अधिग्रहीत जमीनों का मालिकाना ले रही कम्पनियों के मुँह से ही उनकी अडचन सुन लीजिए
कृषि भूमि अधिग्रहण को लेकर उठते विवादों ,संघर्षो का एक प्रमुख कारण ,मौजूदा भूमि अधिग्रहण कानून में बताया जाता रहा है |इस कानून को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा 1894 में बनाया व लागू किया गया था| भूमि अधिग्रहण के झगड़ो -विवादों को हल करने के लिए इसी कानून को सुधार कर नया कानून बनाने की बात की जा रही है| इस सन्दर्भ में पहली बात तो यह है कि 1894 के कानून में सुधार का कई वर्षो से शोर मच रहा है ,इसके बावजूद सुधार नही हो पा रहा है तो क्यों ? आखिर अडचन कंहा हैं ? 2007 से ही इस कानून को सुधारने ,बदलने का मसौदा बनता रहा है| उसके बारे में चर्चाये भी होती रही है|
उदाहरण स्वरूप .............................
इस सुधार की यह चर्चा आती रही हैं कि, सेज ,टाउनशिप आदि के लिए आवश्यक जमीनों के 70 % से लेकर 90 % तक के हिस्सों को कम्पनियों को किसानो से सीधे खरीद लेना चाहिए| उसमे सरकार भूमिका नही निभायेगी| बाकी 30 % या 10 % को सरकार अधिग्रहण के जरिये उन्हें मुहैया करा देगी| हालांकि अरबपति-खरबपति कम्पनियों को ,किसानो की जमीन खरीदकर उसका मालिकाना अधिकार लेना या पाना कंही से उचित नही हैं| क्योंकि कृषि भूमि का मामला किसानो व अन्य ग्रामवासियों की जीविका से जीवन से जुड़ा मामला है राष्ट्र की खाद्यान्न सुरक्षा से जुदा मामला हैं |इस सन्दर्भ में यह दिलचस्प बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि सरकारों ने हरिजनों कि जमीन को बड़ी व मध्यम जातियों द्वारा खरीदने पर रोक लगाई हुई हैं| वह भी इस लिए कि बड़ी जातिया उन्हें खरीद कर हरिजनों को पुन: साधनहीन बना देंगी| जो बात हरिजनों के अधिकार क़ी सुरक्षा के रूप में सरकार स्वयं कहती हैं ,उसे वह सभी किसानो क़ी जीविका क़ी सुरक्षा के रूप में कैसे नकार सकती है ? उसे खरीदने क़ी छूट विशालकाय कम्पनियों को कैसे दे सकती हैं ? दूसरी बात जब सरकार ने ऐसे सुधार का मन बना लिया था तो ,उसमे अडचन कंहा से आ गयी ? क्या उसमे किसानो ने या राजनितिक पार्टियों ने अडचन डाल दी ? नही| उसमे प्रमुख अडचन अधिग्रहण के लिए लालायित कम्पनियों ने डाली है |इसकी पुष्टि आप उन्ही के ब्यान से कर लीजिये |18 मई के दैनिक जागरण में देश के सबसे बड़े उद्योगों के संगठन सी0 आई0 आई0 ने कहा कि" कारपोरेट जगत अपने बूते भूमि अधिग्रहण नही कर सकता | यह उन पर अतिरिक्त दबाव डाल देगा |... कम्पनियों द्वारा 90 % अधिग्रहण न हो पाने पर पूरी योजना पर सवालिया निशान लग जाएगा |इससे न सिर्फ औधोगिक कारण ही बल्कि आर्थिक विकास दरप्रभावित होगा | सुन लीजिये ! ए वही कारपोरेट घराने है ,जो सार्वजनिक कार्यो के प्रति ,खेती -किसानी के प्रति ,सरकारी शिक्षा ,सिचाई के इंतजाम के प्रति ,सरकारी चिकित्सा आदि के प्रति सरकार कि भूमिकाओं को काटने ,घटाने कि हिदायत देते रहे है और सरकार उन्हें मानती भी रही है |जनसाधारण के हितो के लिए आवश्यक कामो से अपना हाथ भी खिचती रही है |लेकिन अब वही कारपोरेट घराने स्वयं आगे बढ़ कर जमीन का सौदा करने को भी तौयार नही है |वे चाहते है कि सरकार अपने शासकीय व कानूनी अधिकार से किसानो को दबाकर जमीन अधिग्रहण कर दे ताकि वह उसे कम से कम रेट पर प्राप्त कर उसका स्वछ्न्दता पूर्वक उपयोग , उपभोग करे |सरकारे और राजनितिक पार्टिया ,राष्ट्र के आर्थिक विकास के नाम पर कारपोरेट घराने के इस व एनी सुझाव को आडा- तिरछा करके मान भी लेंगे |कानून में सुधार भी हो जाएगा और कम्पनी हित में अधिग्रहण चलता भी रहेगा |
कयोंकि यह मामला कानून का है ही नही |बल्कि उन नीतियों सुधारों का है ,जिसके अंतर्गत पुराने भूमि अधिग्रहण के कानून को हटाकर या संशोधित कर नया कानून लागू किया जाना है |सभी जानते है की पिछले २० सालो से लागू की जा रही उदारीकरण विश्विक्र्ण तथा निजीकरण नीतियों सुधारों के तहत देश दुनिया की धनाड्य औधिगिक वणिज्य एवं वित्तीय कम्पनियों को खुली छुट दी जा रही है |
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