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08 अगस्त 2011

जब गिलास बोला……


मै एक गिलास हूँ
हर पथिक की प्यास हूँ
न मुसलमान हूँ  ना इसाई हूँ
न हिन्दू हूँ न कसाई हूँ
मै धर्म नहीं देखता, मै कर्म नहीं देखता
मै तो अपने कर्मो का घड़ा भरता हूँ,
और निस्वार्थ भाव से आपकी सेवा करता हूँ
वो मियाँ अभी अभी मस्जिद से आये है
कुछ पावन लब्ज कुरान के अधरों पर छाए है
वह जिन्दगी जी रहे है,
मजे से जल पी रहे है
उनके अधरों को छू कर मेरे वारे न्यारे
वे गए पंडित काशीनाथ पधारे
क्या पावन एहसास मिला  है
एक पंडित का साथ मिला है
सूखे गले को तरण कर रहे है
वे भी जल ग्रहण कर रहे है
दोनों को जल पिला दिया
दोनों अधरों को मिला दिया
पर क्या सच में मिले है
शायद कुछ बैर पले है
पर क्यों ?
जब एक राह पर चल सकते है,
एक समान पल सकते है
एक समान बोलते है
एक समान सोचते है
एक से विचार है
एक सा आचार है
एक सा व्यवहार है
एक सा ही ज्ञान है
इससे भी बढ़कर दोनों इंसान है
मै निर्जीव हूँ, पर विचार से सजीव हूँ
जब मै हिन्दू  मुस्लिम में भेद नहीं करता,
समजल  देता हूँ कोई खेद नहीं करता
तो आप तो बुद्दिमान है, ज्ञानवान है,
उससे भी बढकर आप दोनों इंसान है
आज से सीख डालो,
अपने मन में प्रीत पालो
आप दोनों भाईचारे की शोभा है, आभा है
दोनों ही  धर्मा है, दोनों ही  कर्मा है
आप दोनों ही  गीता है, दोनों ही कुरान है
उससे भी बढकर आप दोनों इंसान है
उससे भी बढकर आप दोनों इंसान है ………..

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