कुल पेज दृश्य

09 जून 2011

हुसैन ने फिल्मों के होर्डिग बनाए थे शुरूआत में

मुंबई। मशहूर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन का निधन हो गया है। पारिवारिक सूत्रों के अनुसार हुसैन पिछले कुछ समय से बीमार थे। 17 सितम्बर 1915 को पन्ढरपुर में जन्मे मकबूल फिदा हुसैन की स्कूल की पढ़ाई इन्दौर में हुई और 1935 में मुंबई जाकर उन्होंने सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला ले लिया। उन्होंने अपने करियर की शुरूआत सिनेमा के होर्डिग पेन्ट करने से की और 1940 के दशक के अंत तक उनकी गिनती नामी चित्रकारों में होने लगी। एमएफ हुसैन ने एक इंटरव्यू में कहा था कि "1934 से पेंटिंग को अपना पेश बनाया, 1934 से सीरियसली, क्या वजह है मैं खुद नहीं जान सकता। मैंने उस वक्त अपने कप़डे सिलवाये थे। जिस तरह से सारे शिकारी की ड्रेस में बुलेट्स और ये-वो सारी चीजें रखने के अलग-अलग पॉकेट बनते थे तो मैं भी उस वक्त जेब में पैंसिल और वाटर कलर, वाटर कलर के साथ पानी चाहिए तो एक छोटी सी पॉकेट मे मैं पानी रखता था।"

1952 में ज्यूरिख में अपने चित्रों की पहली एकल प्रदर्शनी से वे यूरोप और अमरीका में भी लोकप्रिय हो गये। नीलामी में उनके चित्र लाखों डॉलर में बिकने लगे। 1966 में भारत सरकार ने हुसैन को पkश्री से अलंकृत किया।
1967 में मकबूल फिदा हुसैन ने अपनी पहली फिल्म बनाई - थ्रू द आइज ऑफ ए पेन्टर। बर्लिन फिल्मोत्सव में इस फिल्म को गोल्डन बीयर सम्मान मिला। उन्होंने गजगामिनी और मीनाक्षी-ए टेल ऑफ थ्री सिटीज नाम से दो हिन्दी फिल्में भी बनाई।
कई दफा हुसैन साहब को कई चीजों पर नाराजगी हुई। और उन्होंने जाहिर की। उस नाराजगी को दूर करने के प्रयास सरकार की तरफ से भी हुए और बहुत से एनजीओ ग्रुप की तरफ से भी किये गये। जहां तक उनकी नागरिकता की बात है तो उन्होंने बदलाव किया। एक इन्टरव्यू में उन्होंने कारण दिये थे अपनी सिटीजनशिप को बदलने के लेकिन उन्होंने मुल्क के तौर पर भारत से मोहब्बत करना बंद नहीं किया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें