जब पाकिस्तानी समय के अनुसार देर रात दो बजे ओबामा को ओसामा की मौत की खबरमिली तो उन्हें निश्चित रूप से भारी सुकून भरा अहसास मिला होगा। पिछले कुछ दिनों से परेशान ओबामा को आईएसआई की तरफ से इससे बेहतर कोई गिफ्ट नहीं हो सकता है। मीडिया पर जो बराक ओबामा की वीरता का बखान हो रहा है, वास्तव में वो वीरता न हो आईएसआई और अमेरिकी एजेंसियों का एक ज्वाइंट खेल था, जिसका शिकार ओसामा-बिन-लादेन हुआ। पिछले कुछ दिनों अपनी जन्मभूमि और धर्म को लेकर अमेरिका में झेल रहे आलोचना को दबाने के लिए आखिर बराक ओबामा ने आईएसआई का सहयोग लिया और ओसामा बिन लादेन को ढेर कर दिया।
इस कड़ी को समझने में कुछ ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है। ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान के एबोटाबाद में रह रहा था। जिस मकान में रह रहा था, उस मकान के निर्माण को देख कोई भी समझ सकता है कि यह निर्माण सेना का है। साथ ही सेना की एक यूनिट भी थी। यह जगह इस्लामाबाद से काफी दूर नहीं है और पाकिस्तान की सेना के लिए यह महत्व इसलिए भी रखता है कि पूर्व तानाशाह अयूब खान भी यहीं के रहने वाले थे। हजारा जनजाति के बाहुल्य वाले इस इलाके में पश्तूनों और हजारा जनजाति के बीच संघर्ष भी होता है। मिली जानकारी के अनुसार ओसामा बिन लादेन आखिरकार पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई के उस राजनीति का शिकार हो गई जिसके आधार पर ही आईएसआई ने अपने पूर्व में रहे बॉसों को भी नहीं बख्शा। वास्तव में लादेन काफी लंबे समय से आईएसआई के संरक्षण में ही सीमांत इलाके में था, जो सहूलियत के हिसाब से सारा कुछ करता था। लादेन की सारी एक्टिविटी सेना और आईएसआई को पता था। बस सही अमेरिकी दबाव का इंतजार था। इस दबाव को आईएसआई सह नहीं सकी और लादेन मारा गया।
इस पूरे खेल की शुरूआत तो छ महीनें पहले हो गई थी। अमेरिका को यह पता था कि आईएसआई के संरक्षण में ही लादेन है। अप्रैल महीनें में इस खेल की पूरी प्लांटिग कर दी गई। इस महीनें ही अमेरिका के दौरे पर शुजा पाशा पहुंचे। साथ ही परवेज कयानी भी निरंतर अमेरिका अथॉरिटी के संपर्क में रहे। शुजा पाशा के अमेरिकी दौरे के दौरान कुछ तल्ख बातचीत सीआईए और आईएसआई चीफ के बीच हुई थी। इस दौरे में पाकिस्तान में बिना वीजा रहने वाले अमेरिकी एजेंटों को लेकर विवाद हुआ था। यह मामला मीडिया में भी आया था। लेकिन इससे अलग एक गंभीर बातचीत लादेन को लेकर आईएसआई चीफ और सीआईए चीफ के बीच हुई थी। इस दौरान अमेरिका ने साफ तौर पर लादेन को खत्म करने संबंधी प्रस्ताव आईएसआई के सामने रखा। उधर आईएसआई पर यह प्रेशर और तब आ गया जब विकीलीक्स के खुलासे में आईएसआई संबंधी एक खबर सामने आई, जिसके मुताबिक अमेरिकी सूची में आईएसआई आतंकी संगठन है।
मिली जानकारी के अनुसार शुजा पाशा अपने खास सैन्य प्रमुखों से सलाह के बाद ओसामा बिन लादेन की बलि देने को तैयार हो गए थे। इसके पीछे आईएसआई के बड़े लोगों और पाकिस्तानी सेना की अपनी आर्थिक मजबूरी थी। यहीं से आपरेशन लादेन की शुरूआत हो गई थी। अप्रैल माह में ही एक पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल काबुल पहुंच गया था। इस प्रतिनिधमंडल के हेड प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी थे। लेकिन उनके साथ ही सेना चीफ परवेज कयानी और आईएसआई चीफ शुजा पाशा भी थे। वास्तव में जिलानी तो मुखौटा थे। वास्तव में यह दौरा कयानी और पाशा का था जिन्होंने अपने दौरे के दौरान विभिन्न अफगान जनजातियों और पीस काउंसिल के सदस्यों की राय ली। साथ ही यह भी आकलन किया कि आखिर लादेन को अमेरिका के हवाले कर दिया जाएगा तो उसका क्या प्रभाव पख्तून जनजातियों और तालिबान जैसे संगठनों पर पड़ेगा। इसके बाद ही अप्रैल के अंतिम सप्ताह में पेशावर में पख्तो पीस काउंसिल की तरफ से विश्व पश्तो कांग्रेस का आयोजन किया गयाथा। इसमें पूरी तरह से पख्तूनों को शांतिप्रिय जनजाति बताया गया और अरबों को गाली दी गई। इस कांफ्रेंस में शामिल लोगों ने कहा था कि पख्तूनों पर अरब कल्चर को डाला जा रहा है और अरब कल्चर वाले पख्तूनों को हथियार देकर शांतिप्रिय जनजाति को हिंसा की तरफ ढकेल रहे है।
इस पूरे अध्ययन के बाद आखिरकार ओबामा के हाथ में ओसामा को सौंप दिया गया। जिस तरह से अमेरिकी एजेंसियों ने देर रात आपरेशन किया है, उसमें पाकिस्तान की भागीदारी न हो यह मुर्खता भरी बात है। पाकिस्तान की पूरी भागीदारी के साथ ही यह आपरेशन हुआ और ओसामा मारा गया। इस मामले में अन्य आतंकी संगठन जिसमें तालिबान के जलादुद्दीन हक्कानी नेटवर्क के लोग भी शामिल है, विश्वास में लिया गया है, बताया जा रहा है। वास्तव में पाकिस्तान सेना और आईएसआई के उपर हाल में जो अमरिका ने खुले आरोप लगाए उससे आईएसआई को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। दूसरा आईएसआई और सेना क पता है कि आखिरकार पाकिस्तान को अमेरिकी डालरों के बिना चलाना मुश्किल है। सेना की भी कमाई अमेरिकी सहायता राशि से आ रही है। उधऱ अमेरिकी दबाव और इधर पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की चरमराहट पाकिस्तान को परेशान किए हुए था। पाकिस्तान को कुल जीडीपी का मात्र दस प्रतिशत ही टैक्स से आ रहा है। हालत यह है कि देश की सिर्फ एक प्रतिशत जनता ही टैक्स दे रही है। इन परिस्थितियों में अमेरिकी प्रतिरोध को पाकिस्तान सेना और आईएसआई झेलने को तैयार नहीं है। आखिर जो विकास के लिए पैसा आता है, उसमें भी भारी हाथ सेना ही मार जाती है। इसलिए कई मजबूरियां थी जिसके कारण लादेन ओबामा के हवाले कर दिए गए।