....आग जलनी चाहिए ( dusyant ki kavita)
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई
गंगा निकलनी चाहिए।
गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार,
परदों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी
कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद
नहीं, सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
नहीं, सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए
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