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22 जून 2011

जहां प्रिंसिपल थे, वहीं भीख मांगते मिले



रांची। जिस मैक्लुस्कीगंज के लिए डीआर कैमरून ने पत्नी व बच्चों को त्याग दिया था, आज वही उनसे दूर हो गया है। मैक्लुस्कीगंज की यह जानीमानी हस्ती कोलकाता के उसी स्कूल के सामने भीख मांगती मिली, जहां के कभी वे प्रिंसिपल थे। पूछने पर बस यही कहते हैं, ’आई एम नॉट फाइन हियर। मुझे यहां से ले चलो। मैं मैक्लुस्कीगंज में ही दफन होना चाहता हूं। आप मुझे वहां ले चलेंगे न..।’
मूल रूप से ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले कैमरून के बुरे दिन नब्बे के दशक के अंतिम वर्ष में शुरू हुए थे। बेरमो के पूंजीपति जगदीश पांडेय ने कैमरून से मैक्लुस्कीगंज के उनके गेस्ट हाउस ‘हाईलैंड’ और बंगले का सौदा किया था। सौदे के समय यह तय हुआ था कि जब तक कैमरून जिंदा रहेंगे, उन्हें गेस्ट हाउस का एक कमरा रहने के लिए निशुल्क दिया जाएगा। छह माह तो सब ठीक-ठाक रहा। इसके बाद उन्हें पीछे के एक बाथरूम में शिफ्ट कर दिया गया। वे बीमार हो गए। मई 2009 में जब यह बात ऑस्ट्रेलिया में उनके परिजनों को मिली, तो उन्होंने कैमरून को वहां बुला लिया।

कुछ दिन वहां रहने के बाद कैमरून का मन फिर मैक्लुस्कीगंज जाने के लिए बेताब होने लगा। फरवरी 2010 में वे मैक्लुस्कीगंज लौट आए। यहां उन्हें न ठौर मिला, न ठिकाना। वे इधर-उधर भटकने लगे। पैसे खत्म हुए तो मानसिक स्थिति भी गड़बड़ा गई। इसी क्रम में कोलकाता के खिदिरपुर पहुंच गए। यहां वे सेंट थॉमस स्कूल के आसपास भीख मांगने लगे। स्कूल की दाई रेहाना की नजर पर उन पर पड़ी, तो वह उन्हें पहचान गई। वह उन्हें अपने घर ले आई। इसके बाद उन्हें खिदिरपुर के ‘मेरी कुपर होम’ नामक वृद्धाश्रम में भर्ती करा दिया। इसकी जानकारी मिलने पर स्कूल की शिक्षिका श्रीमती घोष ने ऑस्ट्रेलिया में रह रहे परिजनों को कैमरून के बारे में बताया। सूचना पाकर उनका बेटा आया और वृद्धाश्रम का खर्च देने की बात कह कर लौट गया।

खदिरपुर वृद्धाश्रम में आसरा

दी ईस्ट इंडिया चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से चलने वाले इस वृद्धाश्रम के अधीक्षक लियो जार्डन हैं। इनकी पत्नी थ्रेडा जार्डन हैं। दोनों मिल कर इनकी सेवा करते हैं।

सत्तर के दशक में सिंबल थे

सत्तर के दशक में एक समय था, जब कैमरून मैक्लुस्कीगंज के सिंबल थे। यहां आने वाले पर्यटक और स्थानीय लोग उन्हें अंकल पुकारते थे। पर्यटक उनसे बिना मिले नहीं जाते थे।

मैक्लुस्कीगंज में बसती है जान

पेशे से शिक्षक कैमरून एंग्लोइंडियन हैं। उन्होंने देश-विदेश के कई नामी गिरामी स्कूलों में पढ़ाया। वे जहां भी रहे, लेकिन उनकी जान मैक्लुस्कीगंज में ही बसती थी। यही कारण है कि वे स्थाई रूप से यहीं बस गए। फैसले से नाराज उनकी पत्नी एंजेला आस्ट्रेलिया लौट गईं। कैमरून के तीन बेटे मार्क, जॉन और शेंड्रिक्स और एक बेटी मारिया है। सभी मैक्लुस्कीगंज छोड़ कर चले गए।

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