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15 जुलाई 2011

सुधारों के बहानें .....!?


 इन नीतियों ,सुधारों के अंतर्गत देश की केन्द्रीय व प्रांतीय सरकारे देश -प्रदेश के संसाधनों को , सावर्जनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों को इन विशालकाय कम्पनियों को सौपती जा रही है |कृषि भूमि का भी अधिकाधिक अधिग्रहण कर वे उसे कम्पनियों को सेज टाउनशिप आदि के निर्माण के नाम पर सौपती आ रही हैं | उन्ही के हिदायतों सुझाव के अनुसार 6 से 8 लेन की सडको के निर्माण के लिए भी सरकारे भूमि का अधिग्रहण बढाती जा रही है | यह सब राष्ट्र के आधुनिक एवं तीव्र विकास के नाम पर किया जा रहा है | सरकारों द्वारा भूमि अधिग्रहण पहले भी किया जाता रहा है |पर वह अंधाधुंध अधिग्रहण से भिन्न था | वह मुख्यत: सावर्जनिक उद्देश्यों कार्यो के लिए किया जाने वाला अधिग्रहण था |जबकि वर्मान दौर का अधिग्रहण धनाड्य कम्पनियों , डेवलपरो , बिल्डरों आदि के निजी लाभ की आवश्यकताओ के अनुसार किया जा रहा है |उसके लिए गावो को ग्रामवासियों को उजाड़ा जा रहा है |कृषि उत्पादन के क्षेत्र को तेज़ी से घटाया जा रहा है |थोड़े से धनाड्य हिस्से के निजी स्वार्थ के लिए व्यापक ग्रामवासियों की , किसानो का तथा अधिकाधिक खाद्यान्न उत्पादन की सार्वजनिक हित की उपेक्षा की जा रही है |उसे काटा घटाया जा रहा है| कोई समझ सकता है की , निजी वादी , वैश्वीकरण नीतियों सुधारो को लागू करते हुए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया रुकने या कम होने वाली नही है |इसलिए कानूनों में सुधारों बदलाव का हो हल्ला मचाकर किसानो ग्रामवासियों और अन्य जनसाधरण लोगो को फंसाया व भरमाया जा सकता है , पर उनकी भूमि का अधिग्रहण रुकने वाला नही है| अत: अब निजी हितो स्वार्थो में किये जा रहे कृषि भूमि अधिग्रहण के विरोध के साथ -साथ देश में लागू होते रहे , वैश्वीकरण नीतियों ,सुधारों के विरोध में किसानो एवं अन्य ग्राम वासियों को ही खड़ा हो ना होगा| इसके लिए उनको संगठित रूप में आना होगा |

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