वन्दे-मातरम नही विषय है विवाद का।
मजहबी द्वेष का न ओछे उन्माद का।वन्दे-मातरम पे ये कैसा प्रश्न-चिन्ह है।माँ को मान देने मे औलाद कैसे खिन्न है। वन्दे-मातरम उठा आजादी के साज से।इसीलिए बडा है ये पूजा से नमाज से।वन्दे-मातरम कुर्बानियो का ज्वार है।
वन्दे-मातरम जो ना गए वो गद्दार है।वन्दे-मातरम के जो गाने के विरुद्ध हैं।
पैदा होने वाली ऐसी नसले अशुद्ध हैं।आबरू वतन की जो आंकते हैं ख़ाक की।
कैसे मान लें के वो हैं पीढ़ी अशफाक की।गीता ओ कुरान से न उनको है वास्ता।
सत्ता के शिखर का वो गढ़ते हैं रास्ता।हिन्दू धर्म के ना अनुयायी इस्लाम के।
बन सके हितैषी वो रहीम के ना राम के। गैरत हुज़ूर कही जाके सो गई है क्या।सत्ता माँ की वंदना से बड़ी हो गई है क्या।देश तज मजहबो के जो वशीभूत हैं।अपराधी हैं वो लोग ओछे हैं कपूत हैं।माथे पे लगा के माँ के चरणों की ख़ाक जी।चढ़ गए हैं फांसियों पे लाखो अशफाक जी।
वन्दे-मातरम जो ना गए वो गद्दार है।वन्दे-मातरम के जो गाने के विरुद्ध हैं।
पैदा होने वाली ऐसी नसले अशुद्ध हैं।आबरू वतन की जो आंकते हैं ख़ाक की।
कैसे मान लें के वो हैं पीढ़ी अशफाक की।गीता ओ कुरान से न उनको है वास्ता।
सत्ता के शिखर का वो गढ़ते हैं रास्ता।हिन्दू धर्म के ना अनुयायी इस्लाम के।
बन सके हितैषी वो रहीम के ना राम के। गैरत हुज़ूर कही जाके सो गई है क्या।सत्ता माँ की वंदना से बड़ी हो गई है क्या।देश तज मजहबो के जो वशीभूत हैं।अपराधी हैं वो लोग ओछे हैं कपूत हैं।माथे पे लगा के माँ के चरणों की ख़ाक जी।चढ़ गए हैं फांसियों पे लाखो अशफाक जी।
वन्दे-मातरम कुर्बानियो का ज्वार है।
वन्दे-मातरम जो ना गए वो गद्दार है
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