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08 जून 2011

हरिवंशराय बच्‍चन की एक कविता







अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

वृक्ष हों भले खड़े,

हो घने, हो बड़े,

एक पत्र-छॉंह भी मॉंग मत, मॉंग मत, मॉंग मत!

अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
तू न थकेगा कभी!

तू न थमेगा कभी!

तू न मुड़ेगा कभी!-कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ!

यह महान दृश्‍य है-

चल रहा मनुष्‍य है

अश्रु-श्‍वेद-रक्‍त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!

अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

- हरिवंशराय बच्‍चन 

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