.राज्य में नकली दवाएं बेचने का गोरखधंधा एक बार फिर उजागर हो गया। दवा दुकानों में अर्से से बेची जा रही कफ सिरप कॉफजेड दिल्ली की प्रयोगशाला में जांच के बाद नकली मिली। खांसी कम करने वाले इस सिरप में दवा के घटक नहीं मिले।
खाद्य एवं औषधि विभाग ने तत्काल प्रभाव से सिरप की बिक्री पर पाबंदी लगा दी है। इस सिरप का निर्माण लेडरली कंपनी करती थी, जो पांच साल पहले बंद हो चुकी है। यही बात हैरान करने वाली है कि पांच साल पहले बंद हो चुकी कंपनी के नाम से दवाएं विभाग और जिला प्रशासन की नाक के नीचे बिकती रहीं और पूरा विभाग सोया रहा।
इस सनसनीखेज खुलासे से दवा बाजार में हड़कंप है। दवा कारोबारियों के अनुसार इस सिरप की सबसे ज्यादा खपत गांव और छोटे कस्बों के मेडिकल स्टोर्स में है। यानी संगठित रैकेट के जरिये खामोशी से छोटे स्थानों पर नकली दवा खपाने का खेल चल रहा था।
खाद्य एवं औषधि विभाग ने बिलासपुर के आउटर से कफ सिरप का सैंपल लिया था। इसे जांच के लिए दिल्ली स्थित केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला भेजा गया। मंगलवार को मिली जांच रिपोर्ट देखकर खाद्य एवं औषधि विभाग के अफसर दंग रह गए। दवा के बारे में सुराग ड्रग कंट्रोलर के. सुब्रमणियम को मिला था।
उन्होंने जांच के लिए टीम भेजी। कॉफजेड का निर्माण बहुराष्ट्रीय कंपनी लेडरली करती थी। यह पांच साल पहले जान वाइथ में मर्ज हो चुकी है। उसके बाद से लेडरली कंपनी के नाम से दवाएं आना बंद हो गई थी। नकली दवा का धंधा करने वालों ने कंपनी के नाम का फायदा उठाया।
विभाग भी संदेह के दायरे में
नकली दवाओं का कारोबार करने वाला गिरोह पांच साल पहले बंद हो चुकी मल्टीनेशनल कंपनी लेडरली के नाम से कफ सिरप तैयार कर बाजार में खपा रहा था। यह बात सैंपल भेजने के पहले ही औषधि विभाग को पता थी या नहीं इसकी पड़ताल होनी चाहिए। विभाग का कहना है कि दवा तैयार करने वाले गिरोह ने कंपनी के नाम के आगे लेडरली दिल्ली लिख दिया है। इस बारे में दिल्ली पत्र लिखकर पूछा जाएगा कि क्या यह दवा कंपनी यहां रजिस्टर्ड है या नहीं।
जांच में यह निकला
> लेबल में लिखा गया एक भी घटक दवा में नहीं मिला।
> जो घटक मिले, उसकी मात्रा भी बेहद कम।
> डिस्मोनिया या खांसी के दौरान सांस अटकने जैसी गंभीर बीमारी के मरीजों को दवा देने पर उसकी जान खतरे में पड़ सकती है।
"भारत सरकार की रिपोर्ट की सूचना राज्य के सभी दवा कारोबारियों को भेजी जाएगी। तमाम दवा कारोबारियों को बताया जाएगा कि कॉफजेड सिरप प्रतिबंधित कर दी गई है।"
एस. बाबू,
डिप्टी ड्रग कंट्रोलर
खाद्य एवं औषधि विभाग ने तत्काल प्रभाव से सिरप की बिक्री पर पाबंदी लगा दी है। इस सिरप का निर्माण लेडरली कंपनी करती थी, जो पांच साल पहले बंद हो चुकी है। यही बात हैरान करने वाली है कि पांच साल पहले बंद हो चुकी कंपनी के नाम से दवाएं विभाग और जिला प्रशासन की नाक के नीचे बिकती रहीं और पूरा विभाग सोया रहा।
इस सनसनीखेज खुलासे से दवा बाजार में हड़कंप है। दवा कारोबारियों के अनुसार इस सिरप की सबसे ज्यादा खपत गांव और छोटे कस्बों के मेडिकल स्टोर्स में है। यानी संगठित रैकेट के जरिये खामोशी से छोटे स्थानों पर नकली दवा खपाने का खेल चल रहा था।
खाद्य एवं औषधि विभाग ने बिलासपुर के आउटर से कफ सिरप का सैंपल लिया था। इसे जांच के लिए दिल्ली स्थित केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला भेजा गया। मंगलवार को मिली जांच रिपोर्ट देखकर खाद्य एवं औषधि विभाग के अफसर दंग रह गए। दवा के बारे में सुराग ड्रग कंट्रोलर के. सुब्रमणियम को मिला था।
उन्होंने जांच के लिए टीम भेजी। कॉफजेड का निर्माण बहुराष्ट्रीय कंपनी लेडरली करती थी। यह पांच साल पहले जान वाइथ में मर्ज हो चुकी है। उसके बाद से लेडरली कंपनी के नाम से दवाएं आना बंद हो गई थी। नकली दवा का धंधा करने वालों ने कंपनी के नाम का फायदा उठाया।
विभाग भी संदेह के दायरे में
नकली दवाओं का कारोबार करने वाला गिरोह पांच साल पहले बंद हो चुकी मल्टीनेशनल कंपनी लेडरली के नाम से कफ सिरप तैयार कर बाजार में खपा रहा था। यह बात सैंपल भेजने के पहले ही औषधि विभाग को पता थी या नहीं इसकी पड़ताल होनी चाहिए। विभाग का कहना है कि दवा तैयार करने वाले गिरोह ने कंपनी के नाम के आगे लेडरली दिल्ली लिख दिया है। इस बारे में दिल्ली पत्र लिखकर पूछा जाएगा कि क्या यह दवा कंपनी यहां रजिस्टर्ड है या नहीं।
जांच में यह निकला
> लेबल में लिखा गया एक भी घटक दवा में नहीं मिला।
> जो घटक मिले, उसकी मात्रा भी बेहद कम।
> डिस्मोनिया या खांसी के दौरान सांस अटकने जैसी गंभीर बीमारी के मरीजों को दवा देने पर उसकी जान खतरे में पड़ सकती है।
"भारत सरकार की रिपोर्ट की सूचना राज्य के सभी दवा कारोबारियों को भेजी जाएगी। तमाम दवा कारोबारियों को बताया जाएगा कि कॉफजेड सिरप प्रतिबंधित कर दी गई है।"
एस. बाबू,
डिप्टी ड्रग कंट्रोलर
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