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31 मई 2011

जय क्रांति जय हिंद

 
साथियों
जो आदमी अपने साथी मनुष्यों द्वारा किये जने वाले अत्याचार का विरोध करने के प्रयास में,अपनी जान पर खेलते हुए अपनी सारी जिंदगी न्योछाबर कर देता है
वह अत्याचार और अन्याय के सक्रिय और निष्क्रिय समर्थको की तुलना में एक संत है,भले ही उसके विरोध से अपनी जिंदगी के साथ साथ अन्य जिन्दगिया भी क्यों ना नष्ट हो जाती हो!ऐसे व्यक्ति पर पहला पत्थर वही मरने का हक़दार है जिसने कभी कोई पाप ना किया हो!
भगत सिंह जेल डायरी पेज नंबर २८७
जय क्रांति जय हिंद

गगन को अहंकार देने वाला

कुछ करने के लायक नहीं, जो उसको मित्र मिलता उसको वह शत्रु समझता स्वयं परेशान, घर परेशान, माता-पिता परेशान, घर में युध्द क्षेत्र बनाकर अपने अहंकार की लाठी लेकर, मन्यु क्या करूॅ, कैसे करूॅ, मित्रो के पास जाता, मित्र भी उसके अभिमान को चुर-चुर करने के लिए जाल बिछाकर बैठे है,कोई मार्ग नहीं दिखा रहा है, सारे मार्ग बंद होकर अपने आप की अंताहकर्ण में रोता, अपने आप को कोसता, मैं तो सबका भला करने वाला सबने मुझे बर्बाद कर दिया। ईश्वर का मार्ग अपनाता है और ईश्वर के सानिध्य में जाने का प्रयास करता है, ईश्वर दयालु, प्रेम का सागर अपनी राह में चलने का ज्ञान देना आरंभ करते है और ईश्वर से वो प्रश्न करता और ईश्वर उसे मार्गदर्शन करते, ईश्वर के सानिध्य में चलने वाला अभिमन्यु राहगीर बन गया है। स्वयं भटका हुआ दूसरो को सलाह देता और उनको ईश्वर के सानिध्य में जाने को कहता, पर संसार अपराधी उसकी बातो को न समझकर उसको पागल समझते है, पर अभिमन्यु उस कर्ता ईश्वर से प्रार्थक बनकर पूछता और लिखता, ईश्वर से पाया हुआ ज्ञान संसार के सम्मुख रखूॅगा, संसार भटका हुआ, लूटा हुआ कंगाल उनको धनवान बनाउॅगा, दुखियारे के दुख दूर करूॅगा। भटका हुआ अपराधी स्वयं राहगीर बनकर , ईश्वर का प्रार्थी बनकर, ईश्वर से संसार में चलने का ज्ञान पाने की ईश्वर से निवेदन करता है और पूछते है कि संसार में यह कुरूक्षेत्र बनाकर बैठे मेरे अपने बन्धु अपना जाल बिछाए, क्यों कर रहे है ऐसा? मैं तो उनका भला करना चाहता हूॅ, पर वे स्वयं अपना भला नहीं चाहते। स्वयं दुखी है, परेशान है। संसार को चलाने वाला ईश्वर, सबका न्याय करने वाला ईश्वर, अभिमन्यु को बता रहे है- मैं न्यायधीश हूॅ, सबका न्याय करने वाला मैं, सबको सजा देने वाला मैं, भूखे को दाना देने वाला मैं, सूर्य को तेज देने वाला मैं, चंद्र को सुंदरता देने वाला मैं, राहु को वीरता देने वाला मैं, केतु को मधुरता देने वाला मैं, मंगल को शुभ देने वाला मैं, बुध को समझ देने वाला मैं, गुरू को ज्ञान देने वाला मैं, शुक्र को सहनशीलता देने वाला मैं, शनि को शक्ति देने वाला मैं, जल को क्रोध देने वाला मैं, अग्नि को काम देने वाला मैं, वायु को मोह देने वाला मैं, पृथ्वी को लोभ देने वाला मैं, गगन को अहंकार देने वाला

दिलो मे रहता हिंदुस्तान

!! जिन का मन रहता है मीरा मे रसखान मे , 
जिनकी आखें भेद न करती राम और रहमान मे ,
इनकी खुसिया दूनी होती दीवाली -रमजान मे ,
ऐसे लोग बहुत रहते है मेरे हिन्दुस्तान मे |||
यही है देश जिसमे कण -कण मे भगवान् रहता है :यही है वाईवल-गीता यही कुरान रहता है " भले ही जाति-मजहब -भेष - भाषा भिन्न है सबकी :दिलो मे किन्तु सबके एक हिंदुस्तान रहता है |||

हमें जागना होगा !|||

कश्मीर में हिंदुओ का सफ़ाया हो गया पर हिंदू सोया रहा, बांग्ला देश में हिंदुओ
का सफ़ाया हो रहा है पर हिंदू निंद्रा मगन है, पाकिस्तान में हिंदू तो दूर
हिंदुओ के प्रतीक चिन्ह भी नही रहे पर हिंदू विश्राम अवस्था में है,
दुनिया का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल अब हिन्दू राष्ट्र नही रहा,मंदिरो
में विस्फोट हों रहे है पर हमारी आँख है की खुलती नही, पाकिस्तानी लाल
क़िले और संसद भवन तक आ गये पर हमारा ख़ून है की खौलता नही, अयोध्या में
मस्जिद टूटती है तो कोहराम मच जाता है हर नेता वोट के लिए मुस्लिम परस्त
बन जाता है लेकिन राम सेतु के लिए कोई नही चिल्लाता, गुजरात दंगो की बार
बार CBI जाँच होती है पर गोधरा पीड़ितो की चीखे ना तो सरकार को सुनाई देती
है ना CBI को और ना ही स्वयं हिंदुओ को, कश्मीर जल रहा है कुछ हिंदू
अमरनाथ का सम्मान पाने के लिए तड़प रहे है पर बाक़ी देश के हिंदू सो रहे
है, हिंदू देवी देवताओ की नग्न तस्वीरे बन रही है परंतु हिंदू करवट नही
लेता, अफ़ज़ल गुरु के लिए दया है पर विस्फोट में मरने वालो औरतो और बच्चो
पे इन्हे दया नही आती !
हमें जागना होगा !|||

पैदा होने से पहले ही क्यों मर जाती है लड़कियां ?

अल्ट्रा साउंड की रिपोर्ट में आते ही
क्यों पैदा होने से पहले ही मर जाती है लड़कियां ?
कोख में जन्म लेते ही
दिल का नासूर क्यों बन जाती है लड़कियां ?
बेटी से बहु और बहु से सास बनकर
क्यों बदल जाती है लड़कियां ?
लड़कियां दे तो खुदा दौलत दे
क्या यंहा पैसे से तौली जाती है लड़कियां ?
मिट्टी के तेल, पेट्रोल या गैस से भी
क्या अधिक ज्वलनशील होती है लड़कियां ?

आधुनिक मजनुओं के प्यार में धोका खाकर
विष पीकर मीरा क्यों बन जाती है लड़कियां ?

योग्य वर की तलाश में पिता के
पांव का छाला क्यों बन जाती है लड़कियां ?

वन्दे-मातरम नही विषय है विवाद का।

वन्दे-मातरम नही विषय है विवाद का। 

मजहबी द्वेष का न ओछे उन्माद का।वन्दे-मातरम पे ये कैसा प्रश्न-चिन्ह है।माँ को मान देने मे औलाद कैसे खिन्न है। वन्दे-मातरम उठा आजादी के साज से।इसीलिए बडा है ये पूजा से नमाज से।वन्दे-मातरम कुर्बानियो का ज्वार है।
वन्दे-मातरम जो ना गए वो गद्दार है।वन्दे-मातरम के जो गाने के विरुद्ध हैं।
पैदा होने वाली ऐसी नसले अशुद्ध हैं।आबरू वतन की जो आंकते हैं ख़ाक की।
कैसे मान लें के वो हैं पीढ़ी अशफाक की।गीता ओ कुरान से न उनको है वास्ता।
सत्ता के शिखर का वो गढ़ते हैं रास्ता।हिन्दू धर्म के ना अनुयायी इस्लाम के।
बन सके हितैषी वो रहीम के ना राम के। गैरत हुज़ूर कही जाके सो गई है क्या।सत्ता माँ की वंदना से बड़ी हो गई है क्या।देश तज मजहबो के जो वशीभूत हैं।अपराधी हैं वो लोग ओछे हैं कपूत हैं।माथे पे लगा के माँ के चरणों की ख़ाक जी।चढ़ गए हैं फांसियों पे लाखो अशफाक जी।
वन्दे-मातरम कुर्बानियो का ज्वार है।
वन्दे-मातरम जो ना गए वो गद्दार है

Dipak sharma ki kavita

वैसे ही बहुत कम हैं उजालों के रास्ते,
फिर पीकर धुआं तुम जीतो हो किसके वास्ते,

माना जीना नहीं आसान इस मुश्किल दौर में
कश लेके नहीं निकलते खुशियों के रास्ते

जीन्नत नहीं अब मौत ही मिलती है रगड़ कर,
यूँ सूरती नहीं हाथों से रगड़ के फांकते ,

तेरी ज़िन्दगी के साथ जुडी कई और ज़िन्दगी,
मुकद्दर नहीं तिफ्लात के कभी लत में वारते ,

पी लूं जहाँ के दर्द खुदा कुछ ऐसा दे नशा ,
"दीपक" नहीं नशा कोई गाफिल से पालते ,

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जिन्नात : जिन्न , तिफ्लात : औलाद , गाफिल : उनीदा