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30 जून 2011

गाँधी जी के नाम सुखदेव की यह खुली चिट्ठी


 गाँधी जी के नाम सुखदेव की यह खुली चिट्ठी मार्च १९३१ में गाँधी जी और वायसराय इरविन के बीच हुए समझैते के बाद लिखी गई थी जो हिंदी नवजीवन 30 अप्रैल 1931 के अंक में प्रकाशित हुई थी }
परम कृपालु महात्मा जी ,

आजकल की ताज़ा खबरों से मालूम होता है कि{ ब्रिटिश सरकार से } समझौते की बातचीत कि सफलता के बाद आपने क्रन्तिकारी कार्यकर्ताओं को फिलहाल अपना आन्दोलन बन्द कर देने और आपको अपने अहिंसावाद को आजमा देखने का आखिरी मौका देने के लिए कई प्रकट प्राथनाए कई है |वस्तुत ; किसी आन्दोलन को बन्द करना केवल आदर्श या भावना में होने वाला काम नहीं हैं |भिन्न -भिन्न अवसरों कि आवश्यकता का विचार ही अगुआओं को उनकी युद्धनीति बदलने के लिए विवश करता हैं |
माना कि सुलह की बातचीत के दरम्यान , आपने इस ओर एक क्षण के लिए भी न तो दुर्लक्ष किया ,न इसे छिपा ही रखा की समझौता होगा |में मानता हूँ कि सब बुद्धिमान लोग बिलकुल आसानी के साथ यह समझ गये होंगे कि आप के द्वारा प्राप्त तमाम सुधारो का अम्ल होने लगने पर भी कोई यह न मानेगा कि हम मंजिले -मकसूद पर पहुच गये हैं | सम्पूर्ण स्वतन्त्रता जब तक न मिले ,तब तक बिना विराम के लड़ते रहने के लिए कांग्रेस महासभा लाहौर के प्रस्ताव से बंधी हुई हैं | उस प्रस्ताव को देखते हुए मौजूदा सुलह और समझैता सिर्फ काम चलाऊ युद्ध विराम हैं |जिसका अर्थ येही होता होता हैं कि अधिक बड़े पएमाने पर अधिक अच्छी सेना तैयार करने के लिए यह थोडा विश्राम हैं ........
किसी भी प्रकार का युद्ध -विराम करने का उचित अवसर और उसकी शर्ते ठहराने का काम तो उस आन्दोलन के अगुआवो का हैं | लाहौर वाले प्रस्ताव के रहते हुए भी आप ने फिलहाल सक्रिय आन्दोलन बन्द रखना उचित समझा हैं |इसके वावजूद भी वह प्रस्ताव तो कायम ही हैं |इसी तरह 'हिन्दुस्तानी सोसलिस्ट पार्टी ' के नाम से ही साफ़ पता चलता हैं कि क्रांतिवादियों का आदर्श समाजवादी प्रजातन्त्र कि स्थापना करना हैं |यह प्रजातन्त्र मध्य का विश्राम नही हैं |जब तक उनका ध्येय प्राप्त न हो और आदर्श सिद्ध न हो , तब तक वे लड़ाई जरी रखने के लिए बंधे हुए हैं |परन्तु बदलती हुई परिस्थितियों और वातावरण के अनुसार वे अपनी युद्ध .निति बदलने को तैयार अवश्य होंगे |क्रन्तिकारी युद्ध ,जुदा ,जुदा रूप धारण करता हैं |कभी गुप्त ,कभी केवल आन्दोलन -रूप होता हैं ,और कभी जीवन -मरण का भयानक सग्राम बन जाता हैं |ऐसी दशा में क्रांतिवादियों के सामने अपना आन्दोलन बन्द करने के लिए विशेष कारणहोने चाहिए |परन्तु आपने ऐसा कोई निश्चित विचार प्रकट नहीं किया |निरी भावपूर्ण अपीलों का क्रांतीवादी युद्ध में कोई विशेष महत्त्व नही होता ,हो भी नही सकता |

नकली दवाएं बेचने का गोरखधंधा

.राज्य में नकली दवाएं बेचने का गोरखधंधा एक बार फिर उजागर हो गया। दवा दुकानों में अर्से से बेची जा रही कफ सिरप कॉफजेड दिल्ली की प्रयोगशाला में जांच के बाद नकली मिली। खांसी कम करने वाले इस सिरप में दवा के घटक नहीं मिले।

खाद्य एवं औषधि विभाग ने तत्काल प्रभाव से सिरप की बिक्री पर पाबंदी लगा दी है। इस सिरप का निर्माण लेडरली कंपनी करती थी, जो पांच साल पहले बंद हो चुकी है। यही बात हैरान करने वाली है कि पांच साल पहले बंद हो चुकी कंपनी के नाम से दवाएं विभाग और जिला प्रशासन की नाक के नीचे बिकती रहीं और पूरा विभाग सोया रहा।

इस सनसनीखेज खुलासे से दवा बाजार में हड़कंप है। दवा कारोबारियों के अनुसार इस सिरप की सबसे ज्यादा खपत गांव और छोटे कस्बों के मेडिकल स्टोर्स में है। यानी संगठित रैकेट के जरिये खामोशी से छोटे स्थानों पर नकली दवा खपाने का खेल चल रहा था।

खाद्य एवं औषधि विभाग ने बिलासपुर के आउटर से कफ सिरप का सैंपल लिया था। इसे जांच के लिए दिल्ली स्थित केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला भेजा गया। मंगलवार को मिली जांच रिपोर्ट देखकर खाद्य एवं औषधि विभाग के अफसर दंग रह गए। दवा के बारे में सुराग ड्रग कंट्रोलर के. सुब्रमणियम को मिला था।

उन्होंने जांच के लिए टीम भेजी। कॉफजेड का निर्माण बहुराष्ट्रीय कंपनी लेडरली करती थी। यह पांच साल पहले जान वाइथ में मर्ज हो चुकी है। उसके बाद से लेडरली कंपनी के नाम से दवाएं आना बंद हो गई थी। नकली दवा का धंधा करने वालों ने कंपनी के नाम का फायदा उठाया।

विभाग भी संदेह के दायरे में

नकली दवाओं का कारोबार करने वाला गिरोह पांच साल पहले बंद हो चुकी मल्टीनेशनल कंपनी लेडरली के नाम से कफ सिरप तैयार कर बाजार में खपा रहा था। यह बात सैंपल भेजने के पहले ही औषधि विभाग को पता थी या नहीं इसकी पड़ताल होनी चाहिए। विभाग का कहना है कि दवा तैयार करने वाले गिरोह ने कंपनी के नाम के आगे लेडरली दिल्ली लिख दिया है। इस बारे में दिल्ली पत्र लिखकर पूछा जाएगा कि क्या यह दवा कंपनी यहां रजिस्टर्ड है या नहीं।

जांच में यह निकला

> लेबल में लिखा गया एक भी घटक दवा में नहीं मिला।

> जो घटक मिले, उसकी मात्रा भी बेहद कम।

> डिस्मोनिया या खांसी के दौरान सांस अटकने जैसी गंभीर बीमारी के मरीजों को दवा देने पर उसकी जान खतरे में पड़ सकती है।

"भारत सरकार की रिपोर्ट की सूचना राज्य के सभी दवा कारोबारियों को भेजी जाएगी। तमाम दवा कारोबारियों को बताया जाएगा कि कॉफजेड सिरप प्रतिबंधित कर दी गई है।"

एस. बाबू,
डिप्टी ड्रग कंट्रोलर

गरीब देश अमीर भगवान

बहुत ही अमीर हैं इस देश में भगवान
इस देश के भगवान आज बहुत ही अमीर हैं,
चाहे वो फिर नेता हों या अभिनेता हों,
मंत्री हों या जनता के संतरी हों,
योगा सिखलाएँ या प्रवचन सुनाएं,
जनता चाहे इनके आगे नतमस्तक है,
पर यह बस सिर्फ सत्ता के ही करीब हैं,
इस देश के भगवन आज बहुत ही अमीर हैं.

भूखी है जनता पर गोदामों में अनाज है सड़ता,
त्राहि है मची पर इन्हें क्या फर्क है पड़ता,
भरें हैं पेट इनके, सारे बैंक बैलेंस भी भरे,
जनता को अब कौन देखे,
वो जिए तो जिए, मरती है तो फिर मरे.बातें ही बस जिन्दा, मगर मरे सारे जमीर हैं,
इस देश के भगवान आज बहुत ही अमीर हैं.
मोमबत्ती भी जलाई, नारे भी लगाए,
राजघाट पर सोते बापू भी जगाये,
पर सोते रहना ही था जिनको, नहीं जगे वो,
देश है गिरा पर उन्हें कौन कैसे उठाये.
गिरना, रोना, आंसू बहाना,
अब यही देश की किस्मत, तकदीर है.
इस देश के भगवान आज बहुत ही अमीर हैं..!!
इस देश के भगवान आज बहुत ही अमीर हैं..!!

हर इंसान के अन्दर राजनीति

कुछ राजनीति के बारे मैं .....

राजनीति हर इंसान के अन्दर थोड़ा न थोड़ा, किसी न किसी रूप मैं छुपी रहती है. बस सही वक्त का इन्तजार करता है हर इन्सान का चरित्र. अतः राजनीति और राजनेताओं को कोसने से कोई फायदा नहीं क्योंकि राजनीति का अपना कोई चरित्र नहीं होता बल्कि इसका चरित्र उसका वरण करने वाले के चरित्र पर निर्भर करता है :

ये राम के लिए भक्ति का साधन थी,
तो कृष्ण के लिए युक्ति का साधन,
गांधी के लिए शक्ति का साधन थी,
तो सुभाष-भगत के लिए मुक्ति का साधन !!
पर अफ़सोस आज ये लोगों के सिर्फ़ सम्पति का साधन है.
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 - - - अर्थशास्त्र (Economics) - - - -     

गरीब पैंसे के लिए काम करता है, जबकि अमीर के लिए पैंसा काम करता है !!