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31 मई 2011

जय क्रांति जय हिंद

 
साथियों
जो आदमी अपने साथी मनुष्यों द्वारा किये जने वाले अत्याचार का विरोध करने के प्रयास में,अपनी जान पर खेलते हुए अपनी सारी जिंदगी न्योछाबर कर देता है
वह अत्याचार और अन्याय के सक्रिय और निष्क्रिय समर्थको की तुलना में एक संत है,भले ही उसके विरोध से अपनी जिंदगी के साथ साथ अन्य जिन्दगिया भी क्यों ना नष्ट हो जाती हो!ऐसे व्यक्ति पर पहला पत्थर वही मरने का हक़दार है जिसने कभी कोई पाप ना किया हो!
भगत सिंह जेल डायरी पेज नंबर २८७
जय क्रांति जय हिंद

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