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22 जून 2011

भयंकर भूलें

--  भयंकर भूलें ....        
           महाराजा रणजीत सिंह के कालखंड में कश्मीर  के मुसलमानों ने अनुरोध किया कि 
                              वे अपने पूर्वजों के हिन्दू धर्म में लौटना चाहते हैं.महाराजा ने इसे स्वीकार भी कर लिया. जिस दिन मुसलमानों कि सामूहिक शुद्धी कि जनि थी, कुछ संकीरण विचारों के पंडित महाराजा के पास ए और कहा कि शुद्धी हुई तो वे सब आत्महत्या कर लेंगे तथा महाराजा को ब्रम्हहत्या का पाप लगेगा. महाराजा इस धमकी के आगे झुक गए और कश्मीर घाटी के मुस्लिम समाज को राष्ट्रियधारा में लाने का स्वर्णिम अवसर चला गया.  * देश के विभाजन के समय जिन्ना कश्मीर को भारत में मिलाना चाहता था. महाराजा हरी सिंह ने उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया तो कबाइलियों के वेश में पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया. २६.१०.१९४७ को महाराजा ने कश्मीर का भारत में विलय करने का पत्र लिख दिया, तो भारतीय सेना अपने इस अंग के बच्व में उतरी. पाकिस्तानियों के छक्के छुडाते हुए हमारे सभी जवानों ने आक्रान्ताओं को पीछे धकेलना शुरू कर दिया, तभी ०१.०१.१९४८ को तात्कालिक प्रधानमंतरी पंडित जवाहर लाल नेहरू इस मामले को यु.एन.ओ. में ले गए. यह दूसरी भयंकर भूल थी, जिसके कारण आज कश्मीर एक नासूर बन गया है. सुरक्षा परिषद् ने भारतीय सेना के बढते कदम रोक दिए और कश्मीरियों को यह निर्णय करने (जनमत संग्रह) का अधिकार दे दिया, कि वे भारत में रहे या पाकिस्तान में रहें. 

                             कश्मीर का पुराना इतिहास 

* महर्षि कश्यप ने बसाया और उनके पुत्र नील कश्मीर
के पहले राजा थे.
* त्रेता युग में भगवन श्रीराम के पुत्र लव का शासन.
*
द्वापर में भगवन श्रीकृष्ण ने महारानी यशोमती का राज्याभिषेक किया.
* सम्राट
अशोक ने श्रीनगर बसाया और उनके पुत्र जालौक कश्मीर के शासक रहे.
* नागवंशी
नरेशों ने कुषाण राजा कनिष्क को निष्कासित किया.
* सम्राट समुन्द्र्गुप्त ने
मिहिरकुल को पराजित किया.
* ललितादित्य मुक्तपीड सबसे प्रतापी सम्राट बने.
*
अवन्तिवर्मन के शासन कल में कश्मीर समर्धि के शिखर पर.
* कश्मीर नरेश चन्द्रपीड
ने अरब हमलावरों को खदेड़ा.
* १४ वीं शताब्दी में मुस्लिम सुल्तानों का
अधिकार.
* महाराजा रणजीत सिंह ने विदेशियों को मर भगाया.
* सन १८४६ में डोगरा
वीर गोलब सिंह जम्मू कश्मीर के महाराजा बने. 

1 टिप्पणी:

  1. जहाँ
    निशान थे
    दीवारों पर गोलियों के,
    जीवन था।
    हत्या जहाँ हुई थी
    वहाँ था
    सिर्फ़ सन्नाटा।
    काफ़ी कुछ
    उपजा करता है
    सन्नाटे से।

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    क्रांति के युग में पाकर होश
    क्रांति की गति से होकर दूर
    नहीं है संभव कोई जोश
    इसी से हूं मैं भी मजबूर
    किंतु मजबूरी का यह शोर
    ...बराबर होता जाता व्यर्थ
    एक दुनिया मिटती इस ओर
    दूसरी बनने में असमर्थ

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