है यानि पूरे पैसे का १ % तो फिर हमारी सरकार ने २५ळाख़ः  करोड़ का नोट क्यों छपवा रखा है और छपवाती ही जा रही है, इसका प्रयोग कौन कर रहा है और कैसे कर रहा है,
११- जब हम रॉकेट  और सैटेलाईट बना कर चाँद  पर पहुच  सकते है तो नोट छपने का काम उन विदेशी कंपनियों को क्यों दिया गया है जो हमारे पीठ में छुरा घोपकर उसी  डिजाइन  में थोडा सा न दिखने  वाला  परिपर्तन करके खरबों रुपये का नकली नोट छापकर विदेशी खुफिया तंत्रों को बेचकर हमें कंगाल बना रही है,
१२- यदि हम गरीब होते तो क्या अंग्रेज यहाँ खाक छानने आये थे. राबर्ट क्लाइव ९०० पानी वाले जहाज भरकर  सोना चांदी  हीरे सिर्फ कलकत्ता से कैसे ले गया था.
१३- यदि हम गरीब होते तो हमारे देश दे आजादी के बाद ४०० लाख करोड़ रुपया विदेशी बांको में कैसे जमा हो गया है.
१४- हमें शुरू से ही भीख मागने की आदत पद जाये , इसके लिए हमारे स्वाभिमानी बच्चो को स्कूल में ही कटोरा  पकड़ाकर  खरबों की लूट जारी है, मिड दे मील दे रहे है.
१५- हम काहिल हो जाए , इसके लिए नरेगा योजना  में  खरबों की लूट का पैसा कौन दे रहा है, हम गरीब इसे दे रहे है.
१६- राजस्व के नाम पर हर गली में शराब की दुकान खोली जा रही, औसत में यदि १०० रुपये की विक्री होती है तो सरकार  सिर्फ २ रुपये मिलते है, क्या गरीब को शराब परोसी जाती है, भारत में ३५००० शराब की अधिकृत दुकाने है, यह लूट का पैसा क्या गरीब दे सकता है,
१७- यदि हम गरीब  होते तो विदेशी यहाँ हर प्रकार की वास्तु फ्री में बेचने के लिए आते.

हमारा देश करीब एकदम नहीं है, इसे विदेशी शिकंजे में फंसाकर टी वि और अखबार के जरिये गरीब प्रचारित किया जाता है, जिससे हमारा रुपया १ डालर में ५० मिले क्योकि हमारे नेताओ का पैसा विदेशी बैंको मे डालर में जमा है. भारत के लोग हफ्ते में ९० घन्टा काम करते है, अमेरिका के लोग हफ्ते में ३० घंटा काम करते है, हमारे १ रुपये में ३ डालर मिलाना चाहिए, यह बहुत बड़ी साजिस है की हम आयात के नाम पर जो भी हथियार, उपकरण आदि खरीदते है, उसका ५० गुम दाम अदा करते है औए बाद में वह पैसा विदेशी खातो में जमे हो जाता है कमीशन के बतौर.

मैं जेल गया तब भी मेरे न्यूज चैनल ने मुझे सेलरी दी

    : इंटरव्यू (पार्ट-दो) : मुंतज़र अल ज़ैदी  
(इराकी पत्रकार) :

मुंतज़र अल ज़ैदी पिछले दिनों दिल्ली में थे. इराक में बुश पर जूता फेंककर दुनिया भर में चर्चित हुए ज़ैदी बेहद समझदार और तार्किक व्यक्ति हैं. न्यूज एक्सप्रेस के एडीटर (क्राइम) संजीव चौहान ने मुंतज़र अल ज़ैदी से कई सवाल किए और जै़दी ने सभी जवाब ऐसे दिए जिसे पढ़-सुनकर उनके प्रति प्यार बढ़ जाता है. पेश है इंटरव्यू का आखिरी

सवाल- दुनिया कह रही है मुंतज़र ने जूता कल्चर को जन्म दिया है...जो कि गलत है, ऐसा नहीं करना चाहिए था।
जबाब- अगर मैं, और मेरा जूता फेंकना गलत था, तो फिर इराक में बेकसूरों पर बम बरसाने वालों को क्या कहेंगे ?

सवाल- आपने बुश पर जूता फेंका। इसके बाद भारत में भी इस तरह की
जूता फेंकने की कई घटनाएं हुईं। एक पत्रकार ने तो भारत के गृहमंत्री पर
जूता फेंक कर मारा। यानि आपके द्वारा दिया गया जूता-कल्चर दुनिया फालो कर
रही है?

जबाब- नहीं। बिल्कुल मुझे फालो नहीं करना चाहिए। हर किसी पर जूता
फेकेंगे, तो जूते की मार की चोट कम हो जायेगी। जब तक आप पर, आपके देश और
आपके समाज पर कोई बम-गोली न बरसाये, तब तक जूता न उठायें। जो जूते के लायक
है, उसे जूता दें और जो गुलदस्ते के काबिल है, उसका इस्तकबाल गुलदस्ते से
करें।
सवाल-  आपने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बुश पर जूता फेंका, तो
आपके चैनल के आधिकारियों और आपके हमपेशा साथियों (जहां आप नौकरी करते थे)
की प्रतिक्रिया क्या थी? क्या आप नौकरी से बाहर कर दिये गये?

जबाब- सब खुश थे। देश खुश था। इराक के हमदर्द खुश थे। जब तक मैं जेल में
रहा उतने महीने (.....करीब नौ महीने) की मेरी तनख्वाह मेरे घर भिजवाई गयी।
और जब जेल से बाहर आया, तो पता चला कि न्यूज चैनल ने मुझे और मेरे परिवार
को रहने के लिए एक फ्लैट का भी इंतज़ाम कर दिया था।
सवाल- जूता कांड के बाद आप इराक के हीरो बन गये, फिर भी आपको
वीजा किसी अरब या यूरोपीय देश ने नहीं दिया, सिवाये भारत के? इसे क्या समझा
जाये? मुंतज़र अल ज़ैदी की मुखालफत या इन देशों पर अमेरिका का भय?
जबाब- मुझे किसी ने दिया हो वीजा न दिया हो। क्यों नहीं दिया? सबका निजी
मामला है। लेकिन भारत ने मुझे वीजा देकर साबित कर दिया, कि उसे किसी का डर
नहीं है। मुझे लगता है कि वाकई आज भी दुनिया में भारत ही सबसे बड़ा
लोकतांत्रिक देश है।
सवाल- कैसे-कैसे लगवा पाये भारत का वीजा? क्या क्या मशक्कत करनी पड़ी?
जबाब- दिल्ली में रहने वाले इमरान जाहिद साहब मेरे दोस्त हैं। उन्होंने
बात चलाई थी। मैं गांधी जी को करीब से छूना, देखना, उनसे बात करना चाहता
था। मेरी साफ मंशा, इमरान भाई और महेश साहब (भारतीय फिल्म
निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट) की कोशिशें कामयाब रहीं। और अब मैं गांधी और
आपके सामने हूं।
सवाल- हिंदुस्तान की सर-ज़मीं को छुए हुए दो दिन हो गये हैं, कल चले जायेंगे आप इराक ? यहां से हमवतन (इराक) क्या लेकर जा रहे हैं?
जबाब- जिंदादिल भारत की मिट्टी की खुश्बू, यहां के लोगों से मिला प्यार
और भारत की सर-ज़मीं पर जीया हर लम्हा, हिंदुस्तान की मेहमानवाजी अपने साथ
लेकर जा रहा हूं।
सवाल- भारत में गांधी जी की समाधि ही देखने की तमन्ना क्यों थी ?
कहने को दुनिया का अजूबा और प्यार का प्रतीक ताजमहल भी भारत में ही है।

जबाब- इराक ने कुर्बानियां दी हैं। गांधी ने कुर्बानी दी। वे आज़ादी के
नुमाईंदे और आइकॉन थे। उन्होंने अत्याचारों के खिलाफ जिस चिंगारी से आग
लगाई, वो देखिये (गांधी समाधी पर जल रही लौ की ओर इशारा करते हुए) आज भी जल
रही है। ताजमहल पर भी क्या ऐसी ही लौ जलती है?
सवाल- आप गांधी से प्रभावित दिखते हैं, ज़िंदगी में गांधी का सा कुछ किया भी है?
जबाब- जेल के भीतर ही तीन दिन तक अनशन पर बैठ गया था।
सवाल- द लास्ट सैल्यूट लिखने के पीछे क्या मंशा थी ?
जबाब- "द लास्ट सैल्यूट"  एक बेगुनाह पर अत्याचारों का सच है। बिना
मिर्च-मसाले के। वो सच जिसे भोगा पूरे देश ने,  लेकिन आने वाली पीढ़ियों के
पढ़ने को कागज पर इतिहास लिखा सिर्फ मैने (मुंतज़र अल ज़ैदी ने)।
सवाल- इराक और भारत में फर्क?
जबाब- इराक का मैं बाशिंदा हूं। भारत के बारे में पढ़ा-सुना है। सिर्फ
दो-तीन दिन ही रह पा रहा हूं यहां (हिन्दुस्तान की सर जमीं पर) । इराक में
अमेरिका का अत्याचार है, और भारत में अपना लोकतंत्र। आप खुद अंदाजा लगा
लीजिए दोनो देशों में । कौन पॉवरफुल है?
                                                                              (regard to vijay sharma)