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06 अक्तूबर 2010

कॉमनवेल्थ गेम्स डे 3: अब तक भारत ने जीते 10 गोल्ड मेडल। भारत के लिए 10वां गोल्ड राजेंद्र कुमार ने जीता। कुश्ती में ही मनोज ने जीता सिल्वर मेडल। वेटलिफ्टिंग में रेनू बाला चानू को भी गोल्ड। शूटिंग में आज तीसरा गोल्ड। ओमकार सिंह ने जीता गोल्ड। अनीसा सईद ने 25 मीटर एयर पिस्टल इवेंट में गोल्ड जीता। कॉमनवेल्थ गेम्स के मेडल अपडेट जानने के लिए क्लिक करें�े मेडल अपडेट जानने के लिए क्लिक करें बिग बॉस में दागी चेहरे

रियलिटी शो 'बिग बॉस' में जिस तरह अपराधियों और विवादस्पद लोगों को स्टार बनाने की कोशिश की जा रही है, उस पर एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री और समाज
को ठहर कर सोचना चाहिए। कहीं यह शो जाने-अनजाने निगेटिव को पॉजिटिव बनाने या करैक्टर की लॉन्ड्रिंग का जरिया तो नहीं बनता जा रहा? इसकी चौथी कड़ी के कुछ उम्मीदवारों पर नजर डालें। इसमें एक तरफ बंटी चोर (जो पहले ही दिन बाहर हो गया) और डकैत रह चुकी सीमा परिहार हैं, तो दूसरी तरफ फिक्सिंग मामले में फंसे पाकिस्तानी क्रिकेटर मोहम्मद आसिफ की पूर्व गर्लफ्रेंड एक्ट्रेस वीना मलिक और कभी पाक आतंकवादी अजमल कसाब की पैरवी करने वाले वकील अब्बास काजमी हैं। सवाल यह है कि अभिनेता-अभिनेत्रियों और मॉडलों के साथ इन्हें शामिल किए जाने का क्या आधार है? 70 लोगों की हत्या और करीब 200 लोगों का अपहरण करने वाली सीमा परिहार को टीवी पर दिखाकर इस शो के निर्माता क्या संदेश देना चाहते हैं? क्या एक दागी क्रिकेटर की दोस्त होना और एक आतंकवादी का वकील होना बड़ी योग्यता है? ये लोग चर्चित तो हैं, लेकिन किसी सकारात्मक कारण से नहीं।

बिग बॉस-2 में जब राहुल महाजन और मोनिका बेदी को शामिल किया गया था, तब उनकी भी 'ख्याति' किसी अच्छे कारणों से नहीं थी। मोनिका बेदी ने भले ही कुछ फिल्मों में काम किया हो, पर उन्हें सिर्फ इस आधार पर रखा गया कि उनका नाम एक डॉन से जुड़ा था। राहुल महाजन भी नशे की आदत और अपनी पूर्व पत्नी से संबंध विच्छेद के कारण ज्यादा चर्चा में थे। लेकिन इस शो के बाद वह रातोंरात एक सिलेब्रिटी बन गए और उनकी पुरानी छवि अचानक धुल गई। यही मोनिका बेदी के साथ भी हुआ। तो क्या माना जाए कि बिग बॉस-4 सीमा परिहार को एक नायिका बना देगा? कुछ समय पहले तक काले को सफेद बनाने का यह काम राजनीति किया करती थी। लेकिन अब पॉलिटिक्स ने भी ऐसे तत्वों से किनारा करना शुरू कर दिया है। ऐसे में मनोरंजन उद्योग का इन्हें गले लगाना वाकई चिंता का विषय है।

यह कार्यक्रम अपने प्रतिभागियों के बहाने मनुष्य की कुप्रवृत्तियों का गंभीर विश्लेषण करने की कोशिश करता, तो शायद इसकी कुछ सार्थकता हो सकती थी। मगर यह शो ऐसी प्रवृत्तियों के प्रति आलोचनात्मक रुख अपनाने के बजाय उसके महिमामंडन में ज्यादा रुचि लेता है। सच कहा जाए तो यह शो चर्चित होने को एक मूल्य की तरह स्थापित करता है। यानी एक व्यक्ति को बस चर्चित होना चाहिए, चाहे वह कोई गलत काम करके ही क्यों न हो। अगर वह एक बार चर्चा में आ गया तो यह शो उसे हीरो बनाकर ही छोड़ेगा। अगर इस तरह निगेटिव वैल्यूज ने जोर पकड़ा तो इसका समाज पर गलत असर पड़ सकता है। ठीक है कि हमारे स्वभाव में अनेक विसंगतियां हैं, लेकिन कला और संस्कृति का मकसद उनसे मनुष्य को मुक्त कराना है न कि उन्हें और मजबूत बनाना।

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