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14 जून 2011

इन्सान का पानी की तरह

ऐ सबा! लौट के किस शहर से तू आती है
तेरी हर लहर से बारूद की बू आती है!

खून कहाँ बहता है इन्सान का पानी की तरह
जिस से तू रोज़ यहाँ करके वजू आती है