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27 सितंबर 2010

कुंआरे बाप बन रहे छात्र‌-

‌सुनकर चौंकना स्वाभाविक है। परंतु सच है कि भारत में कई छात्र हर माह कुंआरे बाप बन रहे हैं। इसके लिए न इन्हें शादी रचाने की जरूरत है और न ही किसी महिला से संबंध बनाने की। बाप बनने के लिए समाज इन्हें बुरा-भला भी नहीं कर रहा बल्कि शाबाशी के साथ इन्हें मिल रहे रुपए, ‌कभी हजार तो कभी पांच  हजार।
दिल्ली, ‌मुंबई, ‌कोलकाता सहित कई बड़े राज्यों में खुले स्पर्म बैंक में डोनर अधिकतर कम उम्र के छात्र हैं। ये धड़ल्ले से अपना स्पर्म बेच रहे हैं। संबंधित बैंक पहले इनका चेकअप करता है-मसलन कहीं इन्हें एडस,हेपेटाइटिस तो नहीं। इसके पश्चात ही इनका स्पर्म लिया जाता है। बता दें कि भारत में स्पर्म बैंक तो खुल गए, ‌मगर लोक-लाज के भय से इज्जतदार लोग यहां आने से कतराते हैं। ऐसे में छात्र वर्ग की तरफ स्पर्म बैंक का रुझान ज्यादा है। छात्रों को चाहिए रुपए। ये पाकेट खर्च के लिए स्पर्म बेच खुश हो रहे हैं। वे इसके निगेटिव पहलू से बिल्कुल अनजान हैं। बकौल चिकित्सक कई नि:‌संतान दंपति सुंदर बच्चे चाहते हैं। ऐसे में वे यह भी देखते हैं कि डोनर स्वस्थ हो। इसके लिए वे मनमानी रकम देने के लिए भी तैयार रहते हैं।
इधर, ‌डोनेट करने वाले कुछ छात्रों का कहना है कि इससे उनका पाकेट खर्च निकल जाता है। यह पूछने पर कि क्या इसकी जानकारी उनके अभिभावकों को है-वे ना में सिर हिलाते हैं। वास्तव में स्पर्म बैंक की परिकल्पना वैसी नि:‌संतान दंपतियों के लिए की गई थी।, ‌जिनके आंगन में कुछ कारणवश बच्चे किलकारी नहीं भर सकें।
दुनिया के कई देशों में यह पूरी तरह कामयाब  भी है। भारत में भी इसकी शुरुआत बेहतरी के लिए ही हुआ था। यह अलग बात है कि स्थापना के साथ ही यह व्यवसाय बन गया। इसके संस्थापक मोटी रकम वसूल रहे। हालांकि सूत्र बता रहे हैं कि यह अभी पूरी तरह कामयाब नहीं हो सका है।
सरकार को इसपर ध्यान देने की जरूरत है। चंद रुपयों के लिए लोभ में पड़नेवाले छात्रों को भी अपने अभिभावक से परामर्श के पश्चात ही कोई कदम उठाना चाहिए। साथ ही स्पर्म डोनेट करने के लिए लोगों को आगे आना चाहिए ताकि भारत में भी स्पर्म बैंक की परिकल्पना पूरी तरह से साकार हो सके।

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