चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी पहले के अनुमानों से ज़्यादा हो सकती है. ये मानना है अमरीका के वैज्ञानिकों के एक दल का जिसने चंद्रमा से लाए गए पत्थरों का नए सिरे से अध्ययन किया है.
ज्वालामुखीय अवशेष या मैग्मायुक्त पत्थर अपोलो-17 अभियान के दौरान धरती पर लाए गए थे.
विज्ञान पत्रिका ‘साइंस’ में छपी शोध रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन के लिए चाँद से लाए गए उन मैग्मा अवशेषों का अध्ययन किया गया जो कि शीशे जैसे पत्थर या क्रिस्टल के बीच फंसे हुए हैं.
उन अवशेषों में अब तक के अनुमानों से 100 गुना ज़्यादा पानी के अंश पाए गए हैं.
इस अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों की राय है कि एक समय चंद्रमा पर कैरीबियन सागर जितना पानी रहा होगा.
उत्पत्ति के सिद्धांत पर सवाल
ये मान्य सिद्धांत है कि चांद की सतह पर ज़्यादातर पानी बर्फ़ीले धूमकेतुओं या जलीय क्षुद्र ग्रहों से आया होगा. लेकिन वहाँ सतह के भीतर कितना ज़्यादा पानी हो सकता है, उसका सही अंदाज़ा ताज़ा अध्ययन से ही लगाना संभव हो पाया है.
इस नई मिली जानकारी से चंद्रमा की उत्पत्ति को लेकर नए सवाल पैदा होते हैं.
अभी सर्वमान्य सिद्धांत ये है निर्माण के दौरान धरती की मंगल ग्रह के आकार के किसी पिंड की टक्कर हुई होगी. इस टक्कर के बाद दूर छिटकी पिघली चट्टानों से अंतत: चंद्रमा का निर्माण हुआ होगा.
ऐसे में तो निर्माण के दौरान से ही चंद्रमा की सतह सूखी होनी चाहिए थी, जबकि ताज़ा अध्ययन से पता चला है कि किसी समय चंद्रमा पर बड़ी मात्रा में पानी मौजूद था.
अध्ययन से जुड़े मुख्य वैज्ञानिक कार्नेगी संस्थान के डॉ. एरिक हॉरी के अनुसार चंद्रमा की उत्पत्ति के मान्य सिद्धांतों के समर्थन में बहुत सारे सबूत भी मौजूद हैं, जैसे- धरती पर पाए जाने वाले कई तत्व चंद्रमा पर भी हैं. लेकिन इन बातों का चंद्रमा पर मौजूद पानी के स्तर से साम्य नहीं हो पा रहा है.
डॉ. हॉरी के अनुसार, “मैं समझता हूँ टक्कर वाला चंद्रमा की उत्पत्ति का सिद्धांत सही है, लेकिन उत्पत्ति की प्रक्रिया से जुड़ी कुछ बुनियादी बातें अब भी हमारी समझ से बाहर हैं
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