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30 मई 2011

मैं जेल गया तब भी मेरे न्यूज चैनल ने मुझे सेलरी दी

    : इंटरव्यू (पार्ट-दो) : मुंतज़र अल ज़ैदी  
(इराकी पत्रकार) :

मुंतज़र अल ज़ैदी पिछले दिनों दिल्ली में थे. इराक में बुश पर जूता फेंककर दुनिया भर में चर्चित हुए ज़ैदी बेहद समझदार और तार्किक व्यक्ति हैं. न्यूज एक्सप्रेस के एडीटर (क्राइम) संजीव चौहान ने मुंतज़र अल ज़ैदी से कई सवाल किए और जै़दी ने सभी जवाब ऐसे दिए जिसे पढ़-सुनकर उनके प्रति प्यार बढ़ जाता है. पेश है इंटरव्यू का आखिरी

सवाल- दुनिया कह रही है मुंतज़र ने जूता कल्चर को जन्म दिया है...जो कि गलत है, ऐसा नहीं करना चाहिए था।
जबाब- अगर मैं, और मेरा जूता फेंकना गलत था, तो फिर इराक में बेकसूरों पर बम बरसाने वालों को क्या कहेंगे ?

सवाल- आपने बुश पर जूता फेंका। इसके बाद भारत में भी इस तरह की
जूता फेंकने की कई घटनाएं हुईं। एक पत्रकार ने तो भारत के गृहमंत्री पर
जूता फेंक कर मारा। यानि आपके द्वारा दिया गया जूता-कल्चर दुनिया फालो कर
रही है?

जबाब- नहीं। बिल्कुल मुझे फालो नहीं करना चाहिए। हर किसी पर जूता
फेकेंगे, तो जूते की मार की चोट कम हो जायेगी। जब तक आप पर, आपके देश और
आपके समाज पर कोई बम-गोली न बरसाये, तब तक जूता न उठायें। जो जूते के लायक
है, उसे जूता दें और जो गुलदस्ते के काबिल है, उसका इस्तकबाल गुलदस्ते से
करें।
सवाल-  आपने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बुश पर जूता फेंका, तो
आपके चैनल के आधिकारियों और आपके हमपेशा साथियों (जहां आप नौकरी करते थे)
की प्रतिक्रिया क्या थी? क्या आप नौकरी से बाहर कर दिये गये?

जबाब- सब खुश थे। देश खुश था। इराक के हमदर्द खुश थे। जब तक मैं जेल में
रहा उतने महीने (.....करीब नौ महीने) की मेरी तनख्वाह मेरे घर भिजवाई गयी।
और जब जेल से बाहर आया, तो पता चला कि न्यूज चैनल ने मुझे और मेरे परिवार
को रहने के लिए एक फ्लैट का भी इंतज़ाम कर दिया था।
सवाल- जूता कांड के बाद आप इराक के हीरो बन गये, फिर भी आपको
वीजा किसी अरब या यूरोपीय देश ने नहीं दिया, सिवाये भारत के? इसे क्या समझा
जाये? मुंतज़र अल ज़ैदी की मुखालफत या इन देशों पर अमेरिका का भय?
जबाब- मुझे किसी ने दिया हो वीजा न दिया हो। क्यों नहीं दिया? सबका निजी
मामला है। लेकिन भारत ने मुझे वीजा देकर साबित कर दिया, कि उसे किसी का डर
नहीं है। मुझे लगता है कि वाकई आज भी दुनिया में भारत ही सबसे बड़ा
लोकतांत्रिक देश है।
सवाल- कैसे-कैसे लगवा पाये भारत का वीजा? क्या क्या मशक्कत करनी पड़ी?
जबाब- दिल्ली में रहने वाले इमरान जाहिद साहब मेरे दोस्त हैं। उन्होंने
बात चलाई थी। मैं गांधी जी को करीब से छूना, देखना, उनसे बात करना चाहता
था। मेरी साफ मंशा, इमरान भाई और महेश साहब (भारतीय फिल्म
निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट) की कोशिशें कामयाब रहीं। और अब मैं गांधी और
आपके सामने हूं।
सवाल- हिंदुस्तान की सर-ज़मीं को छुए हुए दो दिन हो गये हैं, कल चले जायेंगे आप इराक ? यहां से हमवतन (इराक) क्या लेकर जा रहे हैं?
जबाब- जिंदादिल भारत की मिट्टी की खुश्बू, यहां के लोगों से मिला प्यार
और भारत की सर-ज़मीं पर जीया हर लम्हा, हिंदुस्तान की मेहमानवाजी अपने साथ
लेकर जा रहा हूं।
सवाल- भारत में गांधी जी की समाधि ही देखने की तमन्ना क्यों थी ?
कहने को दुनिया का अजूबा और प्यार का प्रतीक ताजमहल भी भारत में ही है।

जबाब- इराक ने कुर्बानियां दी हैं। गांधी ने कुर्बानी दी। वे आज़ादी के
नुमाईंदे और आइकॉन थे। उन्होंने अत्याचारों के खिलाफ जिस चिंगारी से आग
लगाई, वो देखिये (गांधी समाधी पर जल रही लौ की ओर इशारा करते हुए) आज भी जल
रही है। ताजमहल पर भी क्या ऐसी ही लौ जलती है?
सवाल- आप गांधी से प्रभावित दिखते हैं, ज़िंदगी में गांधी का सा कुछ किया भी है?
जबाब- जेल के भीतर ही तीन दिन तक अनशन पर बैठ गया था।
सवाल- द लास्ट सैल्यूट लिखने के पीछे क्या मंशा थी ?
जबाब- "द लास्ट सैल्यूट"  एक बेगुनाह पर अत्याचारों का सच है। बिना
मिर्च-मसाले के। वो सच जिसे भोगा पूरे देश ने,  लेकिन आने वाली पीढ़ियों के
पढ़ने को कागज पर इतिहास लिखा सिर्फ मैने (मुंतज़र अल ज़ैदी ने)।
सवाल- इराक और भारत में फर्क?
जबाब- इराक का मैं बाशिंदा हूं। भारत के बारे में पढ़ा-सुना है। सिर्फ
दो-तीन दिन ही रह पा रहा हूं यहां (हिन्दुस्तान की सर जमीं पर) । इराक में
अमेरिका का अत्याचार है, और भारत में अपना लोकतंत्र। आप खुद अंदाजा लगा
लीजिए दोनो देशों में । कौन पॉवरफुल है?
                                                                              (regard to vijay sharma)

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