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06 अप्रैल 2013

भारत की विश्व विख्यात धरोहर कोहेनूर हीरा

जिसे अंग्रेज भारत से दूर लंदन ले गए थे, भले ही दुनिया का सबसे अनमोल हीरा क्यों ना हो लेकिन उसके साथ भी एक ऐसा श्राप जुड़ा है जो मौत तो लाता ही है लेकिन पूरी तरह तबाह और बर्बाद करने के बाद ! कोहेनूर : कोह-ए-नूर, का अर्थ है रोशनी का पहाड़, लेकिन इस हीरे की रोशनी ने ना जाने कितने ही साम्राज्यों का पतन कर दिया।वर्तमान आंध्र-प्रदेश के गुंटूर जिले में स्थित एक खदान में से यह बेशकीमती हीरा निकाला गया था। ऐतिहासिक दस्तावेजों में सबसे पहले इस हीरे का उल्लेख बाबर के द्वारा 'बाबरनामा' में किया गया था। बाबरनामा के अनुसार यह हीरा सबसे पहले सन 1294 में ग्वालियर के एक गुमनाम राजा के पास था लेकिन उस समय इस हीरे का नाम कोहेनूर नहीं था। लगभग 1306 ई. के बाद से ही इस हीरे को पहचान मिली। कोहेनूर हीरा हर उस पुरुष राजा के लिए एक श्राप बना जिसने भी इसे धारण करने या अपने पास रखने की कोशिश भी की। इस हीरे के श्राप को इसी बात से समझा जाता है कि जब यह हीरा अस्तित्व में आया तो इसके साथ इसके श्रापित होने की भी बात सामने आई कि : "इस हीरे को पहनने वाला दुनिया का शासक बन जाएगा, लेकिन इसके साथ ही दुर्भाग्य भी उसके साथ जुड़ जाएगा, केवल ईश्वर और महिलाएँ ही किसी भी तरह के दंड से मुक्त होकर इसे पहन सकती हैं !" कई साम्राज्यों ने इस हीरे को अपने पास रखा लेकिन जिसने भी रखा वह कभी भी खुशहाल नहीं रह पाया। इतिहास से जुड़े दस्तावेजों के अनुसार 1200-1300 ई. तक इस हीरे को गुलाम साम्राज्य, खिलजी साम्राज्य और लोदी साम्राज्य के पुरुष शासकों ने अपने पास रखा और अपने श्राप की वजह से यह सारे साम्राज्य अल्प कालीन रहे और इनका अंत जंग और हिंसा के साथ हुआ। लेकिन जैसे ही यह हीरा 1323 ई. में काकतीय वंश के पास गया तो 1083 ई. से शासन कर रहा यह साम्राज्य अचानक बुरी तरह ढह गया। काकतीय राजा की हर युद्ध में हार होने लगी, वह अपने विरोधियों से हर क्षेत्र में मात खाने लगे और एक दिन उनके हाथ से शासन चला गया। काकतीय साम्राज्य के पतन के पश्चात यह हीरा 1325 से 1351 ई. तक मोहम्मद बिन तुगलक के पास रहा और 16वीं शताब्दी के मध्य तक यह विभिन्न मुगल सल्तनत के पास रहा और सभी का अंत इतना बुरा हुआ जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। शाहजहां ने इस कोहेनूर हीरे को अपने मयूर सिंहासन में जड़वाया लेकिन उनका आलीशान और बहुचर्चित शासन उनके बेटे औरंगजेब के हाथ चला गया। उनकी पसंदीदा पत्नी मुमताज का इंतकाल हो गया और उनके बेटे ने उन्हें उनके अपने महल में ही नजरबंद कर दिया। 1605 में एक फ्रांसीसी यात्री, जो हीरों जवाहरातों का पारखी था, भारत आया और उसने कोहेनूर हीरे को दुनिया के सबसे बड़े और बेशकीमती हीरे का दर्जा दिया। 1739 में फारसी शासक नादिर शाह भारत आया और उसने मुगल सल्तनत पर आक्रमण कर दिया। इस तरह मुगल सल्तनत का पतन हो गया और सत्ता फारसी शासक नादिर शाह के हाथ चली गई। 1747 में नादिर शाह का भी कत्ल हो गया और कोहेनूर उसके उत्तराधिकारियों के हाथ में गया लेकिन कोहेनूर के श्राप ने उन्हें भी नहीं छोड़ा, सभी को सत्ताविहीन कर उन्हीं के अपने ही समुदाय पर एक बोझ बनाकर छोड़ दिया गया। फिर यह हीरा पंजाब के राजा रणजीत सिंह के पास गया और कुछ ही समय राज करने के बाद रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई और उनके बाद उनके उत्तराधिकारी गद्दी हासिल करने में कामयाब नहीं रहे। अन्ततः ब्रिटिश शासन के अधिकार में ले लिया गया और अब उनके खजाने में शामिल हो गया। भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान इसे ब्रिटिश प्रधानमंत्री बेंजामिन डिजराएली ने महारानी विक्टोरिया को तब भेंट किया जब उसे सन 1877 में उन्हें भारत की भी सम्राज्ञी घोषित किया। ब्रिटिश राजघराने को इस हीरे के श्रापित होने जैसी बात समझ में आ गई और उन्होंने यह निर्णय किया कि इसे कोई पुरुष नहीं बल्कि महिला पहनेगी, इसीलिए 1936 में इस हीरे को किंग जॉर्ज षष्टम की पत्नी क्वीन एलिजाबेथ के क्राउन में जड़वा दिया गया और तब से लेकर अब तक यह हीरा ब्रिटिश राजघराने की महिलाओं के ही सिर की शोभा बढ़ा रहा है। कोहिनूर नए रत्नतराशों की सलाह पर इसकी प्रतिरत्न के कटाव में कुछ बदलाव हुए, जिनसे वह और सुंदर प्रतीत होने लगा। 1852 में, विक्टोरिया के पति प्रिंस अल्बर्ट की उपस्थिति में, हीरे को पुनः तराशा गया, जिससे वह 186,16 कैरेट / 186.06 कैरेट (37.2 ग्राम) से घट कर 105.602 कैरेट / 106.6 कैरेट (21.6 ग्राम) का हो गया, किन्तु इसकी आभा में कई गुणा बढ़ोत्तरी हुई। अल्बर्ट ने बुद्धिमता का परिचय देते हुए, अच्छी सलाहों के साथ, इस कार्य में अपना अतीव प्रयास लगाया, साथ ही तत्कालीन 8000 पाउंड भी इसे तराशने में खर्च, जिससे इस रत्न का भार 81 कैरट घट गया, परन्तु अल्बर्ट फिर भी असन्तुष्ट थे। हीरे को मुकुट में अन्य दो हजार हीरों सहित जड़ा गया। फिलहाल इसे भारत वापस लाने को कोशिशें जारी हैं। आजादी के फौरन बाद भारत ने कई बार कोहिनूर पर अपना मालिकाना हक जताया है। महाराजा दिलीप सिंह की बेटी कैथरीन की सन् 1942 मे मृत्यु हो गई थी, जो कोहिनूर के भारतीय दावे के संबध में ठोस दलीलें दे सकती थीं। इस कोहेनूर हीरे की वर्तमान कीमत का अनुमान 150 हजार करोड़ रुपये से अधिक है।

24 मार्च 2012


अफगानिस्तान में तैनात एक शीर्ष अमेरिकी कमांडर ने कहा है कि तालिबान का फिर से सिर उठाना और अफगानिस्तान सरकार को हटा कर सत्ता हथियाना पाकिस्तान के हित में नहीं है और यह बात पाकिस्तान का शीर्ष सैन्य नेतृत्व अच्छी तरह समझता है। अगर तालिबान लौटा तो तो बरबाद हो जाएगा पाकिस्तान...
अफगानिस्तान में अमेरिका और नाटो बलों के कमांडर जनरल जॉन एलेन ने कहा कि मेरा अनुमान है कि पाकिस्तानी सरकार और सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी शायद इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि अफगानिस्तान में फिर से तालिबान का सिर उठाना और अफगान सरकार को हटा कर सत्ता हथियाना किसी भी तरह उनके हित में नहीं है।

पीबीएस न्यूज नेटवर्क के चर्चित चार्ली रोज शो में एक साक्षात्कार में एलेन ने कहा कि तालिबान सरकार ने कभी भी पाकिस्तान के हित पूरे नहीं किए। काबुल में तालिबान फिर से सिर उठा रहा है।

उन्होंने कहा कि यह किसी के हित में नहीं है। अल-कायदा से खुद को अलग करने के लिए तालिबान ने प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर कोई प्रयास नहीं किया है। इससे पता चलता है कि वह केवल अफगान लोगों या अफगान सरकार के लिए ही नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक गंभीर खतरा बना हुआ है।

एलेन ने कहा कि संघीय प्रशासित कबायली इलाकों में अलकायदा की सुरक्षित पनाहगाहों से आने वाले कुछ समय में दिक्कतें होंगी। उन्होंने कहा कि इन पनाहगाहों को समाप्त करने के लिए अमेरिका पाकिस्तान से और कदम उठाने को कह रहा है। (भाषा) 

22 अक्टूबर 2011

रहिये तैयार कैन्सर से लड़ने के लिये



जी‌ हां, हमेशा, क्योंकि कैन्सर कोई इन्फ़ैक्शन से तो शायद ही होता हो.. यह तो कोशिकाओं का गुण है कि वे सख्या में बढ़ोत्तरी करती रहें ताकि हम बढ़ते रहें , हमारी मृत कोशिकाओं की क्षतिपूर्ति होती रहे । बस बात कोशिकाओं की बढ़त पर नियंत्रण की है और स्वस्थ्य कोशिकाएं आवश्यकता पूरी करने पर अपनी‌ बढ़त रोक देती हैं। जिस तरह मानव का स्वभाव है गलती करना उत्नी तो नहीं किन्तु यह कोशिकाएं भी करोड़ों में एकाध बार गलती कर देती हैं और अपनी बढ़त करती‌ जाती हैं। यही मौका है जब हमारा प्रतिरोधी तंत्र इनसे लड़ाई करता है, और यदि स्वस्थ्य रहा तो जीत जाता है।
बात प्रतिरोधी तंत्र के सशक्त होने की है। तम्बाकू शराब जं‌क फ़ूड या ड्रिंक, दूषित वातावरण, जल तथा आहार भी प्रतिरोधी तंत्र को दुर्बल करते हैं और बादाम, अखरोट, अंगूर, पपीता, अनार, नारंगी, केला, अमरूद आदि फ़ल, तथा हमारे मसाले, विशेषकर हलदी, मिर्च तथा शिमला मिर्च और अन्य सब्जियां प्रतिरोधी तंत्र को सशक्त करते हैं।
और शारीरिक व्यायाम भी हमेशा की तरह हमें रोगों से तथा कैन्सर से लड़ने की शक्ति देता है।
तो बस हमेशा रहिये तैयार कैन्सर से लड़ने के लिये ।

16 अक्टूबर 2011

Introducing the New Gifs: Soccer Throw Headshot

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Introducing the New Gifs: Spank Prank

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19 अगस्त 2011

नक्सलवाद भी एक फ़ोड़ा


नक्सलवाद भी एक फ़ोड़ा है को नासूर बन गया है।आज रात फ़िर छुटटी पर जा रहे 9 जवानों को लगभग डेढ सौ नक्सलियों ने घेर कर मौत के घाट उतार डाला।औपचरिकता के लिये मुख्यमंत्री डा रमन सिंह के घर आला अफ़सरों की बैठक हो गई है। उन नौ जवानों के घर में आये आंसूओं के सैलाब को कौन थामेगा?क्या स्वामी जी को भ्रष्टाचार के आंदोलन से फ़ुरसत मिलेगी?वे नक्सलियों को कह पायेंगे कि निर्दोष जवानो का खून बहाना बंद करें।

18 अगस्त 2011

ANNA


जज्बात


अपने जज्बात को,
नाहक ही सजा देती हूँ...होते ही शाम,
चरागों को बुझा देती हूँ...
जब राहत का,
मिलता ना बहाना कोई...लिखती हूँ हथेली पे नाम तेरा,
लिख के मिटा देती हूँ......................

ई मीडिया को लेकर अक्सर ये सवाल उठते रहे हैं कि वो अपने दायित्व को ठीक से निभा नही रहा हैं,लेकिन अन्ना हजारे के आंदोलन को आज जन आंदोलन बनाने का किया हैं तो उसमें ई मीडया ने महती भूमिका निभाई है। ई मीडिया के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ हैं कि जब २४ घंटे तक कोई खबर के लिए बुलेटिन निकला हो और जिसका लाइव होता रहा। वास्तव में एक बार फिर से मीडिया अपनी ताकत का एहसास करा दिया हैं। जिस तरह से देश को आजादी दिलाने में पूर्व में अखबरो नें अपनी भूमिका निर्वहन किया था ठीक आज उसी तरह देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने में ई मीडिया अपनी भूमिका अदा कर रहा हैं। यह सत्य हैं कि आज भ्रष्टाचार हर कही और इससे मीडिया भी अछूता नहीं है बावजुद इसके जब मीडिया को एक मीडिया याने माध्यम या कहिए एक मंच अन्ना हजारे के रुप में मिला हैं तो उसनें भी इस मूहिम को अंजाम तक पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा हैं। यही मीडिया का सत्य हैं। जय अन्ना, जय मीडिया ।

08 अगस्त 2011

हिन्दू से पहले हिन्दुस्तानी



न भोगी हू न जोगी हूँ , मै निष्पाप कहानी हूँ
मत कह तू मुझको हिन्दू प्यारे मै हिन्दू से पहले हिन्दुस्तानी हूँ
मै ज्ञान नहीं मै ध्यान नहीं, अरमान नहीं भगवान् नहीं,
मत देख तू मुझको ऐसे प्यारे मै मजदूर के माथे वाला पानी हूँ
मत कह तू मुझको हिन्दू प्यारे मै हिन्दू से पहले हिन्दुस्तानी हूँ
हे मनु तू कितना निर्दयी तुने ये क्या भेद बनाया है,
हिन्दू में क्या रखा, जो मुस्लिम ने ना पाया है,
क्यों कहता इंसा इंसा से तू हिन्दुस्तानी मै पाकिस्तानी हूँ
मत कह तू मुझको हिन्दू प्यारे मै हिन्दू से पहले हिन्दुस्तानी हूँ
खून बहा जाने कितनो का इस अनचाहे बटवारे से
आसमान जैसे बिछड़ा कोई अपने प्यारे  तारे से
न शर्मा हू न वर्मा हू, मै शास्वत रूप से कर्मा हूँ
खान ना कहना मुझको प्यारे मै खान नहीं खानदानी हूँ
मत कह तू मुझको हिन्दू प्यारे मै हिन्दू से पहले हिन्दुस्तानी हूँ…..
मत कह तू मुझको हिन्दू प्यारे मै हिन्दू से पहले हिन्दुस्तानी हूँ……

जब गिलास बोला……


मै एक गिलास हूँ
हर पथिक की प्यास हूँ
न मुसलमान हूँ  ना इसाई हूँ
न हिन्दू हूँ न कसाई हूँ
मै धर्म नहीं देखता, मै कर्म नहीं देखता
मै तो अपने कर्मो का घड़ा भरता हूँ,
और निस्वार्थ भाव से आपकी सेवा करता हूँ
वो मियाँ अभी अभी मस्जिद से आये है
कुछ पावन लब्ज कुरान के अधरों पर छाए है
वह जिन्दगी जी रहे है,
मजे से जल पी रहे है
उनके अधरों को छू कर मेरे वारे न्यारे
वे गए पंडित काशीनाथ पधारे
क्या पावन एहसास मिला  है
एक पंडित का साथ मिला है
सूखे गले को तरण कर रहे है
वे भी जल ग्रहण कर रहे है
दोनों को जल पिला दिया
दोनों अधरों को मिला दिया
पर क्या सच में मिले है
शायद कुछ बैर पले है
पर क्यों ?
जब एक राह पर चल सकते है,
एक समान पल सकते है
एक समान बोलते है
एक समान सोचते है
एक से विचार है
एक सा आचार है
एक सा व्यवहार है
एक सा ही ज्ञान है
इससे भी बढ़कर दोनों इंसान है
मै निर्जीव हूँ, पर विचार से सजीव हूँ
जब मै हिन्दू  मुस्लिम में भेद नहीं करता,
समजल  देता हूँ कोई खेद नहीं करता
तो आप तो बुद्दिमान है, ज्ञानवान है,
उससे भी बढकर आप दोनों इंसान है
आज से सीख डालो,
अपने मन में प्रीत पालो
आप दोनों भाईचारे की शोभा है, आभा है
दोनों ही  धर्मा है, दोनों ही  कर्मा है
आप दोनों ही  गीता है, दोनों ही कुरान है
उससे भी बढकर आप दोनों इंसान है
उससे भी बढकर आप दोनों इंसान है ………..

06 अगस्त 2011

वफ़ा की राह में देखें , हमारा क्या ठिकाना है !!

दिया लेकर, भरी बरसात में, उस पार जाना है !
उधर पानी, इधर है आग, दोनों से निभाना है !!
करो कुछ बात गीली सी , ग़ज़ल छेड़ो पढो कविता !
किसी को याद करने का , बहुत अच्छा बहाना है !!
मेरा आईना भी मेरी, बहुत तारीफ करता है !
मुझे लगता है सोने से, इसे भी मुंह मढाना है !!
मुहब्बत की डगर सीधी , मगर दस्तूर उलटे है !
अगर चाहो इसे पाना ,तो फिर जी भर लुटाना है !!
ये मंज़र प्यार में तुमने , अभी देखे कहाँ होंगे !
 लिपटना है घटा से , प्यास, शबनम से बुझाना है !!
मुखौटे तोड़ने भी हैं , भरम जिंदा भी रखना है !
यहाँ पर कुफ्र है पीना , औ, लाजिम डगमगाना है !
ये आंसू भी तो स्वाँती, बूँद से कुछ कम नहीं मेरे !
संवर जाये तो मोती है , बिखर जाये फ़साना है !!
मेरी बेचारगी को माफ़ करना ऐ जहाँ वालो !
ये किस्सा है हसीनों का , मशीनों को सुनाना है !!
अभी तक तो नहीं पाई , किसी ने भी यहाँ मंजिल !
वफ़ा की राह में देखें , हमारा क्या ठिकाना है !!

झूठा प्रदर्शन मत करो वरना


किसी नगर में एक जमीदार का लड़का था , उसे पढ़ना-लिखना बहुत पसंद था | उसके पास दुनिया भर की किताबे भरी थी , उसको आपने ज्ञानी होने पर बहुत घमंड था और वो लोगो को चेलेंग भी करता रहता था | एक बार उसको किसी ने बताया की तुम्हारा ज्ञान अधुरा है , जब तक तुम स्वामी जी से ज्ञान ना लो ....... वो ऐसा सुनके स्वामी जी के पास ज्ञान लेने आ गया स्वामी जी उसके ज्ञान से प्रभावित हो गये उन्होंने कहा तुम को सब पता है ... मै तुम को कुछ नहीं दे सकता..... | वो दुखी हो गया ... ये देखकर स्वामी जी ने उसे 7 किताबे दे... दी... जिसे लेकर वो ख़ुशी -ख़ुशी घर आने लगा रस्ते में एक नदी थी जिसके पुल को पार करते वक़्त अचानक उसकी किताबे नदी में गिर गयी और वो जोर - जोर से चिल्लाकर रोने लगा... उसके आवाज सुनके एक गिलहरी आई उसने पूछा क्या हुआ ??... लड़का आश्चर्यचकित हो गया.. फिर भी उसने कहा मेरी किताबे नदी में गिर गयी... गिलहरी ने चिड़िया को आवाजमारी क्या तुमको इसकी किताबे दिख रही है...?? चिड़िया बोली नहीं.. मगरमछ से पुचो.. मगरमछ ने बताया .... लड़के तुम्हारी किताब ख़राब हो गई है... तुम नयी किताबे ले आओ | ये सुनते ही लड़का किताबो के लिए स्वामी जी के पास दौडा... जब स्वामी जी को उसने पूरी घटना बताई ... तो स्वामी जी हंसने लगे और कहा तुम पागल हो गये हो ... लड़के को क्रोध आ गया उसने जोर से कहा... मै सच बोल रहा हूँ... तब स्वामी जी ने कहा अगर ये सच है, तो तुम से बड़ा ज्ञानी कोई नहीं पर ये ज्ञान सभी के सामने नहीं दिखाना वरना लोग तुमको पागल कहेगे.... फिर उन्होंने बताया की तुम्हारे चारो तरफ ज्ञान ही ज्ञान है ... जितना तुम जानो उतना कम है , इसलिए जो भी है उसको बढ़ाते जाओ झूठा प्रदर्शन मत करो वरना लोग तुम को पागल कहेगे....

02 अगस्त 2011

आँखे नम हो जाती है

  हिंदुस्तान के कई वीरो ने अपनी धरती माँ की सेवा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी ,उन के बारे में जब भी चिंतन किया जाता है तो आँखे नम हो जाती है , इन वीरो को ये नहीं पता था की जिस देश के लिए हम जान दे रहे है उस देश में नेता के नाम पर चोर भर जायेंगे , उन शहीदों की आत्मा आज भी इस देश को देख कर तडपती होगी ,सोचता होगा भगत सिंह की किन लोगो के लिए मैंने अपने प्राण गवा दिए जिन को आपस में लड़ने से फुर्सत नहीं है वो देश का भला क्या करेंगे ,जो अपना घर भरने में लगे हो वो देश की चिंता क्यों करेंगे ,
सहादत अनमोल है इसका मोल मत लगाइए 
शहीदों की अमर गाथा को कमजोर मत बनाइये 
हमने नहीं माँगा कोई मोल सहादत का 
सहादत को इस दुनिया में मखोल मत बनाइये  
जय हिंद .............


उन्हें यह फ़िक्र है हरदम नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है

हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है
दहर से क्यों ख़फ़ा रहें,चर्ख से क्यों ग़िला करें

सारा जहाँ अदू सही,आओ! मुक़ाबला करें
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे;
 
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, माय रँग दे बसन्ती 
 
चोला।।

20 जुलाई 2011

nothing


क्या सचमुच सर्कस है जीवन....? ( शो तीन घंटे का ...पजल घंटा बचपन है दूसरा जवानी है और तीसरा बुडापा है..?)
Ravi Gurbaxani 19 जुलाई 18:46
क्या सचमुच सर्कस है जीवन....? ( शो तीन घंटे का ...पजल घंटा बचपन है दूसरा जवानी है और तीसरा बुडापा है..?)

15 जुलाई 2011

सुधारों के बहानें .....!?


 इन नीतियों ,सुधारों के अंतर्गत देश की केन्द्रीय व प्रांतीय सरकारे देश -प्रदेश के संसाधनों को , सावर्जनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों को इन विशालकाय कम्पनियों को सौपती जा रही है |कृषि भूमि का भी अधिकाधिक अधिग्रहण कर वे उसे कम्पनियों को सेज टाउनशिप आदि के निर्माण के नाम पर सौपती आ रही हैं | उन्ही के हिदायतों सुझाव के अनुसार 6 से 8 लेन की सडको के निर्माण के लिए भी सरकारे भूमि का अधिग्रहण बढाती जा रही है | यह सब राष्ट्र के आधुनिक एवं तीव्र विकास के नाम पर किया जा रहा है | सरकारों द्वारा भूमि अधिग्रहण पहले भी किया जाता रहा है |पर वह अंधाधुंध अधिग्रहण से भिन्न था | वह मुख्यत: सावर्जनिक उद्देश्यों कार्यो के लिए किया जाने वाला अधिग्रहण था |जबकि वर्मान दौर का अधिग्रहण धनाड्य कम्पनियों , डेवलपरो , बिल्डरों आदि के निजी लाभ की आवश्यकताओ के अनुसार किया जा रहा है |उसके लिए गावो को ग्रामवासियों को उजाड़ा जा रहा है |कृषि उत्पादन के क्षेत्र को तेज़ी से घटाया जा रहा है |थोड़े से धनाड्य हिस्से के निजी स्वार्थ के लिए व्यापक ग्रामवासियों की , किसानो का तथा अधिकाधिक खाद्यान्न उत्पादन की सार्वजनिक हित की उपेक्षा की जा रही है |उसे काटा घटाया जा रहा है| कोई समझ सकता है की , निजी वादी , वैश्वीकरण नीतियों सुधारो को लागू करते हुए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया रुकने या कम होने वाली नही है |इसलिए कानूनों में सुधारों बदलाव का हो हल्ला मचाकर किसानो ग्रामवासियों और अन्य जनसाधरण लोगो को फंसाया व भरमाया जा सकता है , पर उनकी भूमि का अधिग्रहण रुकने वाला नही है| अत: अब निजी हितो स्वार्थो में किये जा रहे कृषि भूमि अधिग्रहण के विरोध के साथ -साथ देश में लागू होते रहे , वैश्वीकरण नीतियों ,सुधारों के विरोध में किसानो एवं अन्य ग्राम वासियों को ही खड़ा हो ना होगा| इसके लिए उनको संगठित रूप में आना होगा |

भूमि - अधिग्रहण कानून के संशोधन में आखिर अडचन कंहा हैं ?



अधिग्रहीत जमीनों का मालिकाना ले रही कम्पनियों के मुँह से ही उनकी अडचन सुन लीजिए
 कृषि भूमि अधिग्रहण को लेकर उठते विवादों ,संघर्षो का एक प्रमुख कारण ,मौजूदा भूमि अधिग्रहण कानून में बताया जाता रहा है |इस कानून को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा 1894 में बनाया व लागू किया गया था| भूमि अधिग्रहण के झगड़ो -विवादों को हल करने के लिए इसी कानून को सुधार कर नया कानून बनाने की बात की जा रही है| इस सन्दर्भ में पहली बात तो यह है कि 1894 के कानून में सुधार का कई वर्षो से शोर मच रहा है ,इसके बावजूद सुधार नही हो पा रहा है तो क्यों ? आखिर अडचन कंहा हैं ? 2007 से ही इस कानून को सुधारने ,बदलने का मसौदा बनता रहा है| उसके बारे में चर्चाये भी होती रही है|
उदाहरण स्वरूप .............................

इस सुधार की यह चर्चा आती रही हैं कि, सेज ,टाउनशिप आदि के लिए आवश्यक जमीनों के 70 % से लेकर 90 % तक के हिस्सों को कम्पनियों को किसानो से सीधे खरीद लेना चाहिए| उसमे सरकार भूमिका नही निभायेगी| बाकी 30 % या 10 % को सरकार अधिग्रहण के जरिये उन्हें मुहैया करा देगी| हालांकि अरबपति-खरबपति कम्पनियों को ,किसानो की जमीन खरीदकर उसका मालिकाना अधिकार लेना या पाना कंही से उचित नही हैं| क्योंकि कृषि भूमि का मामला किसानो व अन्य ग्रामवासियों की जीविका से जीवन से जुड़ा मामला है राष्ट्र की खाद्यान्न सुरक्षा से जुदा मामला हैं |इस सन्दर्भ में यह दिलचस्प बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि सरकारों ने हरिजनों कि जमीन को बड़ी व मध्यम जातियों द्वारा खरीदने पर रोक लगाई हुई हैं| वह भी इस लिए कि बड़ी जातिया उन्हें खरीद कर हरिजनों को पुन: साधनहीन बना देंगी| जो बात हरिजनों के अधिकार क़ी सुरक्षा के रूप में सरकार स्वयं कहती हैं ,उसे वह सभी किसानो क़ी जीविका क़ी सुरक्षा के रूप में कैसे नकार सकती है ? उसे खरीदने क़ी छूट विशालकाय कम्पनियों को कैसे दे सकती हैं ? दूसरी बात जब सरकार ने ऐसे सुधार का मन बना लिया था तो ,उसमे अडचन कंहा से आ गयी ? क्या उसमे किसानो ने या राजनितिक पार्टियों ने अडचन डाल दी ? नही| उसमे प्रमुख अडचन अधिग्रहण के लिए लालायित कम्पनियों ने डाली है |इसकी पुष्टि आप उन्ही के ब्यान से कर लीजिये |18 मई के दैनिक जागरण में देश के सबसे बड़े उद्योगों के संगठन सी0 आई0 आई0 ने कहा कि" कारपोरेट जगत अपने बूते भूमि अधिग्रहण नही कर सकता | यह उन पर अतिरिक्त दबाव डाल देगा |... कम्पनियों द्वारा 90 % अधिग्रहण न हो पाने पर पूरी योजना पर सवालिया निशान लग जाएगा |इससे न सिर्फ औधोगिक कारण ही बल्कि आर्थिक विकास दरप्रभावित होगा | सुन लीजिये ! ए वही कारपोरेट घराने है ,जो सार्वजनिक कार्यो के प्रति ,खेती -किसानी के प्रति ,सरकारी शिक्षा ,सिचाई के इंतजाम के प्रति ,सरकारी चिकित्सा आदि के प्रति सरकार कि भूमिकाओं को काटने ,घटाने कि हिदायत देते रहे है और सरकार उन्हें मानती भी रही है |जनसाधारण के हितो के लिए आवश्यक कामो से अपना हाथ भी खिचती रही है |लेकिन अब वही कारपोरेट घराने स्वयं आगे बढ़ कर जमीन का सौदा करने को भी तौयार नही है |वे चाहते है कि सरकार अपने शासकीय व कानूनी अधिकार से किसानो को दबाकर जमीन अधिग्रहण कर दे ताकि वह उसे कम से कम रेट पर प्राप्त कर उसका स्वछ्न्दता पूर्वक उपयोग , उपभोग करे |सरकारे और राजनितिक पार्टिया ,राष्ट्र के आर्थिक विकास के नाम पर कारपोरेट घराने के इस व एनी सुझाव को आडा- तिरछा करके मान भी लेंगे |कानून में सुधार भी हो जाएगा और कम्पनी हित में अधिग्रहण चलता भी रहेगा |
कयोंकि यह मामला कानून का है ही नही |बल्कि उन नीतियों सुधारों का है ,जिसके अंतर्गत पुराने भूमि अधिग्रहण के कानून को हटाकर या संशोधित कर नया कानून लागू किया जाना है |सभी जानते है की पिछले २० सालो से लागू की जा रही उदारीकरण विश्विक्र्ण तथा निजीकरण नीतियों सुधारों के तहत देश दुनिया की धनाड्य औधिगिक वणिज्य एवं वित्तीय कम्पनियों को खुली छुट दी जा रही है |

13 के तिलिस्‍म में जल रहा है भारत


देश में हुए कई बड़े धमाकों के लिये आतंकियों ने महिने के 13 और 26 तारीख को चुना है। 26 भी 13 की पूर्ण योगफल है। बुधवार को मुबई में सिलसिलेवार बम धमके भी 13 तारीख को ही किये गये। तो आईए 13 तारीख को हुए आतंकी हमलों पर एक नजर डालते हैं।

13 दिसम्‍बर 2001-  देश के संसद पर आतंकी हमला, 12 लोगों की मौत
26 मई 2007-       गोवाहटी में बम विस्‍फोट, 6 लोगों की मौत
13 मई 2008-      जयपुर में बम धमाका, 68 लोगों की मौत
26 जुलाई 2008-   अहमदाबाद में सिलसिलेवार बम धमाकों में 57 लोगों की मौत
13 सितम्‍बर 2008- दिल्‍ली में हुए सीरियल बम धमाकों में 26 लोगों की मौत
26 नवम्‍बर 2008-  मुंबई आतंकी हमले में 166 लोगों की मौत
13 फरवरी 2010-   पूणे में हुए बम ब्‍लास्‍ट में 17 लोगों की मौत
13 दिसम्‍बर 2004- असम के विधानसभा के बाहर धमाके में 2 लोगों की मौत

मैं पत्थर हूँ

मैं पत्थर हूँ मुझे जीना नहीं भगवान सा बनकर ।
मुझे रहना नहीं खुद में कोई मेहमान सा बनकर ।

कोई जीता यां हारा ख़ाक मेरी ही उडी हर पल ,
जीआ मैं ज़िन्दगी को जंग का मैदान सा बनकर ।

मेरी हर सोच में रहता है यह बाज़ार दुनिया का ,
मैं अप्पने घर पड़ा रहता हूँ बस सामान सा बनकर ।

13 जुलाई 2011

मौत का अस्‍पताल, रूहो का घर है वैवरले हिल्‍स

हर इंसान के दिमाग में इस पृथ्‍वी पर भूतों और आत्‍माओं के वास करने जैसे सवाल उठते रहते है। इस दुनिया में कई ऐसे लोग भी हैं जो कि गाहे बगाहे इन रूहो और आत्‍माओं से दो चार भी हो जाते हैं और उन्‍हे किसी अलग तरह की अनुभूति भी होती है। लेकिन कभी-कभी इंसान अपने आस-पास की किसी खास जगह के लिए अपने दिमाग में एक बात बैठा लेता है कि उस जगह पर भूत, आत्‍मा या किसी रूह का वास है। हम आपको उसी तरह की कुछ बातें बताएंगे और दुनिया भर के सबसे ज्‍यादा डरावनी जगहों की सैर करांएगे। यह एक सीरीज होगी जिसमें आपको रोजाना आपको एक अलग जगह के बारे में बताया जायेगा।आईऐ तैयार हो जाईये एक रोमांचकारी सफर के लिए। आज हम आपको संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका के एक शहर लुईसविला शहर के एक ऐतिहासिक और मौत के अस्‍पताल वैवरले हिल्‍स की कहानी बताएंगे। यह अस्‍पताल एक ऐसा अस्‍पताल है जिसे लोगों के इलाज के लिए शुरू किया गया और जो कि लोगों की मौत की वजह बन गया और आज अस्‍पताल के भवन में आप आसानी से उन मौतों को महसूस कर सकते है।वैवरले हिल्‍स एक ऐसी इमारत है जो कि लोगों के लिए सदैव कौतूहल का विषय बनी रही। वैवरले हिल्‍स को सन 1883 में एक अमेरिकी नागरिक मेजर थामस एच हेज के द्वारा बनवाया गया था। मेजर थामस ने अपने बेटी के लिए एक व्‍यक्तिगत स्‍कूल का इस ईमारत में शुरू किया था। इस स्‍कूल की शिक्षक लेसी ली हेरिस थी और वहीं उस बच्‍ची को पढ़ाती थी। चूकि लेसी ली हेरिस वैवरले नाम की एक उपन्‍यास को उस बच्‍ची को बहुत पढ़ाती थी जो कि मेजर थामस को बहुत पसंद था। इसी वजह से मेजर अपने इस घर को वैवरले हिल्‍स कहते थे। और आज भी यह इमारत इसी नाम से जाना जाता है।
इमारत का इतिहास
हेज परिवार के बाद इस इमारत को बन्‍द कर दिया गया था यह इमारत उस घाटी में सबसे बड़ी इमारत थी। उसके बाद सन 1908 में इस इमारत को दूबारा शुरू किया गया और इस इमारत में लोगों के इलाज के लिए एक अस्‍पताल की शुरूआत की गयी। सन 1900 के आस-पास अमेरिका में एक विचित्र बिमारी जिसे उस समय सफेद मौत के नाम से जाना जाता था यानी की तपेदिक से बुरी तरह से ग्रस्‍त था। सन 1924 में वैवरले हिल्‍स को इस बिमारी से लड़ने के लिए चुना गया। इस दौरान हजारों की तादात में तपेदिक के मरीजों को यह भर्ती किया जाने लगा। इस इमारत को अस्‍पताल के तौर पर चुनने के कारण यहां का वातावरण था लोगो का मानना था कि उचांई पर होने के क‍ारण यह जगह मरीजों के ठिक होने में मदद करेगी। उस समय यह अस्‍पताल दुनिया भर में तपेदिक रोग के लिए सबसे बेहतर अस्‍पताल माना जाता था। इस अस्‍पताल में उस समय की सबसे बेहतर तकनिकी भी उपलब्‍ध थी।मरीजों को सूर्य के पैराबैगनी किरणो से भी इलाज किया जाता था। मौत से बचने के लिए दुनिया भर से हजारों की संख्‍या में इस अस्‍पताल में मरीजों की भर्ती कर ली गयी थी, लेकिन मौत से बचने के लिए आये इन मरीजों में से रोजाना सैकड़ो की मौत भी हो जाती थी। यही मौतें इस अस्‍पताल में रूहो का वास बनकर उभर गयी। इस अस्‍पताल में रोजाना हो रही मौतों के कारण रोजाना हजारों लाशे अस्‍पताल में तैयार हो जाती थीं।इन लाशों को कोई भी कहीं लेकर नहीं जाना चाहता था ताकि यह बिमारी और उग्र रूप न धर सके। इसके लिए अस्‍पताल में ही एक लम्‍बी सुरंग का निर्माण कराया गया। इस सुरंग के दरवाजे पर लाशों को टांग दिया जाता था और एक छोटी रेलगाड़ी (जैसा कि आजकल कोयले के खानों में प्रयोग किया जाता है) आती थी और लाशे उस पर गिर जाती थी और वो गाड़ी लाशों को ले जाकर अस्‍पताल के पिछले हिस्‍से में गिरा देती थी।इस इमारत की दिवारों में भी मौत का वास हो गया था और ऐसा माना जाता है कि आज भी उन मरीजों की चिखों को इस इमारत की दिवारों में आसानी से सुना जा सकता है। इस अस्‍पताल में जो सुरंग लाशों को ढोने के लिए बनायी गयी थी वो लगभग 500 फिट लम्‍बी थी और एक तरफ जिन्‍दगी और एक तरफ हजारों लाशों का ढे़र। इस सुरंग में आज भी रूहो और आत्‍माओं को आसानी से महसूस किया जा सकता है।
आज भी यहां रूहों का बसेरा
इस अस्‍पताल में कई बार प्रत्‍यक्षदर्शियों द्वारा भूतों या साया को देखा गया है इस इमारत के बारे में लोगों का मानना है कि यहां उस सुरंग के दिवार के बाहर से यदि कोई गुजरे तो उसे आज भी लाशों की बदबू और किसी अनजाने से डर से रूबरू होना पड़ सकता है। इस इमारत के अन्‍दर एक बच्‍चा जो कि हाथ में एक गेंद लिए हुए हो और उसके चेहरे से खून रिस रहा हो लोगों को कई बार देखने को मिला है।इस इमारत के पांचवी मंजील के बारे में भी लोगों में कई किवदंतिया मशहूर हैं। पांचवी मंजिल का कमरा नम्‍बर 502 इस इमारत की दूसरी सबसे डरावनी और खौफनाक जगह है। इस कमरे की कहानी भी कम रोचक नहीं है। ऐसा बताया जाता है क‍ि जब इस अस्‍पताल में इलाज किया जा रहा था उस वक्‍त इस पांचवी मंजिल के कमरा नंबर 502 में एक नर्स ने रात में खुद को फांसी लगा ली थी।उस नर्स की उर्म 29 साल थी और वो अविवाहीत थी उसके कुछ ही दिनों बाद ही एक और नर्स ने उसी कमरे में खुद को फांसी लगाकर आत्‍महत्‍या कर ली। उसके बाद से ही उस कमरे में कोई भी जाने से घबराता था और सप्‍ताह भर के अंदर ही उस कमरे में भर्ती सभी 29 मरीजों की मौत हो गयी। आज भी उस कमरे में उन दोनों नर्सो को कभी-कभी आपस में बातें करते हुए महसूस किया गया है इस ईमारत में इस तरह के साया या भूतों के होने के बारे में कई बार पुष्टि की गयी। इस क्रम में घोस्‍ट हंटर्स सोसायटी ने भी एक बार जांच पड़ताल की उनका भी मानना है कि उन्‍होने इमारत में कई जगह‍ कैमरों को लगाया था जो कि बाद में पता चला कि इस इमारत में कई जगहों पर अपने आप रौशनी या धुआ निकलता है इसके अलांवा भयानक छाया आदी भी देखने को मिलती है।कई साल तक यह इमारत बंद पड़ी रही। अब इस इमारत को लोगों को दिखाने के लिए खोल दिया गया है। इस इमारत में अब लोग प्रायोगिक रूप से भूतों और रूहों को महसूस करने के लिए आते है। इस बारे में कई लोगों ने अपनी राय वयक्‍त की है और उनका कहना है कि उस इमारत में उन्‍होने बुरी शक्तियों को महसूस किया है। इस इमारत की सैर के लिए आपको कुछ खास नियमों का भी पालन करना होगा जैसे कि इमारत के प्रबंधन के द्वारा बताए गये क्षेत्रों में ही आप प्रवेश कर सकते है इसके अलांवा अन्‍य जगहो पर लोगों के जाने की मनाही है।
कैसे कर सकते है सैर वैवरले हिल्‍स कीइस इमारत को घूमने और जिन्‍दगी में एक अलग तरह के अनुभव के लिए आप या तो सीधे टिकट प्राप्‍त कर सकते है या फिर यह आपको आनलाईन भी उपलब्‍ध है। आनलाईन आपको अपनी पुरी जानकारी देकर अपनी टिकट बुक करा सकते है। इमारत में घूमने का समय और टिकट के दाम। हाल्‍फ नाईट (इमारत में आधी रात) 4 घंटे 50 डालर, फुल नाईट ( इमारत में पुरी रात ) 8 घंटे 100 डालर।

BLACK MONEY


सुप्रीम कोर्ट ने काले धन के प्रश्न को संवैधानिक परिप्रेक्ष्य में रखकर एक कारगर हस्तक्षेप किया है। न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेड्डी और न्यायमूर्ति एसएस निज्जर की टिप्पणियों से साफ है कि सर्वोच्च न्यायालय इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा अब तक उठाए गए कदमों से असंतुष्ट है।
इसलिए अब उसने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बीपी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में एक तेरह सदस्यीय विशेष जांच दल बना दिया है। कोर्ट की राय में केंद्र सरकार की कार्रवाई विभिन्न क्षेत्राधिकार के विभागों और एजेंसियों में बंटी रही है और वह कहीं पहुंचती नहीं दिखती।
इसलिए अब विशेष जांच दल विभिन्न सरकारी संस्थाओं में तालमेल कायम करेगा और उन्हें समय के मुताबिक जरूरी आदेश देगा। हालांकि कोर्ट ने भी यह माना है कि विदेशों में जमा काले धन को वापस लाना आसान नहीं है, लेकिन अब कम से कम विश्वसनीयता का संकट खत्म होगा। यानी लोगों में भरोसा कायम होगा कि जनता के लूटे गए धन को वापस लाने की सचमुच कोशिश हो रही है। सामान्य स्थितियों में सुप्रीम कोर्ट के इस कदम को न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में दखल माना जाता, मगर काले धन और भ्रष्टाचार का मुद्दा आज जनहित में इतना अहम हो गया है कि किसी भी हलके से ऐसी शिकायत उठने की शायद ही संभावना है। चूंकि जनता की नजर में इन मुद्दों पर सरकार की साख संदिग्ध बनी हुई है, इसलिए कोर्ट के हस्तक्षेप से आम लोग राहत महसूस कर रहे हैं। यह उम्मीद वाजिब है कि कार्रवाई का सूत्र सरकार के हाथ से निकलकर न्यायपालिका के हाथ में चले जाने का बेहतर परिणाम सामने आएगा। इसके बावजूद बाबा रामदेव और सिविल सोसायटी को अपनी सक्रियता बनाए रखने की जरूरत है, ताकि इस मुद्दे पर जनता की जागरूकता बढ़ती रहे और उसके परिणामस्वरूप सरकार पर दबाव भी बना रहे। संभवत: उससे ही इस गंभीर मसले का टिकाऊ हल निकल सकता है।

wah! re hitalar


लंदन। क्‍या आपने कभी सोचा होगा कि कोई सेनापति अपने सैनिकों को सेक्‍स करने के लिये डॉल देगा? नहीं ना! मगर य‍ह सच है, नाजी तानाशा‍ह एडोल्‍फ हिटलर अपने सैनिकों को सेक्‍स करने के लिये सेक्‍स डॉल्‍स देता था। लंदन के अखबर द सन के हवाले से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार हिटलर ने अपने सैनिकों की सेक्‍स से जुड़ी जरुरतों को पूरा करने के लिये सेक्‍स डॉल्‍स के आर्डर दिये थे। इसका कारण यह था कि नाजी सैनिकों ने पेरिस में तैनाती के दौरान फ्रेंच कॉल गर्ल्‍स से संबंध बनाने शुरु कर दिये थे जिससे उनमें तेजी से यौन सक्रमण फैला रहा था।
विश्‍व युद्ध के बाद जर्मन सेक्‍स डॉल पर रिसर्च के दौरान लेखक ग्रैगी डोनाल्‍ड को हिटलर ने इस गुप्‍त प्रोजेक्‍ट के बारे में बताया था। ब्रिटिश अखबार द सन में प्रकाशित खबर के अनुसार 1940 में नाजी वैज्ञानिक ने जर्मन सैनिकों के लिये आरामदायक सिंथेटिक डॉल बना लिये थे। उस समय यह सम्‍सया काफी गंभीर थी और यौन रोगों के चलते कई सैनिक जंग के मैदान में जाने योग्‍य नहीं थे।
अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार उस समय पेरिस में अधिक संख्‍या में कॉल गर्ल्‍स थी और देह व्‍यापार का धंधा काफी तेजी से चलता था। वह शिकार की तलाश में सैनिकों के कैंप तक आ जाती थी और उनसे संबंध स्‍थापित कर लेती थी। संबंध स्‍थापित करने के बाद सैनिक संक्रमित हो जाते थे और जंग पर जाने योग्‍य नहीं बचते थे।
इस लिये हिटलर ने उन्हें इस भटकाव से रोकने और संक्रमण से बचाने के लिये सेक्‍स डॉल्‍स का सहारा लिया। हालांकि, 1942 में जर्मन सैनिकों ने इन डॉल्स को अपने साथ ले जाने से मना कर दिया और इस प्रॉजेक्ट को बंद करना पड़ा। सैनिकों का कहना था कि युद्ध के दौरान अगर उन्हें ब्रिटिश सैनिकों ने पकड़ लिया तो सेक्स डॉल्स के चलते उन्हें भारी शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी।

09 जुलाई 2011

40 फीसद किसान खेती छोड़ अन्य रोजगार चाहते हैं

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कहता है कि देश के 40 फीसद किसान खेती छोड़कर अन्य वैकल्पिक रोजगार पाना चाहते हैं। महँगे कृषि उपकरण, खाद, बीज, सिंचाई की व्यवस्था का भार कृषकों के लिए असहनीय हो गया है। ऐसे में कृषक अपने व्यवसाय के प्रति उदासीन हो रहे हैं। कहने को तो अब भी देश की आधे से अधिक ग्रामीण जनसंख्या कृषि पर ही केंद्रित है। किसानों का जीविकोपार्जन का अस्तित्व अब खतरे में है।

किसानों के ऊपर अब अतिरिक्त वित्तीय बोझ है। 1997 से 2009 के बीच 216500 किसानों ने स्थिति से तंग आकर आत्महत्या कर ली। फसलों के उचित भंडारण के लिए संसाधनों का अभाव कृषकों की समस्या बढ़ाता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल का आयोजन जब हम करा सकते हैं तो उस स्तर के भंडारण गृहों का निर्माण क्यों नहीं करा सकते। किसानों के समक्ष एक और प्रमुख समस्या है फसल के लिए उपयुक्त बाजार का न होना।

सरकार फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है परंतु उन्हें इस मूल्य पर खरीदने के लिए एकमात्र भारतीय खाद्य निगम ही है। ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य निगम की पहुंच अतिसीमित है।

जहां पर एफसीआई के क्रय केंद्र हैं, वहां भी भ्रष्टाचार के कारण योजना फलीभूत नहीं हो पाती। आमतौर पर किसानों को निर्धारित मूल्य देकर उपज खरीदने का वादा तो किया जाता है परंतु एवज में उन्हें उचित मूल्य नहीं दिया जाता है या फिर परेशान किया जाता है। इससे कृषक गांवों में ही कम मूल्य पर सुविधाजनक तरीके से उपज बेचने पर बाध्य हो जाते हैं। यह अन्याय और किसानों का शोषण है। आज खाद्य सुरक्षा को लेकर भयावह तस्वीर पेश की जा रही है। खाद्यान्ना उत्पादकों के प्रति हमारी नीतियां संतोषजनक नहीं हैं।

किसानों के लिए कई सरकारी योजनाएँ हैं जिससे किसानों को राहत मिली भी है पर उनके सामने उनकी वित्त व्यवस्था की समस्या विकट चुनौती के रूप में है। इसका हल वित्तीय समावेशन के अंतर्गत हो सकता है। 2008 में वित्तीय समावेशन के लिए गठित समिति के अध्यक्ष डॉ. रंगराजन ने वित्तीय समावेशन को परिभाषित करते हुए कहा था कम आय वाले व कमजोर वर्ग के लिए ऋण और वित्तीय सेवाओं तक उनकी समस्या सुगमतापूर्वक पहुंचना ही वित्तीय समावेशन है।

यह वास्तविकता है कि किसान ऊंची ब्याज दरों पर साहूकारों से ऋण प्राप्त करते हैं जिनसे उनको सहूलियत कम होती है जबकि उन्हें इसके लिए शोषण के एक जटिल फंदे में फंस जाना होता है। इसके विकल्प के रूप में सरकार ने किसानों को अल्पकालीन सुविधापूर्ण ऋण प्रदान करने के लिए 1998 में किसान क्रेडिट योजना शुभारंभ की। मगर ये योजना भी विफल ही साबित हुई। इन सारी योजनाओं के बावजूद किसानों की आत्महत्या में बढ़ोतरी हो रही है।

मौत का लाइव वीडियो,इसे जिसने भी देखा वो...

 
 
न्यूयॉर्क.अमेरिका स्थित टेक्सस रेंजर्स बॉलपार्क में चल रहे बेस बॉल मैच के दौरान एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी है।खबर है कि मैच के दौरान एक खिलाडी द्वारा खेले गए शॉट(गेंद) को पकड़ने के चक्कर में एक 39 वर्षीय व्यक्ति (दर्शक) सीधे 20 फुट नीचे जा गिरा।



अचानक हुई यह घटना इतनी आश्चर्यचकित कर देने वाली थी कि शुरुआत में किसी को कुछ समझ ही नहीं आया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश भी इस मैच को देखने आए थे और यह सारी घटना उनकी आंखों के सामने हुई।
पेशे से फायरमैन शैनोन स्टोन (39) टेक्सस रेंजर्स बॉलपार्क में अपने छह साल के लडके साथ यह मैच देखने आए थे। स्टेडियम की लाबी से नीचे गिरे शैनोन को आनन् फानन में अस्पताल ले जाया गया लेकिन तब तक उनकी जान जा चुकी थी। अंग्रेजी वेबसाइट डेलीमेल ने इस घटना को प्रमुखता से छापा है, डेलीमेल के अनुसार मरने से पहले शैनोन स्टोन के आखिरी शब्द थे," मेरे बेटे का ध्यान रखना"।

पद्मनाभस्वामी मंदिर: तहखाने के पीछे नागराज हैं या जलप्रलय?


तिरुअनंतपुरम। एक तरफ सर्वोच्च न्यायालय में पद्मनाभस्वामी मंदिर के छठे तहखाने को खोलने के सवाल पर सुनवाई चल रही थी तो दूसरी तरफ पद्मनाभस्वामी मंदिर के सामने लोग पूजा-पाठ और हवन कर रहे थे। इन्हें डर था कि अगर सर्वोच्च न्यायालय ने छठे दरवाजे को खोलने की इजाजत दे दी और दरवाजा तोड़ा गया तो भगवान पद्मनाभस्वामी नाराज हो जाएंगे और फिर होगा...सर्वनाश!  सन 1930 में एक अखबार में छपा एक लेख बेहद ही डरावना था। लेखक एमिली गिलक्रिस्ट हैच के मुताबिक 1908 में जब कुछ लोगों ने पद्मनाभस्वामी मंदिर के छठे तहखाने के दरवाजे को खोला गया तो उन्हें अपनी जान बचाकर भागना पड़ा क्योंकि तहखाने में कई सिरों वाला किंग कोबरा बैठा था और उसके चारों तरफ नागों का झुंड था। जान बचाने के लिए सारे लोग दरवाजा बंद करके जान बचाकर भाग खड़े हुए।  तहखाने में छुपा है कई सिरों वाला नाग   कहा जा रहा है कि एक विशालकाय किंग कोबरा जिसके कई सिर हैं और उसकी जीभ कांटेदार है वो मंदिर के खजाने का रक्षक है। अगर छठे दरवाजे के तहखाने को खोला गया तो वो किंग कोबरा बिजली की रफ्तार से पानी के अंदर से निकलेगा और सब कुछ तहसनहस कर देगा। वैसे नागों के जानकारों का कहना है कि तहखाने के अंदर किसी भी किंग कोबरा के जिंदा रहने की संभावना नामुमकिन है। क्योंकि बंद तहखाने के अंदर ऑक्सीजन न के बराबर है और न ही खाने-पीने का कोई सामान है। ऐसे हालात में किंग कोबरा प्रजाति का कोई भी नाग जिंदा नहीं रह सकता है। लेकिन धार्मिक मान्यताएं और आस्थाएं इन दलीलों को नहीं मानतीं इसलिए लोग किसी भी अनहोनी को टालने के लिए लगातार पूजा-पाठ कर रहे हैं।  ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि नाग धन का रक्षक है इसलिए पहले नाग प्रतिमा की पूजा की जानी चाहिए वरना तहखाना खोलने की कोशिश खतरनाक भी साबित हो सकती है। इससे तिरुअनंतपुरम और पूरे राज्य पर संकट आ सकता है। वैसे बंद तहखाने को खोलने के लिए शास्त्रों में विधि बताई गई है। सबसे पहले सांप की पहचान की जाए, जो खजाने की रक्षा कर रहा है। इसके बाद वैदिक और शास्त्रों की पद्धतियों से नाग की उस जाति की पूजा कर उसे प्रसन्न किया जाए। इसके बाद तहखाना खोला गया तो किसी प्रकार के अपशकुन से बचा जा सकता है।  आ सकती है भीषण बाढ़  मान्यता के मुताबिक करीब 136 साल पहले तिरुअनंतपुरम में अकाल के हालात पैदा हो गए थे। तब मंदिर के कर्मचारियों ने इस छठे तहखाने को खोलने की कोशिश की थी और उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ी थी। अचानक उन्हें मंदिर में तेज रफ्तार और शोर के साथ पानी भरने की आवाजें आने लगी थीं। इसके बाद उन्होंने तुरंत दरवाजे को बंद कर दिया था। शहर के लोगों का मानना है कि मंदिर का ये छठा तहखाना सीधे अरब सागर से जुड़ा है जो इस पूरे राज्य को पश्चिमी दुनिया से जोड़ता है। माना जाता है कि त्रावणकोर शाही घराने ने अपने वक्त के बड़े कारीगरों से एक तिलिस्म बनवाया है जिसमें समंदर का पानी भी शामिल है। वजह ये कि अगर उस वक्त कोई खजाने को हासिल करने के लिए छठा दरवाजा तोड़ता तो अंदर मौजूद समंदर का पानी बाकी खजाने को बहा ले जाता और किसी के हाथ कुछ नहीं लगता।  महान आत्माएं जाग जाएंगी  
सभी छह तहखाने मंदिर के मुख्य देवता अनंतपद्मनाभ स्वामी की मूर्ति के चारों तरफ मौजूद हैं। इनमें से A और B तहखाने मूर्ति के सिर की तरफ मौजूद हैं। मान्यता है कि छठा तहखाना महान आत्माओं की समाधि है। और अगर इसे खोला गया तो वो महान आत्माएं जाग जाएंगी और विनाश होगा। इन्हीं मान्यताओं की वजह से यहां लोग छ

08 जुलाई 2011

सूचना प्रौद्योगिकी--- सावधान! बड़े भाई देख रहे हैं।

बचपन में पढ़ी एक कहानी याद आती है। “एक चोर अपने छोटे बेटे के साथ चोरी करने निकला। वे एक घर में घुसे। चोर ने बेटे को बाहर की निगरानी करने को कहते हुए पूछा कि कोई देख तो नहीं रहा है। बेटे ने जवाब दिया कि भगवान देख रहा है। चोर डर गया।” वह जानता था कि भगवान हर जगह रहते हैं और हमेशा हम पर निगाह जमाए रहते हैं।
यह कहानी उन दिनों की है जब आदमी अपने विवेक की पहरेदारी में जीवनयापन करता था। तब से अब तक आदमी काफी बदल गया है, उसी अनुपात में विवेक की पकड़ ढीली पड़ गई है। पहरेदारी करना इसकी कूवत में नहीं रह गया। अब पहरेदारी करने का जिम्मा प्रौद्योगिकी के जरिए उपलब्ध कराए गए उपकरणों का है।

बहुत सारे भविष्यवादी, विज्ञानकथाओं के लेखक और गोपनीयता के हिमायती चिन्तित हैं कि  भविष्य में गोपनीयता हमारे नसीब में नहीं उपलब्ध रहेगी।। वे चेतावनी देते रहे हैं------ " सावधान! बड़े भाई साहब सब देख रहे हैं।" हम कब कहाँ होते हैं, मोबाइल फोन के जरिए सहज रूप से जाना जा पाता है। दुनिया के हर कोने में फैलते जा रहे सी.सी.टी.वी.(Close Circuit Television) कैमरा अकसर हमारी हरकत बताते रहते हैं। हमारे ट्रांजिट पास और क्रेडिट पास डिजिटल चिह्न छोड़ जाया करते हैं।, डेविड ब्रिन ने सन 1998 ई. में प्रकाशित अपनी किताब ‘दि ट्रांसपैरेण्ट सोसाइटी’ में लिखा है,“हमारे जीवन का करीब हर कोना रोशन रहनेवाला है।”।

अब सवाल यह नहीं है कि निगरानी प्रौद्यौगिकी के प्रसार को कैसे रोका जाए, बल्कि यह कि ऐसी दुनिया में कैसे जिया जाए जहाँ कि हमारे हर कदम पर नजर रखी जाने की पूरी सम्भावना है।

पिछले कुछ सालों में कुछ अजीब बातें हुई हैं। मोबाइल फोन, डिजिटल कैमरा और इण्टरनेट के प्रसार का नतीजे में निगरानी प्रौद्यौगिकी, जिस पर कभी राज्य का एकाधिकार हुआ करता था, आज काफी विस्तृत रूप से उपलब्ध हो गया है। सुरक्षा विशेषज्ञ ब्रुस स्नियर कहते हैं,”सरकारी निगरानी के बारे में बहुत काफी लिखा जा चुका है, पर हमें अधिक साधारण किस्म की निगरानी की सम्भावना के प्रति भी सावधान होने की जरूरत है। निगरानी टेक्नॉलॉजियों के उपकरणों के छोटे होते जा रहे आकारों, गिरती हुई कीमतें और रोजबरोज उन्नत होती हुई पद्धतियों से अधिक से अधिक जानकारी के संग्रहित होते रहने का रास्ता प्रशस्त होता जा रहा है। इसका नतीजा होगा कि “निगरानी की योग्यताएँ जो अभी तक सरकारी क्षेत्र तक सीमित थीं, हर किसीके हाथों में हैं या जल्दी ही होंगी।”

कैमरा-फोन एवम् इण्टरनेट की तरह की डिजिटल टेक्नॉलॉजी अपने समरूप अन्य टेक्नॉलॉजियों से बहुत अलग होती है। आसानी और शीघ्रता से डिजिटल तसवीरों की प्रतिलिपियाँ बनाया और दुनिया के किसी भी हिस्से में भेजा जाना सहज सी बात है। ऐसा पारम्परिक तसवीरों के साथ नहीं हो सकता।( हकीकत तो यह है कि डिजिटल छवि को इ-मेल करना उसके मुद्रण करने से अधिक आसान है।) एक बड़ा फर्क यह है कि यह डिजिटल यंत्र बहुत अधिक व्यापक हो गया है। आज बहुत ही कम लोग फिल्म कैमरा हर वक्त अपने साथ रखते हैं। दूसरी ओर आज बिना कैमरा वाला मोबाइल फोन मिलना बहुत कठिन है।--- और अधिकतर लोग फोन अपने साथ लिए चला करते हैं। डिजिटल कैमरा की गति एवम् सर्वव्यापकता उन्हें ऐसे कामों को करने की ताकत देती है जो फिल्म पर आधारित कैमरा से नहीं किए जा सकते। उदाहरण के लिए टेनेसी, नैशविले में राहजनी के एक भुक्तभोगी ने अपने मोबाइल फोन के कैमरा से लुटेरे और उसकी गाड़ी की तस्वीरें खींच ली। ये तसवीरें पुलिस को दिखलाई गई, जिसने लुटेरे और उसकी गाड़ी का वर्णन प्रसारित कर दिया, और दस मिनट के भीतर लुटेरा पकड़ा गया। इसी तरह की बहुत सी घटनाओं की कहानियाँ हम हमेशा सुना करते हैं।

आपके हर कदम पर निगाह बनी हुई है। 
निगरानी का गणतंत्रीकरण मिश्रित वरदान है। कैमरा फोन से ताक झाँक को बढ़ावा मिला है फलस्वरूप लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए नए कानून बनाए जा रहे हैं। अमेरिकी कॉंग्रेस ने सन 2004 में विडियो वॉयुरिज़्म विधेयक(“Video voyeurism Act) ग्रहण किया। इसके जरिए किसी व्यक्ति की अनुमति के बग़ैर उसके नंगे बदन के विभिन्न भागों के तस्वीर खींचे जाने को प्रतिबंधित किया गया है। कैमरा फोन के व्यापक प्रसार शयन-कक्षों, सार्वजनिक शौचालयों एवम् अन्य स्थानों में गुप्त कैमरों के होने की घटनाओं के कारण इस विधेयक की जरूरत महसूस की गई। इसी तरह जर्मनी के संसद ने विधेयक ग्रहण किया है जो इमारतों के भीतर अनधिकृत तस्वीरें खींचने को प्रतिबंधित करता है। साउदी अरब में कैमरा फोन के आयात और विक्रय को अश्लीलता फैलाने के आरोप पर अवैध घोषित कर दिया गया है । एक विवाह समारोह में कोहराम मच गया जब एक मेहमान ने अपने कैमरा से तस्वीरें खींचनी शुरु कर दी।  ऐसी घटनाओं को कम करने की दिशा में दक्षिणी कोरियाई सरकार ने निर्माताओं को ऐसे फोन बनाने की हिदायत दी है जिनसे तस्वीर खींचे जाते वक्त सीटी की आवाज निकले।

सस्ती निगरानी प्रौद्यौगिकी  दूसरे किस्म के अपराधों की राह हमवार करती है। ब्रिटिश कोलम्बिया में एक पेट्रोल पंप के दो कर्मचारियों ने कार्ड-रीडर के ऊपर की छत पर एक गुप्त कैमरा गला लिया और हज़ारों ग्राहकों के पिन ( personal Identification Number) की चोरी कर ली। उन्होंने ऐसा एक यंत्र भी स्थापित कर दिया जो उपभोक्ताओं के खातों के विवरण की नकल तब कर लेता है जब वे अपने प्लास्टिक कार्ड का इस्तेमाल करते हैं। इस दो व्यक्तियों ने पकड़े जाने के पूर्व 6,000 से अधिक लोगों के खातों के विवरण इकट्ठा कर लिए थे तथा साथ ही 1,000 बैंक कार्ड्स की जालसाजी कर ली थी।

निगरानी प्रौद्योगिकी दुधारी तलवार है।
लेकिन निगरानी प्रौद्यौगिकी के प्रसार के लाभदायक परिणाम भी हैं। खासकर पारदर्शिता एवम् जवाबदेही बढ़ाने में योगदान कर सकता है। आज स्कूलों में कैमरों की संख्या में रोजबरोज वृद्धि होती जा रही है. अमेरिका की सैकड़ों शिशु देखभाल केन्द्रों के कैमरों से पैरेण्टवाच.कॉम और किण्डरकैम.कॉम जैसी वेब पर आधारित सेवाएँ जुड़ी रहती हैं, ताकि माता-पिता देखते रह पाएँ कि उनके बच्चे और उनकी देखभाल करने वाले कर्मचारी क्या कर रहे हैं। स्कूलों की कक्षाओं में भी वेबकैम लगाए जा रहे हैं। औद्योगिक कम्पनियों ने अपने कर्मचारियों के रेस्तराओं में वेबकैम लगाए हैं ताकि रेस्तराओं में भीड़ रहने पर कर्मचारी वहाँ भोजन करने जाने में देर कर सकें।
अबु ग़रीब जेल में युद्ध-बन्दियों पर पाशविक अत्याचार का पर्दाफाश विडियो प्रौद्योगिकी के कारण ही मुमकिन हो पाया है।

निगरानी प्रौद्योगिकी के प्रसार के सामाजिक परिणाम अभी भी स्पष्ट नहीं हैं। श्री ब्रिन के सुझाव के अनुसार यह स्वतः-नियामक हो सकता है। यह तो जगजाहिर है कि ताक-झाँक करने वाले लोगों को इज्जत की निगाह से नहीं देखा जाता। किसी रेस्तराँ में घूरते हुए पकड़ा जाना बड़ा ही शर्मनाक होता है। दूसरी ओर कैमरों और निगरानी के अन्य उपकरणों के सर्वव्यापी होने से व्यक्तियों के अधिक परम्परावादी होने की सम्भावना भी बढ़ सकती है। क्योंकि अपने ऊपर बहुत ज्यादा ध्यान पड़ने से बचने के लिए लोग अपने व्यक्तिगत खूबियों को जाहिर करने से बचने की कोशिश करेंगे।

जैसा कि एकान्तता के हिमायती बहुत पहले से चेतावनी देते रहे है कि निगरानी समिति का आधिपत्य छाने ही वाला है। लेकिन इसका रूप उनकी धारणा के अनुरूप नहीं हुआ है। रोजबरोज सिर्फ बड़े भाई ही नहीं बहुत से छोटे भाई भी निगरानी करने में लगे हुए हैं।

07 जुलाई 2011

आँख ही से ना टपका तो फिर लहू क्या है ?

रही ना ताक़त-ए-गुफ़्तार, और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे  कहिए के आरज़ू  क्या है ? 

वो चीज़ जिसके लिए हमको हो बहिश्त अज़ीज़
सिवाय बादा-ए-गुल-फाम-ए-मुश्कबू क्या है ?
 
रगों में  दौड्ते फिरने  के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से ना टपका तो फिर लहू क्या है ?
 
 जला है जिस्म जहां दिल भी जल गया होगा
कुरेदते  हो जो अब  राख,  जूस्तजू क्या  है ?
 
 हर एक बात पे कहते हो तुम के  तू क्या है ?
तुम्हीं कहो के ये अंदाज़-ए-गुफ्तगू क्या है  ? 

05 जुलाई 2011

जुर्म के दलदल में कूद गया बेवफाई से नाराज़ किन्नर

उसलापुर में किन्नर के मकान से आटो चालक की लाश मिलने की गुत्थी पुलिस ने सुलझा ली है। चालक का किन्नर के साथ अनैतिक संबंध था और चालक उससे छुटकारा पाना चाह रहा था। बेवफाई से नाराज किन्नर ने अपने भांजे के साथ मिलकर आटो चालक की हत्या कर दी। किन्नर अभी भी फरार है, उसके भांजे को गिरफ्तार कर लिया गया है।
शनिवार सुबह उसलापुर फाटक के पास शकीला की मकान से आटो चालक जार्ज एंथोनी (20 वर्ष) की लाश मिली थी। लाश दो दिन पुरानी थी। सिर पर धारदार हथियार के निशान थे। पुलिस ने हत्या का जुर्म दर्ज कर मामले की जांच शुरू की। घर से फरार किन्नर पुलिस को शुरू से ही संदिग्ध लग रहा थी। पुलिस को जांच के दौरान पता चला किन्नर के घर जार्ज हमेशा आता जाता था।
गुरुवार को भी वह यहां आया था और उसका किन्नर से विवाद हुआ था। इस समय किन्नर का भांजा जयराम निर्मलकर भी मौजूद था। पुलिस ने जयराम को हिरासत में लेकर पूछताछ की तो उसने सारे राज उगल दिए। जयराम खुद इस मामले का आरोपी निकला। वह जार्ज की हत्या करने में किन्नर को मदद की थी। पुलिस ने जयराम व शकीला के खिलाफ धारा 302 के तहत जुर्म दर्ज जयराम को गिरफ्तार कर लिया, वहीं फरार शकीला की तलाश जारी है।
खून से रंगे कपड़े व ईंट जब्त:
पुलिस ने जयराम की निशानदेही पर खून से शर्ट, पेंट व ईंट जब्त कर ली है। वारदात के बाद जयराम ने अपने कपड़े धो दिए थे, फिर भी उसमें खून के धब्बे थे। हत्या के लिए जिस खुखरी का उपयोग किया था, उसे शकीला अपने साथ ही ले गई है।
किन्नर के पीछे पुलिस :
शनिवार की रात पुलिस ने किन्नर शकीला की तलाश में लोरमी सहित कोरबा व चांटीडीह में दबिश दी। लोरमी में उसका घर है, लेकिन वह वारदात के बाद वहां नहीं पहुंची है। चांटीडीह में उसकी सहेलियां रहती हैं। पुलिस को उनसे पता चला कि गुरुवार की रात शकीला उनके पास आई थी। उसके कपड़ों पर खून के धब्बे थे। उसने बताया कि वह एक्सीडेंट में घायल हो गई। इसके बाद वह कहां गई, यह किसी को पता नहीं। पुलिस उसकी तलाश में कुछ और स्थानों पर दबिश देने की तैयारी में है।
बड़े भांजे ने की तस्दीक:
किन्नर शकीला का बड़ा भांजा दिलहरण निर्मलकर भी उसके घर में कभी-कभी सोता था। घटना की रात उसने अपने भाई जयराम को फोन किया तो उसने झगड़े की जानकारी देते हुए उसे वहां आने से मना कर दिया। दिलहरण ने यह जानकारी पुलिस को दी है।
बर्दाश्त नहीं कर सकी
आटो चालक जार्ज एंथोनी व शकीला के बीच पिछले दो साल से अनैतिक संबंध थे। शकीला ने ऑपरेशन के जरिए लिंग परिवर्तन कराया था। जार्ज पहले रोज शकीला के घर जाता था, लेकिन पिछले 10-12 दिनों से अचानक शकीला के घर जाना बंद कर दिया। वह शकीला से किसी तरह छुटकारा पाना चाहता था। इससे शकीला बेचैन हो गई। वह किसी भी कीमत पर जार्ज को नहीं खोना चाहती थी।
29 जून को शकीला उसकी तलाश में निकली। जार्ज उसे सत्यम टाकीज के पास मिल गया। यहां शकीला ने पहले तो उससे घर न आने का कारण पूछा। जार्ज ने बहाना बनाकर टाल दिया, लेकिन शकीला उसका इरादा जान चुकी थी। शकीला उस रात किसी तरह जार्ज को बहलाकर अपने घर ले गई। यहां शकीला का छोटा भांजा जयराम निर्मलकर (20 वर्ष) भी मौजूद था।
शकीला ने जयराम से शराब मंगाई और फिर तीनों ने शराब पी। इसी दौरान शकीला ने जार्ज से झगड़ा शुरू कर दिया। शकीना पहले ही जार्ज की बेवफाई से नाराज थी। शकीला ने जार्ज की हत्या करने की ठान ली। इसमें उसने अपने भांजे की मदद ली।
जार्ज पर नशा चढ़ते ही शकीला व जयराम ने उस पर हमला शुरू कर दिया। जयराम ने ईंट से वार किया तो शकीला उस पर खुखरी से हमला कर दिया। जार्ज लहुलुहान होकर गिर पड़ा। इसी बीच दोनों ने मिलकर उसका गला दबा दिया। उसकी मौत के बाद जयराम घर चला गया और शकीला घर का दरवाजा बंद कर कहीं चली गई।

जिन लड़कियों को आए थे देखने उन्हें बनाया बहन

रायपुर.गर्ल्स स्कूल और कालेज के आसपास मंडराने वाले युवक सोमवार को बुरे फंसे।सादे लिबास में मौजूद महिला पुलिस कर्मियों ने उन्हें पकड़ा और जमकर क्लास ली।आइंदा गर्ल्स स्कूल के करीब नजर नहीं आने का वादा करने के बाद ही उन्हें छोड़ा गया।
हालांकि पुलिस के जाल में फंसने के बाद युवकों ने कई तरह के बहाने बनाने की कोशिश की। महिला पुलिस के दस्ते के आगे उनकी कोई बहानेबाजी नहीं टिक सकी।शर्मिदगी से बचने के लिए उन्हें पुलिस कर्मियों के सामने तौबा करनी पड़ी। महिला पुलिस कर्मियों ने दो-तीन दिन पहले ही इस तरह के अभियान चलाने का संकेत दे दिया था।
इसके बावजूद मनचले किस्म के युवकों पर कोई असर नहीं हुआ और वे स्कूल लगने और छूटने के समय आस-पास मंडराने लगे। महिला पुलिस कर्मियों ने सादे लिबास में घेरेबंदी की।सबसे पहले अमला डिग्री गर्ल्स कालेज पहुंचा। उसके बाद दानी गल्र्स स्कूल के पिछले वाले रास्ते अमला तैनात हुआ।
पुलिस कर्मियों का नेतृत्व महिला सेल की प्रभारी एसआई प्रतिमा सिंह कर रही थीं। स्कूल आने-जाने वाले रास्ते पर उन्होंने कई युवकों को रोका और कारण पूछा।कई युवक वजह नहीं बता सके। हालांकि उन्होंने अजब-गजब तरह के बहाने बताए और अपनी ही बातों में फंस गए।
बहन को लेने दोस्त के साथ
डिग्री गर्ल्स कालेज के सामने पकड़े गए युवक बुरी तरह घबरा गए थे। घबराहट में एक युवक ने कह दिया कि मैं तो अपनी बहन को लेने आया हूं। महिला पुलिस कर्मियों ने जब नाम पूछा तो वे हड़बड़ा गए और नाम तक नहीं बता सके। उनकी गाड़ी की चाबी निकालकर जब्त कर ली गई।
महिला पुलिस कर्मियों ने उन्हें वहीं खड़े रहने को कहा। वे दूसरे युवकों से पूछताछ करने जुट गईं, इसका फायदा उठाकर युवकों ने दूसरी चाबी निकाली और वहां से फरार हो गए।
पहुंच की धौंस भी दिखाई
पकड़े जाने के बाद युवकों ने राजनीतिक पहुंच की धौंस दिखाने का प्रयास किया। उन्होंने महिला पुलिस कर्मियों से यहां तक कह दिया कि वे उन्हें जानती नहीं है।उनका ऐसा करना भारी पड़ सकता है।परंतु महिला सेल वालों ने जब परिजनों को बुलाने का प्रयास किया तो वे सीधे रास्ते पर आ गए।
यहां भी हुई जांच
महिला पुलिस कर्मियों ने पेंशन बाड़ा स्कूल, डागा कालेज, दिशा कालेज, शैलेंद्र नगर स्थित गल्र्स स्कूल के सामने भी दबिश दी। मोतीबाग स्थित सालेम गल्र्स स्कूल के सामने सबसे ज्यादा युवक नजर आए। यहां एक घंटे तक पूछताछ चली।कार्रवाई के दौरान स्कूल-कालेज के बाहर इंतजार कर रहे कई रिश्तेदारों से भी पूछताछ की गई।
इसलिए फंसे युवक
महिला सेल की टीम सादे लिबास में थी। पूरी टीम की सदस्या अलग-अलग जगह फैली थीं। इस वजह से कॉलेजों के बाहर खड़े मनचले युवक पुलिस कर्मियों को पहचान नहीं सके और फंस गए। कालीबाड़ी स्कूल के आसपास के इलाके में मनचलों की हरकतों की शिकायत लगातार पुलिस को मिल रही थी। कार्रवाई की शुरुआत भी यहीं से की गई।

04 जुलाई 2011

love

एक गाँव में एक किसान परिवार रहा करता था. परिवार में अधेड़ किसान दंपति के अतिरिक्त एक पुत्र एवं पुत्रवधू भी थे। पुत्र निकट के नगर में एक सेठ का सेवक था।एक दिन की बात है तीन वृद्ध कहीं से घूमते घामते आए और किसान की आँगन में लगे कदम के पेड़ के नीचे विश्राम करने लगे। किसान की पत्नी जब बाहर लिकली तो उसने इन्हे देखा, उसने सोचा की वे भूखे होंगे। उसने उन्हे घर के अंदर आकर भोजन ग्रहण करने का अनुरोध किया। इसपर उन वृद्धों ने पूछा, क्या गृहस्वामी घर पर हैं? किसान की पत्नी ने उत्तर दिया, नहीं, वे बाहर गये हुए हैं।
वृद्धों ने कहा कि वे गृहस्वामी की अनुपस्थिति में घर के अंदर नहीं आएँगे। स्त्री अंदर चली गयी कुछ देर बाद किसान आया। पत्नी ने सारी बातें बताईं। किसान ने तत्काल उन्हें अंदर बुलाने को
कहा। स्त्री ने बाहर आकर उन्हें निमंत्रित किया। उन्होंने कहा “हम तीनों एक साथनहीं आएँगे, जाओ अपने पति से सलाह कर बताओ कि हममें से कौन पहले आए”। वो जो दोनों
हैं, एक “समृद्धि” है, और दूसरे का नाम “सफलता”। मेरा नाम “प्रेम” है”। पत्नी ने
सारी बातें अपने पति से कही। किसान यह सब सुनकर अत्यधिक प्रसन्न हुआ। उसने कहा, यदि
ऐसी बात है तो पहले “समृद्धि” को बुला लाओ। उसके आने से अपना घर धन धान्य से परिपूर्ण हो जाएगा। उसकी पत्नी इसपर सहमत नहीं थी। उसने कहा, क्यों ना “सफलता” को
बुलाया जाए ।
उनकी पुत्रवधू एक कोने में खड़े होकर इन बातों को सुन रही थी। वो
बहुत ही समझदार थी उसने कहा, अम्माजी आप “प्रेम” को क्यों नहीं बुलातीं।
किसान ने कुछ देर सोचकर पत्नी से कहा “चलो बहू क़ी बात मान लेते हैं”।
पत्नी तत्काल बाहर गयी और उन वृद्धों को संबोधित कर कहा “आप तीनों मे जो “प्रेम” हों, वे कृपया अंदर आ जाए। “ प्रेम” खड़ा हुआ और चल पड़ा। बाकी दोनों, “सफलता” और “समृद्धि” भी पीछे हो लिए। यह देख महिला ने प्रश्न किया अरे ये क्या है, मैने तो केवल “प्रेम” को ही आमंत्रित किया है। दोनों ने एक साथ उत्तर दिया ” यदि आपने “समृद्धि” या “सफलता”
को बुलाया होता तो हम मे से दो बाहर ही रहते। परंतु आपने “प्रेम” को बुलाया इसलिए हम साथ चल रहे हैं। हम दोनो उसका साथ कभी नहीं छोड़ते।

प्यारया फिर करियर


जब भी कोई युवक या युवती प्यार के चक्कर में पड़ता है तो उसके सामने दो विकल्प रहते हैं, एक तो यह कि वे अपने प्यार को परवान चढ़ने पर ध्यान दें या फिर अपने करियर पर। करियर बनाने की उम्र में प्यार में पड़े युवक-युवतियाँ प्यार को ही तवज्जो देने लगते हैं।
प्यार की खातिर अपने करियर को दाँव पर लगाने वाले युवक-युवतियाँ भूल जाते हैं कि प्यार करने के लिए तो सारी जिंदगी है, पर एक बार करियर छूट गया तो उसे सँवारना बड़ा मुश्किल है।
कहते हैं कि प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है, लेकिन यदि आप विवेक से काम लें तो अपने बढ़ते कदम रोक सकते हैं। माना कि आप वयस्क हैं, आपको प्यार करने का पूरा अधिकार है, लेकिन इसके लिए कितनी बड़ी कीमत चुका रहे हैं। आप जरा इस बात पर भी गौर फरमाइए।
प्यार के पचड़े में पड़कर अपना करियर बर्बाद करने वाले युवक-युवतियाँ शायद यह नहीं जानते कि उनके इस आचरण से उनके परिजनों का कितना दिल दुखेगा। अपने बच्चों का करियर बनाने के लिए की गई जद्दोजहद व्यर्थ होते देख उन्हें कैसा महसूस होगा? उनकी उम्मीदों पर पानी फिरता देख उन्हें कितनी ठेस पहुँचेगी।
जीवन में हर कार्य का एक समय होता है और उसे तब ही करने में भलाई है। जब आप कॉलेज में एडमिशन लेते हैं तो आपका लक्ष्य करियर बनाना होना चाहिए। आपस में दोस्ती होना बुरा नहीं है, लेकिन दोस्ती और प्यार के बीच एक सीमा रेखा है जिसका ध्यान रखा जाना चाहिए। जो युवक-युवतियाँ पढ़ाई के दौरान प्यार में पड़ जाते हैं वे अपना करियर समाप्त कर लेते हैं, क्योंकि दोनों का ही ध्यान पढ़ाई से उचट जाता है। ऐसे युवक-युवतियों को चाहिए कि वे पहले अपने करियर पर ध्यान दें।
एक बार आप अपनी मंजिल हासिल कर लें, उसके बाद प्यार करें तो वे अपने प्यार को भी समय दे पाएँगे व उसके साथ न्याय कर सकेंगे। करियर की ओर ध्यान नहीं देने से अच्‍छी नौकरी नहीं मिलेगी व आय का कोई साधन नहीं रहेगा। रोजी-रोटी और गृहस्थी के लिए अच्‍छा करियर होना बहुत जरूरी है अन्यथा प्यार में अंधे होकर किए गए प्रेम-विवाह का हश्र बहुत बुरा होता है। हाथों की मेहँदी छूटने के पहले ही अलगाव की स्थिति बन जाती है। इसलिए आप अपनी जिंदगी के फैसले सोच-समझकर लें।
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लड़कियों के डर भी अजीब होते हैं
भीड़ में हों तो लोगों का डर
अकेले में हों तो सुनसान राहों का डर
गर्मी में हों तो पसीने से भीगने का डर
हवा चले तो दुपट्टे के उड़ने का डर
कोई न देखे तो अपने चेहरे से डर
कोई देखे तो देखने वाले की आँखों से डर
बचपन हो तो माता-पिता का डर
किशोर हो तो भाइयों का डर
यौवन आये तो दुनिया वालो का डर
राह में कड़ी धुप हो तो,चेहरे के मुरझाने का डर
बारिश आ जाये तो उसमें भीग जाने का डर
वो डरती हैं और तब तक डरती हैं
जब तक उन्हें कोई जीवन साथी नहीं मिल जाता
और वही वो व्यक्ति होता हैं जिसे वो सबसे ज्यादा डराती है!!!!!!!!!!

30 जून 2011

गाँधी जी के नाम सुखदेव की यह खुली चिट्ठी


 गाँधी जी के नाम सुखदेव की यह खुली चिट्ठी मार्च १९३१ में गाँधी जी और वायसराय इरविन के बीच हुए समझैते के बाद लिखी गई थी जो हिंदी नवजीवन 30 अप्रैल 1931 के अंक में प्रकाशित हुई थी }
परम कृपालु महात्मा जी ,

आजकल की ताज़ा खबरों से मालूम होता है कि{ ब्रिटिश सरकार से } समझौते की बातचीत कि सफलता के बाद आपने क्रन्तिकारी कार्यकर्ताओं को फिलहाल अपना आन्दोलन बन्द कर देने और आपको अपने अहिंसावाद को आजमा देखने का आखिरी मौका देने के लिए कई प्रकट प्राथनाए कई है |वस्तुत ; किसी आन्दोलन को बन्द करना केवल आदर्श या भावना में होने वाला काम नहीं हैं |भिन्न -भिन्न अवसरों कि आवश्यकता का विचार ही अगुआओं को उनकी युद्धनीति बदलने के लिए विवश करता हैं |
माना कि सुलह की बातचीत के दरम्यान , आपने इस ओर एक क्षण के लिए भी न तो दुर्लक्ष किया ,न इसे छिपा ही रखा की समझौता होगा |में मानता हूँ कि सब बुद्धिमान लोग बिलकुल आसानी के साथ यह समझ गये होंगे कि आप के द्वारा प्राप्त तमाम सुधारो का अम्ल होने लगने पर भी कोई यह न मानेगा कि हम मंजिले -मकसूद पर पहुच गये हैं | सम्पूर्ण स्वतन्त्रता जब तक न मिले ,तब तक बिना विराम के लड़ते रहने के लिए कांग्रेस महासभा लाहौर के प्रस्ताव से बंधी हुई हैं | उस प्रस्ताव को देखते हुए मौजूदा सुलह और समझैता सिर्फ काम चलाऊ युद्ध विराम हैं |जिसका अर्थ येही होता होता हैं कि अधिक बड़े पएमाने पर अधिक अच्छी सेना तैयार करने के लिए यह थोडा विश्राम हैं ........
किसी भी प्रकार का युद्ध -विराम करने का उचित अवसर और उसकी शर्ते ठहराने का काम तो उस आन्दोलन के अगुआवो का हैं | लाहौर वाले प्रस्ताव के रहते हुए भी आप ने फिलहाल सक्रिय आन्दोलन बन्द रखना उचित समझा हैं |इसके वावजूद भी वह प्रस्ताव तो कायम ही हैं |इसी तरह 'हिन्दुस्तानी सोसलिस्ट पार्टी ' के नाम से ही साफ़ पता चलता हैं कि क्रांतिवादियों का आदर्श समाजवादी प्रजातन्त्र कि स्थापना करना हैं |यह प्रजातन्त्र मध्य का विश्राम नही हैं |जब तक उनका ध्येय प्राप्त न हो और आदर्श सिद्ध न हो , तब तक वे लड़ाई जरी रखने के लिए बंधे हुए हैं |परन्तु बदलती हुई परिस्थितियों और वातावरण के अनुसार वे अपनी युद्ध .निति बदलने को तैयार अवश्य होंगे |क्रन्तिकारी युद्ध ,जुदा ,जुदा रूप धारण करता हैं |कभी गुप्त ,कभी केवल आन्दोलन -रूप होता हैं ,और कभी जीवन -मरण का भयानक सग्राम बन जाता हैं |ऐसी दशा में क्रांतिवादियों के सामने अपना आन्दोलन बन्द करने के लिए विशेष कारणहोने चाहिए |परन्तु आपने ऐसा कोई निश्चित विचार प्रकट नहीं किया |निरी भावपूर्ण अपीलों का क्रांतीवादी युद्ध में कोई विशेष महत्त्व नही होता ,हो भी नही सकता |